स्कूलों में फ्री सिलेबस होने के बावजूद बच्चों पर महंगी किताबों का बोझ

कक्षा छह से आठवीं तक प्राइवेट पब्लिशर्स की आठ से 12 किताबें शामिल

Meerut । अभी तक सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में ही महंगी किताबें पढ़ाए जाने की होड़ दिखाई देती थी, लेकिन हकीकत यह है कि शिक्षा विभाग की आंखों में धूल झोंककर कई सरकारी स्कूल भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत फ्री एजुकेशन को दरकिनार कर इन स्कूलों में कमीशनखोरी का अलग ही खेल चल रहा है। स्कूलों में न केवल प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पढ़ाई जा रही हैं बल्कि से महंगी किताबों का बोझ भी अभिभावकों की जेब पर डाला जा रहा है।

यह है स्थिति

दरअसल, माध्यमिक शिक्षा परिषद के तहत आने वाले सरकारी स्कूलों में बच्चों को प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें पढ़ाई जा रही हैं। इन स्कूलों में कक्षा छह से आठवीं तक की कक्षाओं के लिए बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से सभी किताबें फ्री प्रोवाइड करवाई जाती हैं। मगर स्थिति ये है कि बच्चों तक ये किताबें पहुंची ही नहीं। सिलेबस बदलने के नाम पर स्कूल में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें ही बच्चों को खरीदने के लिए कहा गया। कक्षा छह से आठवीं तक के बच्चों के सिलेबस में प्राइवेट पब्लिशर्स की आठ से 12 किताबें शामिल की गई हैं।

यह है नियम

सर्व शिक्षा अभियान के तहत कक्षा एक से आठवीं तक के स्कूल बेसिक शिक्षा विभाग के अंर्तगत आते हैं। इन सभी एडिड स्कूलों में विभाग की ओर से ही किताबें प्रोवाइड कराई जाती हैं। जबकि अनएडेड स्कूलों के बच्चों को ही बाहर से किताबें खरीदने की छूट होती है। यहां तक कि कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों से फीस तक भी नहीं ली जाती है।

प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें

मैथ्स, साइंस, इंग्लिश, हिंदी, हिस्ट्री, व्याकरण वसुधा, ग्रामर, सिविक्स व एनवायरमेंट साइंस समेत कई किताबें कक्षा छह से आठवीं तक के बच्चों के कोर्स में शामिल की गई हैं। इनमें अधिकतर किताबों का मूल्य 200 रूपये से अधिक है।

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सरकारी स्कूल में प्राइवेट पब्लिशर्स की किताबें नहीं पढ़ाई जा सकती है। अगर स्कूलों में ऐसा हो रहा है तो यह नियमों के खिलाफ है। ऐसे स्कूलों की जांचकर उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

गिरजेश कुमार चौधरी, डीआईओएस, मेरठ

Posted By: Inextlive