मनुष्य यह समझता ही नहीं है कि जो दूसरों के लिए आवश्यक है वह जरूरी नहीं कि उसके लिए भी आवश्यक हो। इसी चक्कर में ज्यादातर लोग व्यर्थ का काम किए जाते हैं बिना यह समझे कि वाकई यह उनके जीवन की आवश्यकता है भी कि नहीं?

एक बार रामकृष्ण परमहंस अपने शिष्यों के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। तभी एक अकड़ू संन्यासी वहां आ पहुंचा। रामकृष्ण परमहंस को नीचा दिखाने के उद्देश्य से संन्यासी ने उनसे पूछा कि आपको पानी पर चलना आता है? रामकृष्ण ने सीधी भाषा में कहा- नहीं, मैं पानी पर चलना नहीं जानता हूं, परंतु जीवन में उसके बगैर मेरा काम अटक भी नहीं रहा है। हां, जमीन पर चलना मैं अच्छे से जानता हूं और वह मुझे रोजमर्रा के उपयोग में भी आता है।

यह सुनते ही उसने तनते हुए कहा-अपनी कमजोरी को अच्छे शब्दों में छिपाने की कोशिश मत करो और मेरे हुनर को देखो। वह सबको नदी किनारे ले गया और पानी पर चलकर नदी के दूसरे किनारे तक गया और वापस लौट भी आया। रामकृष्ण ने तत्काल एक नाविक से दूसरे किनारे तक घूम आने की इच्छा व्यक्त की और मात्र दो पैसे में घूम कर आ गए।

20 साल में दो पैसे वाली कला

फिर पलटकर उस संन्यासी के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले- मित्र, यह बताओ कि यह कला सीखने में तुम्हें कितने वर्ष लगे? वह बोला-बीस वर्ष। यह सुनते ही रामकृष्ण जोर से हंस दिए। हंसते-हंसते ही बोले-बीस वर्षो के अथक प्रयास के बाद कला सीखी भी तो दो पैसे वाली। यह गलती हर मनुष्य दोहराता है।

जरूरी क्या है ये समझें


वह इस छोटे-से जीवन में समय का मूल्य जानता ही नहीं है। मनुष्य यह समझता ही नहीं है कि जो दूसरों के लिए आवश्यक है, वह जरूरी नहीं कि उसके लिए भी आवश्यक हो। इसी चक्कर में ज्यादातर लोग व्यर्थ का काम किए जाते हैं, बिना यह समझे कि वाकई यह उनके जीवन की आवश्यकता है भी कि नहीं? वस्तु कितनी ही महान व मूल्यवान क्यों न हो, यदि वह आपका जीवन बढ़ाने वाली नहीं, तो आपके लिए वह दो-कौड़ी की ही होगी।

ऐसे लोग होते हैं बुद्धिमान

इसी तरह अरबों नौजवान डिग्रियां हासिल करने के लिए अपने जीवन के बहुमूल्य बीस वर्ष गंवा देते हैं। वे कभी यह परखने की कोशिश ही नहीं करते कि वाकई जीवन में इन डिग्रियों का महत्व है भी या नहीं? वे भूल ही जाते हैं कि यहां जीवन में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिल रहा है। अत: जीवन में कुछ भी हासिल करने हेतु समय व शक्ति लगाने से पूर्व आपको अपने जीवन में उसका महत्व अवश्य जान लेना चाहिए। कहीं आपकी सारी कोशिश व्यर्थ ही न जा रही हो? इसलिए जो मनुष्य किसी भी प्रकार के कोई भी प्रयास से पूर्व प्रयास से प्राप्त होने वाले परिणाम की उपयोगिता तथा व्यय होने वाले समय व शक्ति के गणित को माप-तौल लेता है, असल में वही बुद्धिमान है।

जिन्होंने भी बड़ी सफलताएं पाई हैं, उन्होंने क्षण-क्षण का उपयोग कर ही पाई हैं। हजार अनावश्यक कार्य में लगने वाली अपनी ऊर्जा बचाकर पाई हैं। अगर आप भी सफल होना चाहते हैं, तो जरूरी और गैर जरूरी के बीच स्पष्ट अंतर को अच्छे से पहचान लें।

दीप त्रिवेदी, लेखक मोटीवेशनल स्पीकर हैं।

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Posted By: Kartikeya Tiwari