- बीमा की रकम के लिए परेशान गोरखपुर के एलआईसी कंज्यूमर्स

- बॉन्ड खोने पर भी लोगों को दौड़ते जिम्मेदार

GORAKHPUR: भविष्य की आर्थिक समस्याओं से बचाने के लिए बीमा लेने के दावे कमजोर पड़ते जा रहे हैं। मेहनत की कमाई का एक हिस्सा बचाकर जीवन बीमा की किस्तें भरने वाले कई लोग सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद भी लाभांवित नहीं हो पा रहे हैं। बीमा कवर लेने से पहले एजेंट्स से भी पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता है। इन्वेस्टमेंट की मैच्योरिटी पूरी हो गई या किसी दुर्घटना के कारण पेमेंट ड्यू हो गया तो पब्लिक को दौड़ लगानी पड़ रही है। ब्रांच लेकर मंडल ऑफिस तक चक्कर लगाने के बाद भी बीमा कवर लेने वालों को कंपनियों के दावों के अनुरूप सुविधा नहीं मिल पा रही है। महीनों, वर्षो दौड़ ाग करने के बाद भी लोगों को हासिल हो रही है तो केवल तारीख पर तारीख।

दुर्घटना के बाद लगाने पड़ते हैं चक्कर

बीमा कवर बेचते समय कंपनियां प्रचार में अक्सर कहती हैं कि दुर्घटना के समय हम आपके साथ। कस्टमर बनाने से पहले कंपनियों का यह दावा ऐन मौके पर हवा-हवाई साबित हो जाता है। ऐसे दावों की हवा तब निकल जाती है जब किसी दुर्घटना के बाद लोग पेमेंट के लिए अप्लाई करते हैं। सर्विस लेते समय तो मामूली पेपर से काम चल जाता है लेकिन यही पेपर्स पेमेंट लेते समय कम पड़ जाते हैं और पेपर वर्क के लिए ही काफी दौड़भाग करनी पड़ती है। कई केसेज में तो लोग वर्षो तक दौड़ लगाते रह जाते हैं।

केस-1

सहजनवां के रामानन्द यादव ने 7600 रुपए छमाही किस्त का जीवन बीमा कवर कराया हुआ था। 2010 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वह पुलिस कांस्टेबल थे और ड्यूटी के दौरान दुर्घटना हुई थी। परिवार के सदस्यों ने बीमा राशि के लिए क्लेम किया। एक-एक कर सारे डॉक्युमेंट मांगे गए, यहां तक कि किस डॉक्टर ने इलाज किया था और पुलिस चौकी के एरिया में दुर्घटना हुई उसके प्रभारी से अप्लीकेशन अटेस्ट करवाया गया। इसके बाद भी अभी तक केवल आधी रकम का भुगतान किया गया जबकि परिवार के लोग दो साल तक दौड़भाग करते रहे। हार मानकर अब वह घर बैठ चुके हैं।

केस-2

जंगल सीकरी के योगेन्द्र यादव ने 2004 में 8496 रुपए वार्षिक किस्त पर बीमा पॉलसी ली थी। मई 2008 तक उन्होंने नियमित किस्त जमा किया, पर उसके बाद किसी कारण से नहीं कर सके। इन्वेस्टमेंट की मैच्योरिटी जुलाई 2018 में हो चुकी थी। योगेन्द्र के 42,480 रुपए जमा हो चुके हैं। जीवन बीमा निगम पहले ऐसी शिकायतों को ब्रांच स्तर पर निपटाता था लेकिन अब पब्लिक को मंडल ऑफिस जाना पड़ता है। योगेन्द्र से बांड खो गया था लेकिन जो भी डॉक्युमेंट कंपनी की ओर से मांगे गए थे उन्होंने जमा किए। इसके बाद भी अभी तक उनको भुगतान नहीं मिल सका है।

Posted By: Inextlive