केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लोकपाल बिल के मसौदे को मंज़ूरी दे दी है और अब ये विधेयक संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा.


हालांकि प्रस्तावित विधेयक के प्रभाव क्षेत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय और न्यायपालिका को शामिल नहीं किया गया है। कैबिनेट की सहमति के बारे में जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने बताया कि प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को इससे अलग रखा गया है लेकिन सभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री इस क़ानून के दायरे में रखे गए हैं.

उनका कहना था, ‘‘ इस विधेयक के अनुसार लोकपाल कमिटी होगी जिसके चेयरमैन वर्तमान या रिटायर जज होंगे। इसमें आठ सदस्य होंगे जिसमें से चार अनुभव प्राप्त क़ानून को जानने वाले लोग होंगे.’’

लोकपाल में जांच की समय सीमा सात साल रखी गई है। इस बारे में स्थिति और स्पष्ट करते हुए कैबिनेट मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना था, ‘‘ सात साल रखने की वजह ये है कि अगर कोई सरकार पाँच साल चले तो उसके बाद भी उस दौरान के किसी काम की जांच की जा सके.’’

इस विधेयक के दायरे में सभी सांसदों के संसद के भीतर और बाहर के कामकाज, मंत्रियों के कामकाज और उच्च श्रेणी के अधिकारियों के काम को रखा गया है। इसके अलावा कारपोरेशन, निगमों के कार्यकलाप को भी लोकपाल के दायरे में रखा गया है.

सलमान खुर्शीद का कहना था, ‘‘ हमने कुछ बदलाव किए हैं और अभी भी सुझावों का स्वागत है। स्थायी समिति को जाएगा मामला और उनके सुझावों को भी शामिल किया जाना है। लेकिन हम नहीं चाहते थे कि अनिश्चितता की स्थिति हो। पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए बिल को मानसून सत्र में रखने का निर्णय लिया गया है.’’

यह पूछे जाने पर कि लोकपाल विधेयक के सरकारी मसौदे का विरोध कर रहे अन्ना हजारे ने 16 अगस्त से इसके विरोध में अनशन करने का आह्वान किया है, तो सलमान खुर्शीद का कहना था कि मामला मानसून सत्र में संसद में चला जाएगा और कोई संसद के नियमों का विरोध करना चाहे तो कोई क्या कर सकता है.

लोकपाल के अधिकारों के अनुसार लोकपाल भ्रष्टाचार की जांच कुछ हद तक कर सकता है और मामले को न्यायायल तक भेज भी सकता है लेकिन उसे सज़ा सुनाने के अधिकार नहीं दिए गए हैं। इतना ही नहीं लोकपाल की अनुशंसा पर सीबीआई और सीबीआई के कई विशेष विंग मामलों की जांच करेंगे। इस बारे में उदाहरण देते हुए मंत्रियों ने बताया कि अगर मामला आर्थिक होगा तो सीबीआई की आर्थिक विंग इसकी जांच करेगी.

प्रेस कांफ्रेस के दौरान बताया गया कि इस बारे में राज्यों को पत्र लिखे गए हैं कि वहां भी विधानसभाओं में ऐसा बिल लाया जाए। हालांकि कुछ राज्यों में लोकायुक्त पहले से ही नियुक्त हैं.

सरकार का कहना था कि जो सज़ा होगी वो वर्तमान क़ानूनी धाराओं के तहत ही होगा क्योंकि समानांतर क़ानून नहीं बन सकते। लोकपाल का विरोध करने वालों के बारे में खुर्शीद ने कहा कि नागरिक समाज के कई सुझावों को माना गया है लेकिन पता नहीं क्योंकि नागरिक समाज के लोग अपने ही सुझावों को मज़ाक बता रहे हैं.

Posted By: Inextlive