DEHRADUN: इंडियन कल्चर में गुरु को भगवान से पहले माना जाता है और भगवान कई भुजाओं वाले होते हैं ऐसे में साफ है कि गुरुजी अष्टभुजक ही होंगे. सुनने में शायद यह अटपटा लगे लेकिन सरकार तो कम से कम स्कूल्स के टीचर्स को आठ भुजाधारी ही मानती है. हालात पर गौर करें तो एक हाथ से शिक्षा बांटने के साथ शिक्षक शेष हाथों से गैरशैक्षिक गतिविधियां संभालते हैं. जाहिर है कि इसका खामियाजा स्टूडेंट्स को भुगतना पड़ता है. गवर्नमेंट स्कूल्स में टीचर्स मूल जिम्मेदारी से ज्यादा वक्त सरकारी कामों को दे रहे हैं.

गिरता स्तर बयां कर रहा हकीकत

स्टेट के गवर्नमेंट स्कूल्स में लगातार स्टूडेंट्स का प्रदर्शन खराब होता जा रहा है। गौर करें तो नेशनल लेवल के एग्जाम्स में स्टेट के स्टूडेंट्स की सफलता औसत नेशनल लेवल के एवरेज से काफी खराब रहता है। इसमें आईआईटी, सीडीएस, एनडीए, मेडिकल समेत तमाम एंट्रेंस एग्जाम शामिल हैं। एक ओर गवर्नमेंट स्टेट को एजुकेशन हब के रूप में प्रचारित करती है, वहीं स्टेट के गवर्नमेंट स्कूल्स का गिरता स्तर हकीकत बयां कर रहा है। इसके पीछे की वजह पर गौर करें तो कहीं न कहीं सरकारी नीति ही असल कारण नजर आती है। दरअसल सरकार ने दो हाथों वाले शिक्षकों पर आठ हाथों का काम थोप रखा है और इसी का नतीजा है खराब शैक्षिक स्तर।

आधे टाइम स्कूल से बाहर

स्कूल्स में एजुकेशन के साथ बच्चों के लिए मिड़ डे मील की व्यवस्था करना, मतदाता सूची बनाना, आधार कार्ड में ड्यूटी, विभिन्न चुनावों में ड्यूटी, पोलियो जागरूकता अभियान की जिम्मेदारी, जनगणना, आर्थिक जनगणना समेत तमाम सरकारी कार्यों को वक्त देने की बाध्यता के चलते शिक्षक स्टूडेंट्स को वक्त नहीं दे पाते। बीते साल पर गौर करें तो जनगणना में ही आधे शिक्षक तीन-चार माह तक जुटे रहे। इसके अलावा चुनावों में ड्यूटी से भी शैक्षणिक काम प्रभावित हुए। इनके अलावा डिफरेंट टाइप के ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में शामिल होने की बाध्यता के कारण अमूमन शिक्षक सत्र में आधे वक्त स्कूल से बाहर ही रहते हैं। जाहिर है कि इस स्थिति में स्टूडेंट्स का लेवल इंप्रूव कर पाना पॉसिबल नहीं है। शिक्षक संगठन लंबे समय से इन सब कामों से मुक्त होने को लेकर मांग करते आ रहे हैं, लेकिन शिक्षा विभाग और शासन ने अभी तक इस ओर गौर नहीं किया है। विभाग का कहना है कि वह केवल शासनादेश का पालन कर उसके आधार पर टीचर्स की तैनाती कर रहा है।

2014 के लिए भी बैठे हैं तैयार

साल 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए इस दौरान होने वाले कार्यो के लिए भी स्टेट के टीचर्स कमर कसे तैयार बैठे हैं। हर बार की तरह इस बार भी चुनाव के दौरान टीचर्स की तैनाती लाजमी होगी। ऐसे में टीचर्स अभी से इस ड्यूटी के लिए भी मानसिक रूप से तैयार हो चुके हैं। वहीं स्टूडेंट्स के मन में सवाल है कि आखिर इस सत्र के आखिरी दौर में गुरुजी पढ़ाई के साथ-साथ अन्य जिम्मेदारियों को मैनेज करेंगे तो कैसे?
यह करने पड़ते हैं काम
1- मिड़ डे मील की व्यवस्था करना
2- मतदाता सूची बनाना
3- आधार कार्ड में ड्यूटी
4- इलेक्शन में ड्यूटी,
5- पोलियो जागरूकता अभियान
6- जनगणना
7- आर्थिक जनगणना
8- पशुगणना
9- बाल गणना
10-सब्जेक्ट्स की पढ़ाई
किसी भी गैर शैक्षिक कार्यो में टीचर्स की ड्यूटी लगाने के मामले पर पिछले साल सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया था जिसमें टीचर्स की ड्यूटी गैर शैक्षिक कार्यो में लगाने पर रोक लगा दी थी लेकिन इसके बाद भी अभी तक टीचर्स की ड्यूटीज लगाई जा रही है।
-सूरत सिंह तोमर, शिक्षक नेता
टीचर्स को दस पंद्रह दिनों तक इलेक्शंस में ड्यूटी देनी पड़ती है, इसके दो दिनों पहले जाकर व्यवस्थाएं करना और काम पूरा होने के बाद दो दिन बाद वापस आना। इसमें काफी टाइम लगता है। इसके अलावा मतगणना, बीएलओ, आधार कार्ड, बाल गणना, पशुगणना, आर्थिक जनगणना जैसे कई और कार्यो में भी ड्यूटी लगा दी जाती है। ऐसे में एक टीचर या एक क्लास ही नहीं बल्कि पूरा स्कूल सफर करता है।
-एसके श्रीवास्तव, टीचर, डीएवी इंटर कॉलेज
ऐसा नहीं है कि शिक्षा का स्तर इन एक्स्ट्रा ड्यूटीज के कारण गिर रहा है। इन ड्यूटीज को देखते हुए क्लासेज के लिए अतिरिक्त समय देकर कोर्स को कंप्लीट करा दिया जाता है। एजुकेशन के अलावा राष्ट्रीय कार्यक्रमों में शासनादेश के आधार पर ही टीचर्स की तैनाती की जाती है।
-एसपी खाली, मुख्य शिक्षा अधिकारी

Posted By: Inextlive