आज अंतरिक्ष अभियान के क्षेत्र में भारत को एक बड़ी सफलता हासिल हुई. आज सुबह 9.30 बजे श्री हरिकोटा से भारत में बने सबसे बड़े रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण किया गया. प्रक्षेपण पूरी तरह से सफल रहा. ऐसे में इस बड़ी कामयाबी के बाद भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया है जो अंतरिक्ष में बड़े सेटेलाइट भेजने की काबिलियत रखते हैं. जीएसएलवी मार्क-3 को बनाने में 160 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं.


कुछ ऐसे अपनाई गई प्रक्रिया


आज सुबह 9.30 बजे आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया. इस अंतरिक्ष यान ने प्रक्षेपण के कुछ ही सेकंडों में अपने को दूसरे लांच पैड से अलग कर लिया और आकाश में तेजी से उड़ान भरी. यह अपने साथ 3.7 टन वजनी क्रू मॉड्यूल भी लेकर गया है, इस क्रू मॉड्यूल का आकार एक छोटे से शयनकक्ष के बराबर है, जिसमें दो से तीन व्यक्ति आ सकते हैं. प्रक्षेपण के पांच मिनट के बाद ही रॉकेट ने कप केक आकार के 3.7 टन वजनी बड़े से क्रू मॉड्यूल को 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर अलग कर दिया, जिसके बाद यह तेजी से धरती की ओर आने लगा. इस क्रम में इसकी गति का नियंत्रण इसरो के अधिकारियों ने इसमें लगे मोटर के जरिये किया. क्रू मॉड्यूल धरती पर अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के करीब बंगाल की खाड़ी में गिरा.मोदी ने दी वैज्ञानिकों को बधाई

मंगल यान की कामयाबी के बाद भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में मिली इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी. मोदी ने कहा कि आज देश को जो इतनी बड़ी सफलता हासिल हुई यह सब वैज्ञानिकों की मेहनत और लगन के बल पर मिली है. जीएसएलवी मार्क-थ्री काफी विशालकाय रॉकेट है. इस रॉकेट को लॉन्च करने के लिए कुछ दिन पहले इसरो के वैज्ञानिक बेहद ही सावधानी के साथ इस रॉकेट को लॉन्च पैड तक लेकर आए थे. जिओ सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल यानी जीएसएलवी मार्क-3 की यह पहली टेस्ट फ्लाइट है.अमेरिका चीन के बाद अब भारतजीएसएलवी मार्क-3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया. इसके सफल होने की पुष्िट इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने की है. वैज्ञानिको के मुताबिक इस रॉकेट का वजन 630 टन है. इसकी ऊंचाई करीब 42 मीटर है और यह 4 टन का वजन ले जा सकता है. इसकी सफल लॉचिंग से अब भारत का अंतरिक्ष में मानव भेजने का दावा और मजबूत हुआ है. इस रॉकेट के सहारे मानव अंतरिक्ष में आसानी से जा सकते हैं, क्योंकि इससे पहले अंतरिक्ष पर मानव भेजने की क्षमता सिर्फ अमेरिका और चीन के ही पास थी.

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Posted By: Satyendra Kumar Singh