-व‌र्ल्ड हीमोफीलिया डे स्पेशल

-फैक्टर 8 की कमी से होती है जेनेटिक डिजीज

-अवेयरनेस ने बढ़ाए गोरखपुर में हीमोफीलिया के मरीज

GORAKHPUR : रानी की उम्र तीन साल है। जितना वह दूध पीती नहीं है, उससे अधिक दवा खाती है। रानी को लेकर उसके मां-बाप अक्सर टेंशन में रहते हैं। यह टेंशन बेटी की शादी की नहीं बल्कि हीमोफीलिया की है। जिससे रानी पीडि़त है। रानी की तरह गोरखपुर में ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं, जो इस खतरनाक बीमारी से पीडि़त है। जिसका इलाज पूरी लाइफ तक करना पड़ेगा। हालांकि हीमोफीलिया ग‌र्ल्स की अपेक्षा ब्वॉयज को अधिक सताती है। हीमोफीलिया जेनेटिक डिजीज है। मगर यह जरूरी नहीं कि हीमोफीलिया पैरेंट्स को है तो उनके बच्चे को भी जरूर हो। पिछले कुछ सालों में अवेयरनेस के चलते हीमोफीलिया के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं।

फैक्टर-8 की कमी बना रही हीमोफीलिया का मरीज

हीमोफीलिया जेनेटिक डिजीज है। ब्लड के प्लाज्मा में फैक्टर 8 और 9 की कमी से हीमोफीलिया डिजीज होती है। इस बीमारी में हल्की चोट भी जानलेवा हो सकती हैं क्योंकि छोटी सी चोट लगने पर भी ब्लीडिंग नहीं रुकती। जेनेटिक होने के कारण इस बीमारी के जीन नेक्स्ट जेनरेशन में भी पहुंच जाते हैं। अगर जीन साइलेंट रहा तो कोई प्रॉब्लम नहीं और एक्टिव हो गया तो हीमोफीलिया।

महंगा होने के कारण आसान नहीं है इलाज

फैक्टर -8 प्लाज्मा से सेपरेट किया जाता है। प्लाज्मा ब्लड से निकाला जाता है। एक यूनिट ब्लड से करीब फ्00 से फ्भ्0 एमएल प्लाज्मा निकलता है। जिसमें करीब क्0 से क्ख् एमएल फैक्टर होता है। इसके कारण यह काफी महंगा मिलता है। हीमोफीलिया में इसका यूज अक्सर होता है। मेडिकल कॉलेज में हर साल हीमोफीलिया के करीब क्भ्0 से अधिक नए मरीज मिलते हैं। वहीं पूरी उम्र तक इलाज कराने के कारण हीमोफीलिया के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है।

हीमोफीलिया जानलेवा बीमारी है क्योंकि इसमें एक बार ब्लीडिंग स्टार्ट हो जाए तो दोबारा नहीं रुकती। यह फैक्टर-8 की कमी से होता है। यह डिजीज जेनेटिक है। इस डिजीज का इलाज पूरी लाइफ चलता रहता है।

डॉ। आशीष अग्रवाल, पीडियाट्रीशियन

Posted By: Inextlive