DEHRADUN : दून वीरों की धरती है. जहां दून के कई वीरों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर यह साबित किया कि वे भारत माता के सच्चे सपूत थे तो वहीं उन शहीदों के परिवारों के जज्बे को भी सलाम जिन्होंने देश की रक्षा के दौरान अपनों को खोया है. दुखों के बीच उनके देशप्रेम में कोई कमी नहीं आई है. भले ही देश व सेना उनके बहादुर बेटे या पति के बलिदान को भूल ही क्यों न गई हो. कई शहीद परिवारों के सदस्यों का आज भी सेना में जाने का सिलसिला जारी रही है. आईए हम आपको कुछ ऐसे शहीदों के परिवारों से मिलाते हैं.

बेटा खोने के बावजूद सेना को दिया पोता
लाल बहादुर थापा और बेलमती देवी देश के सच्चे देशभक्त हैं, जिन्होंने आतंकी हमले में अपने सबसे छोटे बेटे को खोने के बावजूद अपने पोते को भी सेना के लिए समर्पित कर दिया। 14 जीटीसी सेंटर, 1/4 बटालियन के शहीद हवलदार अनिल कुमार थापा के माता-पिता बताते हैं कि उनके बेटे की बटालियन कुपवाड़ा से चंडीगढ़ पोस्टेड हो गई थी। 28 जून 2007 को उनका बेटा अपने कुछ साथियों के साथ कुपवाड़ा से सामान लेकर आ रहा था। अचानक उन पर आतंकी हमला हो गया। इस दौरान कई सैनिक बुरी तरह जख्मी हो गए। अपने साथियों को बचाने के दौरान अनिल को दो गोलियां लगी। अपनी परवाह किए बिना वह साथियों को गाड़ी तक पहुंचाता रहा। इसी बीच एक  गोली उसके माथे पर लगी और वह शहीद हो गया। थापा कहते हैं कि देश की सेवा करना हर भारतीय का कर्तव्य है इसलिए उन्होंने अपने बड़े बेटे के बेटे को भी सेना में जाने से नहीं रोका। वे खुद एक फौजी थे और उनकी पांचवीं पीढ़ी सेना में गई है। आंखों में आंसू लिए शहीद अनिल की पत्नी लक्ष्मी कहती हैं कि उन्हें अपने पति पर गर्व है।
बेटे के बलिदान से फर्क से ऊंचा हुआ सिर
भले ही शहीद मेजर संजय सिंह को याद कर बुजुर्ग माता-पिता का दिल टूट जाता है, लेकिन बेटे की शहादत हमेशा उनका सिर फर्क से ऊंचा कर देती है। कौलागढ़ निवासी एम प्रसाद और सुशीला देवी ने 16 साल पहले जम्मू-कश्मीर में 26 राजपूत यूनिट में पोस्टेड अपने बेटे संजय को आतंकवादी हमले में हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया था। एक ऑपरेशन में फायरिंग के दौरान उन्हें सात गोलियां लगी थी। आंखों में आंसुओं का सैलाब लेकर एम प्रसाद बताते हैं कि इतनी गोलियां लगने के बाद भी उनके बेटे के प्राण तभी गए जब उनकी टीम ने सभी आतंकियों को ढेर कर दिया। सुशीला देवी कहती हैं कि यह सोच कर मन व्याकुल हो जाता है कि दून के जिस आर्मी हॉस्पिटल से उनके बेटे ने भर्ती के लिए फिटनेस टेस्ट दिया था, उसी हॉस्पिटल में उसकी डेड बॉडी आई थी। वे बताते हैं कि बेटे के शहीद होने के बाद उनकी बहू ने सेना ज्वाइन कर ली। इस समय वह सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल है।

बेटा जाना चाहेगा तो रोकूंगी नहीं
6 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में मंजू अंथवाल के पति लायंस नायक शिव प्रसाद अंथवाल ने आतंकियों से लड़ते-लड़ते अपनी शहादत दे दी। भले ही देश व सेना इनके पति की शहादत को भूल गई है, लेकिन अपने देश के लिए मंजू का प्यार कम नहीं हुआ है। वह कहती हैं कि अगर उनका इकलौता बेटा सेना में जाना चाहेगा, तो वह उसे कभी नहीं रोकेंगी। मंजू कहती हैं कि पति के शहीद होने के बाद उन्हें ओएनजीसी में नौकरी मिली थी, लेकिन उस वक्त बेटा एक साल का था इसलिए नौकरी छोडऩी पड़ी। हालांकि यह वादा किया गया था उसे बाद में नौकरी दे दी जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक पेट्रोल पंप दिया गया, लेकिन वो भी मेरठ में। कई बार कोशिश की कि दून में ही पेट्रोल पंप मिल जाए, लेकिन इस देश में कितने ही शहीद हो रहे हैं यह कहकर उन्हें कई बार लताड़ दिया गया। उनके अनुसार अब पेंशन के सहारे ही बेटे की पढ़ाई-लिखाई करवा रही हूं।

भूल गई सेना, उत्तराखंड सरकार से नहीं मदद
मनोहर सिंह थापा कहते हैं कि मेरा बेटा देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुआ था और भारत माता की रक्षा करते हुए ही उसने अपना बलिदान दिया। कुपवाड़ा में तैनात 5/3 जीआर गोरर्खा रेजीमेंट के शहीद नीरज थापा ने सन 2002 में पेट्रोलिंग के दौरान अपनी जान गंवाई। उस वक्त वह महज 21 साल के थे। शहीद की मां सीता थापा बताती हैं कि उन्होंने छोटी सी उम्र में ही अपने बेटे को खो दिया। पहले सेना उनका हालचाल जानती थी और 15 अगस्त व 26 जनवरी को उनको बुलाया जाता था, लेकिन अब उन्हें नहीं बुलाया जाता है। वर्ष 2003 में उनके बेटे के नाम से शहीद द्वार बनाया गया है, लेकिन वो भी खुद उन्हें ही मेंटीनेंस करना पड़ता है। जबकि  उत्तराखंड सरकार की ओर से उन्हें किसी भी तरह की कोई मदद नहीं दी गई।

नहीं कर सकी पति के अंतिम दर्शन
देश की रक्षा के लिए जान गंवाने वाले पति पर लक्ष्मी क्षेत्री को गर्व है, लेकिन इस बात का बेहद दुख भी है कि वह अपने पति कमल कुमार क्षेत्री के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकी। लक्ष्मी बताती हैं कि दो जनवरी 1998 में मणिपुर में उनके पति 32 आरआर में पोस्टेड थे। एक ऑपरेशन के दौरान उनकी गाड़ी पर अटैक हुआ। यह आतंकी हमला इतना भयंकर था कि उनकी पति की बॉडी तक नहीं मिल सकी। वे कहती हैं कि उनका परिवार आर्मी से है। हर पीढ़ी से लोग आर्मी में जाते हैं। उनका एक बेटा और एक बेटी है। यदि बेटा आर्मी में जाना चाहेगा तो उसे उनका पूरा सपोर्ट रहेगा।

Posted By: Inextlive