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- शुभ कार्य करना अशुभ रहेगा, जातक विधि विधान से करें पूजन

- ज्योतिष शास्त्रों में होलाष्टक को लेकर कई सारी हैं मान्यताएं

BAREILLY: फाल्गुन सदी अष्टमी यानि पांच मार्च से होलाष्टक लगेंगे। इसके साथ ही अगले आठ दिन तक शुभ एवं मांगलिक कायरें पर विराम लग जाएगा। पंडित राजीव शर्मा के अनुसार प्रमुख धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भक्त प्रहलाद के यातना काल के आठ दिनों को होलाष्टक माना जाता है। इसकी निवृत्ति होली पर 12 मार्च को पूर्णिमा तिथि में रात 8.23 से पूर्व होलिका दहन के साथ होगी। होलाष्टक के इन आठ दिनों की अवधि में नामकरण, विवाह, गृह प्रवेश और अन्य अनुष्ठान पर रोक रहेगी।

विधान से करें पूजन

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा से पहले अष्टमी को चन्द्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रियोदशी को बुध, चतुर्थदशी को मंगल और पूर्णिमा (होलिका दहन के समय) को राहू, केतु का उग्र प्रभाव होता है। होलाष्टक के दिन से होलिका पूजन करने के लिए होलिका वाले स्थान को साफ करके सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास व होली का डंडा गाड़ देते हैं। फिर उसका पूजन किया जाता है। इस दिन आम की मंजरी तथा चन्दन मिलाकर खाने का बड़ा महत्व है।

यह है मान्यता

5 से 12 मार्च तक होलाष्टक रहेगा। मान्यता है कि इन दिनों में देवाधिदेव भगवान शिव के बायीं ओर आद्याशक्ति रूपादेवी पार्वती का सानिध्य होता है। विश्व विनाशक देवों में अग्रणी पूज्य गणेश भी अपनी दोनों पत्‍ि‌नयों रिद्धि-सिद्धि के साथ प्रेमालाप करते हैं। यह भी मान्यता है कि शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास करने पर कामदेव को शिव ने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना मांगी। फिर कामदेव को पुनर्जीवन प्रदान करने का आश्वासन दिया।

5 मार्च से 12 मार्च तक होलाष्टक का प्रभाव रहेगा। इस दौरान ग्रहों का प्रभाव अशुभ होने से शुभ कार्य करना वर्जित होता है।

पं। राजीव शर्मा, ज्योतिषाचार्य

Posted By: Inextlive