RANCHI: झारखंड पुलिस के जवानों के इलाज के लिए राज्य सरकार ने ख्.भ्0 करोड़ की लागत से होटवार स्थित जैप-क्0 कैंपस में भ्0 बेड का सेंट्रल पुलिस हॉस्पिटल बनाया है, जो अब बैरक बनकर रह गया है। इस जी प्लस वन बिल्डिंग में इलाज नहीं, जवानों के लिए खाना पक रहा है।

जांच घर में भी जवानों के बिस्तर

हॉस्पिटल के वार्ड से लेकर किचन, बरामदा और जांच घर तक में जवानों के बिस्तर लगे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने इस हॉस्पिटल का निर्माण कराया था, ताकि जैप, सैप, जगुआर, जिला पुलिस, आईआरबी, अग्निशमन समेत अन्य जवानों और उनके परिजनों का इलाज हो सके।

तीन साल से बिल्डिंग तैयार, उद्घाटन नहीं

तीन साल में हॉस्पिटल शुरू ही नहीं हो सका। जबकि भवन बना, एक्सरे मशीन लगी, अल्ट्रासाउंड जांच की सुविधा भी है। हॉस्पिटल शुरू कराने को लेकर न सरकार गंभीर है और न पुलिस विभाग के आला अधिकारी। फलस्वरूप जवानों और उनके परिजनों को इलाज के लिए या तो रिम्स जाना पड़ता है या निजी अस्पताल या नर्सिंग होम। वह भी निजी खर्चे पर। हॉस्पिटल बनवाने के लिए झारखंड पुलिस एसोसिएशन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश्वर पांडेय ने भी काफी भाग-दौड़ की थी, लेकिन तीन साल से भवन बन कर तैयार होने के बाद भी जवानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। अखिलेश्वर पांडेय अभी साहेबगंज में पदस्थापित हैं।

इस्तेमाल से पहले ढहने लगीं दीवारें

नवनिर्मित हॉस्पिटल भवन की हालत धीरे-धीरे खराब होने लगी है। फ‌र्स्ट फ्लोर पर सामने की खिड़कियों में लगे शीशे टूटने लगे हैं। दीवारों में कई जगह दरारें भी पड़ चुकी हैं, जबकि अभी तक इसका इस्तेमाल भी शुरू नहीं हुआ है। वहीं, ऑपरेशन थियेटर का इस्तेमाल स्टोर रूम के रूप में किया जा रहा है। कैजुअल्टी के सामने के कॉरीडोर में सड़क को ब्लॉक करनेवाली मोबाइल बैरिकेडिंग लगाई गई है, ताकि जवानों की आवाजाही बंद रहे। यहां एक रैंप भी बना है, जिसके सहारे मरीज ट्राली या व्हीलचेयर से वार्ड तक आना-जाना कर सकते हैं।

जहां-तहां टंगे रहते हैं कपड़े

हॉस्पिटल में पुलिस के जवानों के लिए अस्थाई रूप से रहने की व्यवस्था की गई है। जवान यहां आते हैं और दो-तीन महीने रह कर लौट जाते हैं। इनके अलावा खिलाड़ियों को भी यहां ठहराया जाता है। हॉस्पिटल में चारों ओर फोल्डिंग बेड लगे हैं। जहां-तहां कपड़े टंगे हुए हैं। बिस्तर पर दिन में भी मच्छरदानी टंगी रहती है। दरवाजों पर जवानों के लिए नोटिस चिपका है, जिस पर लिखा है-दीवारों पर कील नहीं ठोकें, साफ-सफाई का ध्यान रखें, आवागमन के लिए पिछले दोनों दरवाजों का इस्तेमाल करें। लेकिन यहां रह रहे जवान इससे बेखबर हैं। जहां-तहां फोल्डिंग बेड लगे हैं।

न सरकार गंभीर, न पुलिस मुख्यालय

झारखंड पुलिस मेंस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष राकेश कुमार ने कहा कि अस्पताल पिछले कई सालों से बनकर तैयार है। इस पर न तो सरकार गंभीर है और न पुलिस मुख्यालय। अस्पताल चालू नहीं होने की स्थिति में जवान और उनके परिजन बाहर के अस्पतालों में अपना इलाज करवा रहे हैं।

Posted By: Inextlive