टीवी के सितारे गुरमीत चौधरी ने फिल्म 'खामोशियां' से हिंदी सिनेमा में कदम रखा था। अब वह जेपी दत्ता निर्देशित 'पलटन' में सैन्य अधिकारी कैप्टन पीएस डागर की भूमिका में नजर आएंगे। उनके पिता भी सेना में रह चुके हैं। गुरमीत से बातचीत :
By: Swati Pandey
Updated Date: Mon, 03 Sep 2018 03:03 PM (IST)
मुंबई (ब्यूरो)। आपके पिता सेना में कार्यरत रहे हैं। सेना से जुड़ी आपकी कौन-सी यादें ताजा हुईं? मेरे दादा स्वतंत्रता सेनानी थे, पिता सेना में। मैं आर्मी अस्पताल में पैदा हुआ, आर्मी स्कूल में पढ़ाई की। पिता की ख्वाहिश थी कि मैं सेना ज्वॉइन करूं, जबकि मेरी चाहत एक्टर बनने की थी। मैंने सेना का रनिंग एग्जाम भी पास किया, फिर भागकर एक्टर बनने मुंबई आ गया था। पिता ने इस बात पर मुझसे तीन साल तक बातचीत नहीं की। दरअसल, हमारा आधा खानदान देशसेवा को समर्पित था। जब धारावाहिक 'रामायण' में भगवान राम की भूमिका से मुझे शोहरत मिली, तो पिता खुश हुए। उन्होंने बातचीत करना शुरू कर दिया।
'पलटन' को साइन करने के बाद कैसा अनुभव रहा?
दरअसल, कई बार फिल्म साइन करने के बाद भी शुरू नहीं होतीं या एक्टर बदल जाते हैं, इसलिए मैंने सेट पर जाने के बाद ही उसकी खबर लोगों से साझा करने का निश्चय किया था। मैंने जब पहली बार किरदार के लिए फौजी की वर्दी पहनी, तो डैड को वीडियो कॉल किया। हम दोनों बहुत इमोशनल हो गए थे। डैड को पहली बार रोते देखा। उन्होंने कहा कि फौजी बनने के समय तुम मुंबई भाग गए, पर अब थोड़ा फौजी तो बन गए। फिल्म भारत-चीन युद्ध पर आधारित है।
उस दौर में कैसी चुनौतियां रही होंगी? वर्ष 1962 युद्ध में चीन के छल-कपट के कारण हम उससे हार गए थे, लेकिन पांच साल बाद हुई जंग में हमने उस हार का बदला लिया था। उस युद्ध के बाद सिक्किम देश का हिस्सा बना। उस युद्ध का जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं है। हमारी जीत कम लोगों को पता है।
युद्ध को कैसे देखते हैं? घर में मैं अक्सर पिता से पूछता था कि आप जंग लड़ना नहीं चाहते? तो उनका जवाब होता था कि कोई सैनिक युद्ध नहीं लड़ना चाहता, मगर देश पर आंच आने पर सैनिक कभी पीछे नहीं हटता। युद्ध से बहुत नुकसान होता है। देश की इकोनॉमी तीस साल पीछे चली जाती है। 'पलटन' में हम कलाकारों को छोड़कर बाकी सब असल सैनिक थे। तीन महीने शूटिंग करते हुए लगा कि मैं वाकई फौजी हूं।
उस दौर में हथियार का प्रयोग कैसा था?
वर्ष 1967 में हमारे पास उन्नत हथियार नहीं थे, जबकि चीनी सैनिकों पास थे। हमारे सैनिक देश के लिए मर मिटते हैं, जबकि अन्य देशों के सैनिकों के पास हथियार और खाना न हो तो लड़ने से इन्कार कर देते हैं। हमारे सैनिकों के लिए भारत की धरती मां है। उसे कोई छूने की कोशिश करता है तो उन्हें नागवार गुजरता है। यह फिल्म देखकर फौजी भाइयों को बहुत खुशी होगी।
अपने किरदार के बारे में बताएं। मैंने कैप्टन पीएस डागर की भूमिका की है, जिनकी बहादुरी के किस्से भारतीय सैनिकों को सुनाए जाते हैं। मुझे उनके परिजनों से मुलाकात करने और उनके लिखे पत्रों को पढ़ने का अवसर मिला। ये पत्र उन्होंने अपने परिजनों और गर्लफ्रेंड को लिखे थे। शूटिंग स्थल पर अपने कमरे में मैंने उनकी फोटो लगा रखी थी। सुबह उठकर सबसे पहले उनकी फोटो देखता और उनसे आशीर्वाद मांगता कि इस फिल्म के जरिए दुनिया आपको जान सके।
'पलटन' से कैसे जुड़ना हुआ?
मेरे एक दोस्त ने बताया था कि जेपी दत्ता 'पलटन' बनाने जा रहे हैं। मैं जेपी दत्ता के साथ काम करना चाहता था। मैंने उससे दत्ता साहब से मुलाकात कराने को कहा। पांच दिन बाद हमारी मुलाकात हुई। मैं अपने बाल छोटे कराकर उनसे मिलने गया। मैंने उनसे कहा कि मेरा सपना आपके साथ काम करने का है और मेरा आर्मी बैकग्राउंड है। मैं छोटा-सा किरदार भी निभाने को तैयार हूं। उन्होंने छोटा नहीं, पीएस डागर का किरदार दिया।
स्मिता श्रीवास्तव। Posted By: Swati Pandey