अमेरिका में दुनिया के सबसे बड़े फोन और इंटरनेट जन-जासूसी अभियान के सामने आने के बाद भारत में इसी तरह की ताजा तैयारियों को धार मिल गई है. प्रत्यक्ष रूप से अमेरिका पर झुंझला रही भारत सरकार दरअसल फोन व इंटरनेट की देशी निगहबानी को लेकर और सक्रिय होने जा रही है. ईमेल सर्च सोशल नेटवर्किंग के विशाल बाजार पर काबिज गूगल याहू और फेसबुक व ट्विटर जैसी विदेशी कंपनियों पर भारत से सूचनाएं साझा करने के लिए सख्ती बढ़ने वाली है.


अमेरिकी इलेक्ट्रानिक मॉनीटरिंग यानी जासूसी को भारतीयों की निजता में दखल मानना सरकार का दूसरा चेहरा है. दरअसल अब ग्लोबल इंटरनेट दिग्गज कंपनियों को भारत के साथ सूचनाएं साझा करने और भारत में सर्वर लगाने को कहा जाएगा. इनके जरिये ही भारतीय सूचनाएं अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों तक पहुंची हैं. दूरसंचार और इंटरनेट सेवा की देशी कंपनियां इस पहल में सरकार का समर्थन कर रही हैं, जो खुद पर सख्ती और विदेशी दिग्गजों को रियायत की शिकायत करती रही हैं. इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश छारिया ने कहा कि सरकार को इनके सर्वर भारत में लगाने का आदेश देना चाहिए.


भारत में फोन और इंटरनेट की केंद्रीय मॉनीटरिंग की प्रणाली हाल में ही शुरू हुई है. सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति से मंजूरी के जरिये खुफिया एजेंसियों को फोन टैपिंग, ई मेल स्नूपिंग, वेब सर्च और सोशल नेटवर्क पर सीधी नजर रखने के अधिकार मिले हैं. अलबत्ता गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट आदि को नई मॉनीटरिंग के प्रणाली के तहत लाना और उनके सर्वर में दखल देना भारतीय एजेंसियों के लिए मुश्किल हो रहा है. यह कंपनियां अपने सर्वर देश से बाहर होने और विदेशी कानूनों के तहत संचालन का तर्क देती हैं. ठीक इसी तरह की समस्या ब्लैकबेरी के साथ आई थी, जिसके सर्वर की मॉनीटरिंग व नियमों के तहत लाने के लिए खुफिया एजेंसियों को लंबी कवायद करनी पड़ी थी. इन्हीं कंपनियों के जरिये भारतीयों की सूचनाएं अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों को मिली हैं तो अब भारत में भी उन्हें इसी राह पर चलने को बाध्य किया जाएगा.उद्योग के सूत्रों के मुताबिक अमेरिकी जन जासूसी अभियान की रोशनी में भारत की इंटरनेट और मोबाइल कंपनियां ग्लोबल दिग्गजों की मॉनीटरिंग के फेवर में हैं. हालांकि कुछ देशी कंपनियां सरकारी मॉनीटरिंग के सिरे से खिलाफ भी हैं लेकिन उनका तर्क है कि नियम देशी व विदेशी कंपनियों के लिए एक जैसे होने चाहिए. अमेरिकी प्रिज्म का पहरा आम लोगों की निजता में अमेरिकी दखल पर पूरी दुनिया में सनसनी फैली हुई है. अमेरिकी सुरक्षा विभाग के इस इलेक्ट्रानिक मॉनीटरिंग अभियान (प्रिज्म) को दुनिया की सबसे बड़ी जन जासूसी कहा जा रहा है. अभियान को लेकर सामने आए तथ्य बताते हैं कि भारत इसका पांचवां सबसे बड़ा निशाना रहा है. जहां से बडे़ पैमाने पर सूचनाएं एकत्र की गई. लंदन के अखबार द गार्जियन के अनुसार भारत से करीब 6.8 अरब सूचनाएं एकत्र की गई हैं. अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियां गूगल, फेसबुक, स्काइप, माइक्रोसॉफ्ट सहित नौ इंटरनेट कंपनियों के सर्वर में सीधा दखल देकर सूचनाएं एकत्र कर रही हैं.

और भारत का प्रिज्म अमेरिका की तर्ज पर देश का पहला विशाल सेंट्रल मॉनीटरिंग सिस्टम हाल में ही शुरू हुआ है. इसके जरिये फोन, ईमेल, फेसबुक की गहन मॉनीटरिंग की जा रही है. इस पर स्वयंसेवी संस्थाओं को आपत्ति है. सोशल साइटों के दुरुपयोग पर हाल में पुलिस ने कार्रवाई भी है.  बाल ठाकरे के निधन के बाद फेसबुक पर टिप्पणी को लेकर दो युवतियों की गिरफ्तारी हुई. साथ ही ममता बनर्जी पर कार्टून बनाकर सोशल साइट पर डालने वाले प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद मौजूदा वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे के खिलाफ टिप्पणी को लेकर पुडुचेरी के व्यापारी को गिरफ्तार किया गया था. इसी तरह हैदराबाद में भी एक महिला की गिरफ्तारी हुई. भारतीयों की निगरानी पर अमेरिका से सफाई मांगेगा भारतभारत और अमेरिका के बीच दो सप्ताह बाद होने वाली रणनीतिक वार्ता में भारतीयों की साइबर जिंदगी में अमेरिकी तांकझांक भी एक अहम मुद्दा होगा. अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर दुनियाभर के लोगों की साइबर निगरानी कार्यक्रम के सार्वजनिक होने के बाद भारत अब इस मामले में अमेरिका से स्पष्टीकरण मांगने की तैयारी कर रहा है.

सूत्रों के मुताबिक इस महीने की 24 तारीख को भारत आ रहे अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी के साथ होने वाली रणनीतिक वार्ता के दौरान इस संबंध में बातचीत होगी. महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा भारत समेत कई देशों के लोगों के कंप्यूटरों में सेंध और उनकी निगरानी की बात सामने आई है. आम लोगों की निजता की हिफाजत के लिए बने कानूनों के मद्देनजर भारत की चिंता अपने नागरिकों के अधिकारों की हिफाजत को लेकर है.भारतीय विदेश मंत्रालय भी आधिकारिक प्रतिक्रिया में कह चुका है कि वह ताजा खुलासे से चिंतित है और आश्चर्यचकित भी है. मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अकबरुद्दीन के अनुसार मामले को अमेरिका के साथ साइबर सुरक्षा संवाद की व्यवस्था के तहत भी उठाया जाएगा. भारत की कोशिश होगी कि उसे अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा बटोरी गई सूचनाओं की जानकारी मिल सके.हालांकि अमेरिकी साइबर निगरानी के इस मामले में खुल रही नित-नई परतों के बीच भारतीय खेमा फिलहाल तस्वीर साफ होने का भी इंतजार कर रहा है. भारत में भी काफी धुंधले निजता कानूनों के मद्देनजर सबसे पहले उसे इस बात का निर्धारण करना होगा कि उसके नागरिकों के कौन-से कानूनी अधिकारों का उल्लंघन हुआ है और किस हद तक.

Posted By: Surabhi Yadav