आमतौर पर रिश्ते तीन प्रकार के होते हैं- दो प्रकार के पारस्परिक रिश्ते और एक दुनिया के साथ हमारा रिश्ता। इनमें सबसे महत्वपूर्ण खुद के साथ हमारा रिश्ता है क्योंकि यही दूसरों के साथ हमारे रिश्ते के आधार को मजबूत बनाता है। आमतौर पर लोग खुद के साथ अपने रिश्ते के बजाय दुनिया के साथ रिश्ते के बारे में ज्यादा सोचते हैं।

हम धार्मिक आध्यात्मिक रिश्ते कैसे बना सकते हैं?

आमतौर पर रिश्ते तीन प्रकार के होते हैं- दो प्रकार के पारस्परिक रिश्ते और एक दुनिया के साथ हमारा रिश्ता। इनमें सबसे महत्वपूर्ण खुद के साथ हमारा रिश्ता है, क्योंकि यही दूसरों के साथ हमारे रिश्ते के आधार को मजबूत बनाता है। आमतौर पर लोग खुद के साथ अपने रिश्ते के बजाय दुनिया के साथ रिश्ते के बारे में ज्यादा सोचते हैं। ऐसा करके वे खुद को नि:स्वार्थ और आध्यात्मिक महसूस करने की कोशिश करते हैं, जबकि सच यह है कि आपके खुद के साथ जो रिश्ता है, वही दूसरों के साथ के रिश्ते के लिए नींव का काम करेगा।

शुरुआत हमें अपने भीतर से करनी होगी

आप खुद सोचिए कि हमारे भीतर वह कौन है, जो दूसरों से संबंध रखता है? अगर मेरा और आपका रिश्ता है, तो उसमें 'मैं’ कौन है? अगर मेरा लक्ष्य आपके साथ अपने रिश्ते को बनाए रखना है, तो जब तक मैं अपने साथ रिश्ते में तालमेल नहीं बना पाती, तब तक मैं आपके साथ भी किसी तरह का रिश्ता निभाने में सक्षम नहीं बन पाऊंगी। ऐसे ही अगर हम दुनिया से रिश्ता रखना चाहते हैं, तो उसकी शुरुआत हमें अपने भीतर से करनी होगी।

हमारी पहचान सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं

हममें से ज्यादातर लोग जब खुद को शीशे में देखते हैं, तो कहते हैं, 'मैं ठीक हूं, लेकिन अगर मैं थोड़ा और... खुद के बारे में ऐसा बोलना या सोचना गलत है, क्योंकि खुद से ऐसा कहकर हम शरीर की बनावट पर सवाल खड़ा करते हैं और यह मानने लगते हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते। असल में हमारी पहचान सिर्फ शरीर तक सीमित नहीं है, इसलिए धार्मिक रिश्ता सबसे पहले खुद के साथ होना चाहिए।

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Posted By: Kartikeya Tiwari