Bareilly:इस बार यूपी बोर्ड एग्जाम डिस्ट्रिक्ट में बिल्कुल मजाक बन कर रह गया है. जिन कॉपियों पर स्टूडेंट्स ने बोर्ड एग्जाम दिए हैं उसे सिक्योरिटी और बंद गाडिय़ों की बजाय खुलेआम साइकिल रिक्शे और मोटरसाइकिल से कलेक्शन सेंटर पर पहुंचाया जा रहा है. ऐसी स्थिति में अगर इन कॉपियों के साथ कोई अनहोनी होती है तो फिर स्टूडेंट्स का क्या होगा? बहरहाल इस बार बोर्ड एग्जाम को डिस्ट्रिक्ट में जैसे-तैसे निबटाया ही जा रहा है.


ये खिलवाड़ क्यों?कदम-कदम पर बोर्ड स्टूडेंट्स के फ्यूचर के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। बिना किसी सिक्योरिटी के क्वेश्चन पेपर्स उठाए गए और सेंटर्स पर रखे गए। स्टूडेंट्स को जमीन पर बैठ कर एग्जाम देना पड़ रहा है। एजुकेशन माफिया ठेके पर नकल करा रहे हैं और अब स्टूडेंट्स की साल भर की मेहनत साइकिल और रिक्शे पर ढोई जा रही है। जिन कॉपियों में स्टूडेंट्स ने अपने फ्यूचर की ईबारत लिखी है उसके साथ स्कूल मैनेजमेंट और विभाग खिलवाड़ कर रहे हैं। उड़ाया जा रहा है माखौल


बोर्ड एग्जाम की शुचिता की धज्जियां उड़ाना जैसे यूपी बोर्ड का शगल बन गया है। कदम-कदम पर स्टूडेंट्स के फ्यूचर के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। जीआईसी में क्वेश्चन पेपर्स और कॉपियां पांच दिनों तक बिना किसी सिक्योरिटी के पड़ी थीं। एग्जाम सेंटर तक इन क्वेश्चन पेपर्स को बंद गाडिय़ों में बंदूकधारी पुलिस बल के बजाय खुले आम रिक्शे पर पहुंचाया गया। हद तो तब हो गई जब सेंटर्स इंचार्ज की मीटिंग में डीएम ने एग्जाम सेंटर पर रखे क्वेश्चन पेपर्स को सिक्योरिटी देने से साफ हाथ खड़े कर दिए। जैसे-तैसे बिना इनविजिलेटर्स और सिक्योरिटी के एग्जाम शुरू किया गया। कई सेंटर्स पर तो स्टूडेंट्स को बैठने के लिए फर्नीचर तक नसीब नहीं हुआ। उन्हें जमीन पर ही बैठ कर एग्जाम देना पड़ा। एग्जाम शुरू होने तक कहीं स्टूडेंट्स को एडमिट कार्ड नहीं मिले तो कहीं पर एग्जाम शुरू होने के बाद क्वेश्चन पेपर्स मुहैया कराए गए। ऐसी स्थिति में इसे बोर्ड एग्जाम कहना उचित हो गया क्या? कॉपियों की सुरक्षा नहींएग्जाम खत्म होने के बाद स्टूडेंट्स की कॉपियां कलेक्शन सेंटर्स पर साइकिल और रिक्शे पर पहुंचाई जा रही हैं। जो स्टूडेंट्स के फ्यूचर के साथ खिलवाड़ है। कभी भी इन कॉपियों के साथ कुछ गड़बड़ी हो सकती है। ये रास्ते में गिर सकती हैं, शरारती तत्व उन्हें लूट भी सकते हैं। इन कॉपियों को बंद गाडिय़ों में सिक्योरिटी के साथ कलेक्शन सेंटर तक पहुंचाना होता है। स्कूल मैनेजमेंट तो इस पर लापरवाही बरत ही रहा है साथ ही एजुकेशन ऑफिसर्स भी अपनी आंखें मूंदे बैठे हैं।पहले भी हो चुकी हैं घटनाएंबोर्ड ऐसी घटनाओं का पहले भी गवाह रह चुका है। स्टेट के कई डिस्ट्रिक्ट  में बोर्ड कॉपियों का सड़क पर मिलने जैसी घटनाएं हो चुकी हैं। बरेली की ही बात करें तो लास्ट ईयर बोर्ड एग्जाम में एक एग्जाम सेंटर की कॉपी सड़क पर मिली थी और दूसरे एग्जाम सेंटर की कॉपी स्टेनो के घर से बरामद की गई थी।

रूल्स तो बहुत हैं बोर्ड केबोर्ड एग्जाम को लेकर यूपी माध्यमिक शिक्षा परिषद, इलाहाबाद कदम-कदम पर स्ट्रिक्ट रूल्स गढ़े हैं। सेंटर फिक्स करने से लेकर क्वेश्चन पेपर्स और कॉपियों की सिक्योरिटी के साथ स्टूडेंट्स को कम्फर्टली एग्जाम दिलाने तक के लिए रूल्स और रेगुलेशंस बनाए गए हैं। क्लेक्शन सेंटर्स पर क्वेश्चन पेपर्स और कॉपियों की सिक्योरिटी के लिए पर्याप्त सिक्योरिटी फोर्स होनी चाहिए। एग्जाम सेंटर्स तक इन्हें बंद गाडिय़ों में पुलिस बल की निगरानी में पहुंचाने चाहिए। एग्जाम सेंटर पर क्वेश्चन पेपर की सिक्योरिटी के लिए भी पर्याप्त सिक्योरिटी होनी चाहिए। स्टूडेंट्स के लिए एग्जाम रूम में फर्नीचर होने चाहिए। स्पेस इतना होना चाहिए कि वे अपने आप को कम्फर्ट महसूस कर सकें। उनके द्वारा लिखी गई कॉपियों को भी पूरी व्यवस्था के साथ बंद गाडिय़ों में सिक्योरिटी की निगरानी में कलेक्शन सेंटर्स तक पहुंचाना चाहिए।

एग्जाम सेंटर से कलेक्शन सेंटर तक बोर्ड कॉपियों को पहुंचाने का जिम्मा डीआईओएस और डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन का होता है। उन्हें बंद गाडिय़ां और फोर्स मुहैया करानी चाहिए। रास्ते में कॉपियां गुम हो जाए तो इल्जाम सेंटर इंचार्ज पर आता है। कायदे से सेक्टर मजिस्ट्रेट को सभी सेंटर्स से कॉपियां कलेक्ट कर अपनी निगरानी में कलेक्शन सेंटर तक पहुंचाना चाहिए। हम लोगों को इसके लिए 6 रुपए पर डे के हिसाब से बोर्ड से मानदेय मिलता है। जो काफी कम है। टैक्सी से ले जाते हैं तो बिल पास नहीं होता।- डॉ। आरपी मिश्र, प्रदेशीय मंत्री उप्र माध्यमिक शिक्षक संघयह सेंटर इंचार्ज की जिम्मेदारी है कि वे कॉपियां कलेक्शन सेंटर पर किसी भी तरह से पहुंचाए। साइकिल से ले जा रहा है तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है। बंद गाड़ी में ले जाने पर खर्चा ज्यादा आता है, जिसकी मांग की भरपाई बोर्ड नहीं कर सकता। कोई मिसमैनेजमेंट होती है तो प्रिंसिपल और सेंटर इंचार्ज पूरी तरह से जिम्मेदार हैं।- राकेश कुमार, डीआईओएस

Report by: Abhishek Singh

Posted By: Inextlive