सामान्यत: हमारी यह प्रवृत्ति होती है कि हम सुखद अनुभवों को भुला देते हैं और दुखद अनुभवों से चिपके रहते हैं- विश्व की 99 प्रतिशत जनसंख्या यही करने की आदी है।

ध्यान दो प्रकार से सहायता करता है- यह तनाव को तुम्हारे अंदर प्रवेश करने से रोकता है और पहले से इकट्ठा हुए तनाव को मुक्त करता है। यह निरंतर ध्यान, प्रसन्नता और तृप्तता की तरफ ले जाता है, मस्तिष्क संबंधी तंत्रों को सचेतन बनाता है तथा अंतज्र्ञान की तरफ ले जाता हैं। (अर्थात् देखने, स्वाद लेने, स्पर्श आदि के अनुभव को और अधिक गहन बनाता है) हमारे दैनिक जीवन में ध्यान को आत्मसात करने के साथ ही चेतना की पांचवी अवस्था, जिसे लौकिक चेतना कहते हैं, उदय होती है।

लौकिक चेतना क्या है?

संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वयं के एक अंश की तरह बोध करना लौकिक चेतना है। जब हम विश्व को अपने अंश की तरह से बोध करते हैं तो हमारे और विश्व के बीच में तीव्र गति से प्रेम का संचार होता है। यह प्रेम, हमें विरोधात्मक शक्तियों तथा जीवन के झंझावातों को वहन करने की क्षमता प्रदान करता है। क्रोध तथा निराशा, क्षणभंगुर भावनाएं हो जाती हैं जो क्षणभर के लिए आती हैं और फिर लुप्त हो जाती हैं। वे रुकती नहीं हैं। सामान्यत: हमारी यह प्रवृत्ति होती है कि हम सुखद अनुभवों को भुला देते हैं और दुखद अनुभवों से चिपके रहते हैं- विश्व की 99 प्रतिशत जनसंख्या यही करने की आदी है। लेकिन जब हमारी चेतना ध्यान के द्वारा सुसंस्कृत होकर मुक्त हो जाती है, तो नकारात्मक भावनाओं को पकड़े रहने की हमारी यह प्रवृत्ति सबसे पहले समाप्त होती है।

ऐसे सत्य का उदय होता है


हम 'इस क्षण’ में जीवित रहना प्रारंभ कर देते हैं और भूतकाल को भूलने लगते हैं। जब हम इसे भूलने में सक्षम हो जाते हैं और चेतना की योग्यता को प्रत्येक क्षण की गरिमा में आनंदोत्सव मनाने के लिए केंद्रित करते हैं, तो हमें कवच के रूप में सुरक्षा मिलती है। हमारे अंदर इस सत्य का उदय हो जाता है, कि प्रत्येक क्षण हमें आश्रय प्रदान करता है और हमारे विकास में सहायता देता है। इस प्रकार चेतना की उच्चतम अवस्था को प्राप्त करने के लिए गूढ़ योजना बनाने की नहीं, यह सीखने की आवश्यकता है कि भूतकाल भुला दिया जाए।

चेतना की पौध हमारे भीतर है


जैसे तुम्हारी चेतना खुलती है, सारा तंत्र भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से उन्न्त हो जाता है। तुम्हारा जीवन जीने योग्य बन जाता है। किसी सुहावने प्रात:काल में तुम्हारे सिर के ऊपर चेतना की उच्चतम अवस्था स्वर्ग से आकर नहीं गिरती है। चेतना की पौध तुम्हारे अंदर है- ध्यान की सहज तकनीकों से इसे विकसित करने की आवश्यकता है। कोई ताड़ का वृक्ष 3 वर्षों में फल देता है, कोई 10 वर्षों में। ज्ञान, बोध और साधना का संगम इसे परिपूर्ण बनाता है।

श्री श्री रवि शंकर

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Posted By: Kartikeya Tiwari