Bareilly: स्कूलों की मनमानी और पेरेंट्स की लाचारी किसी से छिपी नहीं है. अपने लाडलों के फ्यूचर के आगे पेरेंट्स हर वो सितम झेलने को तैयार हैं जिन्हें स्कूल मैनेजमेंट तमाम साम दाम दंड भेद अपनाकर ढहा रहे हैं. हल तभी निकलेगा जब इस लाचारी पर एक जोरदार पंच से चुप्पी टूटेगी. कैसे? ये आई नेक्स्ट आपको बता रहा है. आपके पास तमाम ऐसे हथियार हैं जिनसे आप इस मनमानी के खिलाफ पंगा ले सकते हैं.


सिटी के  पब्लिक स्कूलों ने अब तक अपने मुनाफे के लिए शासनादेशों को ठेंगा ही दिखाया है। पिछले कई साल से चली आ रही यह मनमानी अब अपने एक्सट्रीम स्टेज पर पहुंच चुकी है। स्कूल ताल ठोक कर मनमानी कर रहे हैं। वक्त आ गया है कि स्कूलों की इस मनमानी पर लगाम लगाने के  लिए पेरेंट्स एकजुट हों। वे शोषण के खिलाफ बिना डर के आवाज उठाएं। पर इसके लिए जरूरी है कि वे इस संबंध में अपने अधिकारों को जानें। अपनी ताकत को पहचानें। अब तक हम देखते आए हैं कि जो पेरेंट्स कहीं भी शोषण के खिलाफ  या स्कूलों की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उनके  बच्चों को स्कूल में मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान करना शुरू कर दिया जाता है। ऐसे में पेरेंट्स चाह कर भी अपने बच्चों के फ्यूचर की खातिर स्कूल्स के अगेंस्ट कोई कदम नहीं उठा पाते। मजबूरी में वे शोषण सहते हैं। अब वक्त आ गया है कि स्कूलों की मनमानी के इस दंभ को तोडऩे के लिए यूनाइट हों। नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों के अगेंस्ट आवाज उठाई जाए। क्यों नहीं लब खोलते हैं पेरेंट्स


प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के बावजूद भी पेरेंट्स उनके खिलाफ मुंह खोलने से कतराते हैं। इसकी कई वजह हैं। पेरेंट्स के मुताबिक स्कूल की किसी भी मनमानी का विरोध करने पर इसका सीधा असर बच्चे पर फिजिकल और मेंटल टॉर्चर के रूप में पड़ता है। कुछ इस तरह से होता है उत्पीडऩ- बच्चे को छोटी-छोटी बातों पर क्लास के सामने डांटकर।- एग्जाम्स में कम नंबर या फिर उसे फेल करके।- एक्स्ट्रा एक्टिविटीज में उस स्टूडेंट के अच्छे प्रदर्शन के बावजूद तवज्जो न देकर।- बच्चे पर बात-बात पर उसके फ्रेंड्स के सामने भी शर्मिंदा किया जाता है।यहां कर सकते हैं शिकायत प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के अगेंस्ट पेरेंट्स शिकायत भी कर सकते हैं। ये हैं ऑप्शंस - सीबीएसई से संबद्धता प्राप्त स्कूलों की शिकायत इन नंबर्स 011-22467263, 22023737 पर करें। इसके अलावा चेयरमैन के ईमेल आईडी-chmn-cbse@nic.in पर भी अपनी कंप्लेन दर्ज करा सकते हं। -पेरेंट्स अपनी शिकायत डीएम की अध्यक्षता में बनाई जाने वाली शुल्क निर्धारण एवं शुल्क नियमन कमेटी के सामने भी रख सकते हैं। -उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पेरेंट्स स्कूलों की मनमानी के विरोध में उपभोक्ता फोरम का दरवाजा कभी भी खटखटा सकते हैं।ये हैं पेरेंट्स के अधिकार

