-शहर में बनने वाले हर एक अवैध निर्माण का हिसाब होता है एनफोर्समेंट टीम के पास

-एनफोर्समेंट टीम की मिलीभगत से तनती हैं अवैध बिल्डिंग, हर अवैध निर्माण की तय होती है कीमत

- कभी सत्ताधारी तो कभी प्रभावशाली नेताओं के कारण नहीं रोके जाते अवैध निर्माण

KANPUR: कर्नलगंज और चमनगंज में बहुमंजिला इमारतें झुकने और दरारें पड़ने के बाद गज्जूपुरवा में अवैध रूप से बनाई जा रही 6 मंजिला बिल्डिंग 9 लोगों की कब्रगाह बन गई। हैरानी इस बात की है कि सिटी में ऐसी एक नहीं बल्कि सैकड़ों बिल्डिंग बन चुकी हैं और उससे भी ज्यादा बन रही हैं, जो कभी भी ताश के पत्तों की तरह ढह सकती हैं। इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आखिरकार कैसे अवैध रूप से इतनी ऊंची-ऊंची इमारतें तन जाती हैं? इन्हें बनने से क्यों नही रोका जाता है? आखिर वो कौन लोग हैं, जिनकी सरपरस्ती में ये मौत की इमारतें बनती जा रही हैं। आज आई नेक्स्ट इन सब वजहों का खुलासा करने जा रहा है।

अवैध निर्माण का गढ़ बना शहर

पहले हम बताते हैं कि सिटी में किस कदर अवैध निर्माण हो रहा है। फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में केवल दिसंबर तक केडीए 1221 अवैध निर्माण चिन्हित कर चुका है। इनमें से केवल 110 अवैध निर्माण दिसंबर तक सील हुए हैं और 89 ही तोड़े गए हैं। पर हकीकत केडीए की रिपोर्ट से कहीं ज्यादा भयावह है। सैकड़ों की संख्या में अवैध रूप से बिल्डिंग बन रही हैं या बन चुकी है। एनफोर्समेंट टीम की मिलीभगत से सीलिंग के बाद भी इन पर कोई फर्क नहीं पड़ा और इन्हें ध्वस्तीकरण आदेश की भी कोई परवाह नहीं है, केडीए की सील तोड़कर बिल्डिंग बनाई जा रही हैं। बिल्डिंग बाईलॉज की धज्जियां उड़ाते हुए ये बिल्डिंग्स कहीं केडीए के एनफोर्समेंट टीम के सेटिंग-गेटिंग के फॉमूले के बल पर खड़ी हो गईं तो कहीं सत्ता की धमक और कहीं अफसर व अन्य प्रभावशाली लोगों के दवाब से अवैध रूप से ऊंची बिल्डिंग तन रही है।

हर कंस्ट्रक्शन की जानकारी

जानकारों के मुताबिक सिटी में होने वाले हर एक निर्माण की खबर एनफोर्समेंट टीम को होती है। चाहे मल्टीस्टोरी बन रही हो या 100-50 स्क्वॉयर मीटर में कोई घर बनाया जा रहा हो। जैसे ही स्लैब डालने की तैयारी होती है केडीए का सुपरवाइजरी स्टॉफ मौके पर पहुंच जाता है। जांच, पड़ताल शुरू कर देता है। नक्शा मांगा जाता है। अगर नक्शा पास भी है तो वे मैप के मुताबिक निर्माण न किए जाने के कारण सील करने, निर्माण तोड़ डालने की धमकी देने लगते हैं। जिससे जिन्दगी भर की जमापूंजी से घर बनवा रहे लोग दवाब में आ जाते हैं। फिर सेटिंग-गेटिंग का खेल शुरू हो जाता है। कभी प्रति स्लैब तो कहीं प्रति स्क्वॉयर मीटर कंस्ट्रक्शन एरिया के मुताबिक सुविधा शुल्क वसूला जाता है। सेटिंग हो जाने इम्प्लाइ सब कुछ भूल जाते हैं। मनचाही अवैध बिल्डिंग बनाने का ग्रीन सिग्नल दे देते हैं। चाहे बिल्डिंग में मजबूती का ख्याल रखा जा रहा हो या नहीं।

सत्ता के आगे नतमस्तक

अगर सत्ताधारी दल या अन्य कोई प्रभावशाली नेता आदि अवैध रूप से बिल्डिंग बना रहा है तो फिर इम्प्लाई तो दूर नॉर्मली अफसर भी उसे रोकने की हिम्मत नहीं करते हैं। क्योंकि उन्हें डर सताने लगता है कहीं जोन में हो रहे अवैध निर्माणों की शिकायत सीनियर ऑफिसर्स से या शासन तक से न कर दें। जिससे उनका सेटिंग-गेटिंग का पूरा खेल बिगड़ सकता है। हालांकि ऐसे मामलों में कभी जांच होने पर कार्रवाई से बचने के लिए अफसर कागजी नोटिस जारी करने से नहीं चूकते हैं। ये जरूर है कि नोटिस नेताओं तक नहीं पहुंचती है।

पहले से तय होता है

यूनिट हाउस का मैप पास कराकर मिनी अपार्टमेंट तानने वालों के लिए एनफोर्समेंट टीम को सेटिंग-गेटिंग के लिए कुछ खास-मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। ऐसे बिल्डर खुद ही संबंधित एनफोर्समेंट टीम के इंजीनियर्स से मिलकर मौजूदा चल रहे रेट पर बात तय कर लेते हैं। यही वजह है कि शहर में ज्यादातर मिनी अपार्टमेंट में एक-एक नहीं दो-दो, तीन-तीन फ्लोर तक एक्स्ट्रा तान लिए गए हैं। जिनकी कम्पाउंडिंग भी केडीए नहीं कर पा रहा है।

लंबी- चौड़ी टीम

सिटी में अवैध निर्माण को रोकने की जिम्मेदारी केडीए की एनफोर्समेंट टीम की है। जो 4 जोन में बंटी हुई है। हर एक जोन का एक एनफोर्समेंट इंचार्ज है, जो नॉर्मली एक्सईएन होता है। एक्सईएन के अलावा एक असिसटेंट इंजीनियर और जोन एरिया छोटा-बड़ा होने के हिसाब से कई-कई जूनियर इंजीनियर्स की तैनाती की जाती है। इसके अलावा सुपरविजन के लिए हर जोन में सुपरवाइजरी स्टॉफ के रूप में सुपरवाइजर, मेट, चपरासी आदि लगे होते हैं।

जोन- अवैध निर्माण- सील- डेमोलेशन ऑर्डर - गिराए

एक- 427-- 65-- 266- 03

दो- 187-- 15-- 128- 05

तीन- 321-- 18-- 135- 24

चार- 286-- 12-- 138- 57

टोटल-1221--110- 667- 89

(फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में दिसंबर तक की रिपोर्ट)

Posted By: Inextlive