मुश्किलों से गुज़र रही भारतीय अर्थव्यवस्था के बीच भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने अपने पहले भाषण से सकारात्मक संकेत दिए हैं.


सबसे पहली बात तो ये कि वो नया चेहरा हैं. उनके पास अंतरराष्ट्रीय अनुभव है और उनकी साख है कि उन्होंने 2008 के वित्तीय संकट की पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी.वो अपनी वही छवि साथ लेकर आए हैं.उन्होंने सारे मुद्दों को जिस तरह से संदर्भ में रखा वो काफ़ी तर्क संगत था.अपने भाषण के अंत में उन्होंने रुडयार्ड किपलिंग की पंक्तियों का इस्तेमाल कर भारत के आर्थिक संघर्ष का सार पेश किया कि आप अपने विश्वास पर चलिए, अपनी ताक़त के साथ चलिए औऱ जो दुरुस्त करने की ज़रूरत है उसे दुरूस्त कीजिए.आशाएंशुरूआत में उन्होंने अपने जो अपने विचार रखे उसमें उन्होंने मुख्य रूप से मौद्रिक नीति, मुद्रास्फीति, समेकित विकास की बात की, सुधारों की तरफ़इशारा किया.भले ही साफ़ तौर पर न कहा हो लेकिन इशारा किया कि बैंकों को और स्वायत्ता, आज़ादी मिलनी चाहिए.


मतलब साफ़ है कि नए बैंकों को लाइसेंस मिलना तय लगता है. जनवरी तक नए बैंकों को उतार कर प्रतियोगिता बढ़ाने की बात कही है.इस वक्त बैंकों को नई शाखाएं खोलने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है जिसे उन्होंने खारिज कर दिया. इस तरह की उनकी बातों से बाज़ार को एक नई उम्मीद दिखाई दे रही है.

कुल मिलाकर राजन ने वर्तमान स्थिति का जो खाका खींचा उससे काफ़ी आशाएं बंधती हैं. साथ ही उन्होंने आम आदमी के मन में जो खटास है उसकी भी बात की.ब्याज दरएक आदमी उनसे उम्मीद रख जा सकता है क्योंकि वो पारदर्शी हैं, अलग सोच रखते हैं.उनके पास खुली अर्थव्यवस्था में काम करने का अनुभव है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके हैं.उनके पास वो सारी जानकारी है जिसके आधार पर रिज़र्व बैंक का मौद्रिक प्रबंधन बेहतर होगा.लेकिन महंगाई वो तभी कम कर पाएंगे जब सरकार अपनी आमदनी और ख़र्च का फ़ासला घटाएगी.कुछ ठोस क़दम उठाए जाएंगे जैसे वितरण श्रृंख्ला को दुरूस्त करना, कृषि उपज का विकास और आपूर्ति को बढ़ावा. तभी महंगाई को कम कर पाना मुमकिन होगा.आरबीआई के पूर्व गर्वनरों समेत कई आर्थिक विश्लेषक भी ये मानते हैं कि ब्याज दरों को ऊंचा रखने से मुद्रास्फीति पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि विकास प्रभावित हो रहा है.दूसरी बात ये है कि पहली तिमाही में 4.4 फ़ीसदी की जो सकल घरेलू विकास दर है उसे देखते हुए उम्मीद कर सकते हैं कि ब्याज दरों में कुछ राहत देकर वो एक माहौल पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं.

हांलाकि रघुराम राजन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि राज करने वालों को वे ये समझा पाएं कि आर्थिक स्थिति गंभीर है और जिन उपायों की ज़रूरत है वो किए जाएं.आरबीआई गवर्नर एक हद तक ही कुछ कर पाने की स्थिति में होता है. जैसे एक क्रिकेट कप्तान सिर्फ़ मैदान सजा सकता है लेकिन अगर गेंदबाज़ ठीक से बॉलिंग न करे या क्षेत्ररक्षण सही न हो तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी.

Posted By: Satyendra Kumar Singh