सीबीएसई और सीआईएससीई के स्कूलों की बढ़ती मनमानी पर लगाम कसने के लिए तमाम गाइडलाइंस जारी की गई हैं, जो पेरेंट्स और उसके लाडले को सिक्योरिटी प्रदान करते हैं। इनमें कुछ गाइड लाइंस खुद सीबीएसई और आईसीएसई ने जारी की हैं। कुछ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर आधारित हैं तो कुछ राज्य सरकार के शासनादेश और राइट टु एजुकेशन से संबंधित हैं। ऐसे तमाम रूल्स एंड रेगुलेशंस से पेरेंट्स अंजान हैं। वे अपने अधिकारों के प्रति अवेयर नहीं हैं। आइए एक नजर उन अधिकारों पर डालते हैं जो आपके लिए बनाए गए हैं।-केंद्र सरकार की गाइड लाइन के मुताबिक, दाखिले की प्रक्रिया गैर पक्षपातपूर्ण और पारदर्शी होनी चाहिए। एडमिशन के लिए बच्चे का आईक्यू लेवल जांचने के लिए किसी किस्म का टेस्ट नहीं लिया जा सकता, ना ही पेरेंट्स की स्क्रीनिंग की जा सकती है। निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई) की धारा 13 के तहत इसके लिए पहली बार में 25 हजार और अगले उल्लंघन पर 50 हजार का जुर्माना देना होगा।-आरटीई के अनुसार प्राइवेट स्कूलों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें रिजर्व रखनी होंगी।

-सीबीएसई और आरटीईनियमानुसार किसी भी स्कूल में स्टूडेंट्स और टीचर्स के रेशियो के तहत 30 स्टूडेंट्स पर एक टीचर होना जरूरी है। वहीं क्लास के किसी सेक्शन में 40 से ज्यादा स्टूडेंट्स नहीं होने चाहिए।-राज्य सरकार के शासनादेश के मुताबिक, कोई भी स्कूल तीन वर्ष से पहले नई फीस, नई यूनिफॉर्म, नया कोर्स लागू नहीं कर सकता है।-आरटीई की गाइड लाइन के मुताबिक, कोई भी अगर एडमिशन के समय रजिस्ट्रेशन फीस लेता है तो यह गैरकानूनी होगा। -बोर्ड के नियम के अनुसार, किसी स्टूडेंट के पेरेंट्स का ट्रांसफर होने या हेल्थ रीजन से स्कूल छोडऩे के समय स्कूल को दी गई फीस आप वापस ले सकते हैं।-शासनादेश के मुताबिक, किसी भी स्टूडेंट से एडमिशन प्रवेश के समय एक बार ही ली जा सकती है। एडमिशन के बाद हर साल एडमिशन फीस नहीं ली जा सकती है। -ट्यूशन फीस के अलावा, बिल्डिंग फीस, मेंटीनेंस फीस समेत वो फीस जिनका पढ़ाई से सीधा सरोकार नहीं है उसे स्टूडेंट्स से नहीं वसूल सकते।- स्कूल जो भी फीस स्टूडेंट्स से लेता है, उसकी रिसिप्ट देना जरूरी है अन्यथा शासनादेश के मुताबिक इसे अवैध वसूली कहा जाएगा।-फीस बढ़ाने के लिए स्कूल की मैनेजमेंट कमेटी को अध्यापक प्रतिनिधि, अभिभावक प्रतिनिधि और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा नामित समिति से विचार-विमर्श करना कम्पलसरी है।- स्कूलों को अपना ऑडिट बिल, छात्र संख्या, अंतिम वेतन बिल डीएम की अध्यक्षता में बनी कमेटी में रखना जरूरी है।
-आरटीई के अनुसार क्लास 8 तक के किसी भी स्टूडेंट्स को फेल नहीं किया जा सकता। साथ ही फेल के नाम पर उसे स्कूल से निकाला भी नहीं जा सकता और नही स्टूडेंट पर दोबारा एग्जाम देने का दबाव बनाया जा सकता है।पेरेंट्स के न बोलने की सबसे बड़ी वजह उन्हें प्रोटेक्शन न मिलना है। इसके लिए जरूरी है कि दो साल से संसद में लंबित पड़ा व्हिशिलब्लोअर बिल लागू किया जाए। इस बिल की खासियत यह है कि इसमें शिकायत करने वाले को प्रोटेक्शन देने का प्रावधान है।- डॉ। प्रदीप, लॉ एक्सपर्टस्कूलों की मनमानी को खत्म के लिए पेरेंट्स को ही आगे आना होगा। पर इसके लिए सबसे पहले उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा। जब तक पेरेंट्स अपने अधिकारों को नहीं समझेंगे, स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाना मुश्किल होगा।- मो। खालिद जिलानी, एडवोकेट, संयोजक पेरेंट्स फोरम

Report by: Abhishek Singh/ Nidhi Gupta

Posted By: Inextlive