GORAKHPUR : जैसे मनुष्य का शरीर पंचतत्व से बना होता हैं. ऐसे ही कोई भी खूबसूरत सिटी पांच तत्वों से निर्मित होती है. सड़क पानी हरियाली बिजली और सीवरेज. अब हम अपने सिटी गोरखपुर की बात करते हैं. कहने के लिए तो इसे महानगर कहा जाता है लेकिन इन पांच तत्वों में एक भी तत्व अपनी ठीक हालत में नहीं है. सबसे गंभीर हालत हरियाली यानी पार्क यानी बगीचा की है. जैसे-जैसे सिटी में कॉलोनी बनी जनसंख्या बढ़ी. वैसे-वैसे नगर निगम और जीडीए ने हरियाली बनाए रखने के लिए पार्क बनाने शुरू किए. कागजों में नगर निगम के 138 पार्क हैं वहीं जीडीए का दावा 62 पार्क का है. आई नेक्स्ट टीम जब कागजों में दर्ज इन पार्कों को जमीन पर देखने निकली तो 90 पार्क मिले ही नहीं. जो पार्क मिले उनकी भी हालत खराब मिली.


लाइव-1: चाणक्यपुरी में पार्क पर बन गया प्लाटचाणक्यपुरी सिटी की सबसे पुरानी प्राइवेट कॉलोनी है। यह कॉलोनी 1992 में बीआर कालोनाइजर्स ने बनवाई थी। इस कॉलोनी के नक्शे की स्वीकृति उस समय जीडीए ने दी थी। कॉलोनी के नक्शे में सात पार्क स्वीकृत थे। आई नेक्स्ट टीम नक्शे में दर्ज इन पार्कों को जमीन पर देखने चाणक्यपुरी कॉलोनी पहुंचा तो वहां दो पार्क पर तो अवैध कब्जा मिला, बाकी दो की केवल बाउंड्री बची नजर आई। यही नहीं इस कॉलोनी के एक पार्क पर चार प्लाट तक काट दिए गए हैं और निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है। इसके अलावा एक पार्क 13 डिस्मिल में है, जिसमें 3 डिस्मिल को छोड़कर पूरे पार्क की बाउंड्री पर नई बाउंड्री बनाकर कब्जा कर लिया गया है। कब्जेदारों ने 3 डिस्मिल इसलिए छोड़ दिया है क्योंकि उस हिस्से पर छठ मैया की बेदी और तालाब बना हुआ है।


शिलापट्ट बयां कर रहा पार्क की बेबसी

गोलघर काली मंदिर के पीछे लाला रामअवतार शाह पार्क 2009 में बनाया गया था। जब नगर निगम ने इस पार्क को डेवलप किया था तब इस पार्क में कई पेड़ पौधे लगाए गए थे। इसकी खूबसूरती को देख कई लोग यहां रोजाना घूमने भी आते थे। लेकिन एक साल बाद धीरे-धीरे पेड़-पौधे गायब होने लगे। एक समय ऐसा आया कि पार्क तो बचा लेकिन हरियाली पूरी तरह गायब हो गई। आई नेक्स्ट टीम जब इस पार्क पर पड़ताल करने पहुंची तो वहां केवल पार्क का शिलापट्ट मिला। यही नहीं इस पार्क पर एक अवैध मकान तक तैयार हो गया है। वाह रे बदहाली, पार्क बन गया कूड़ा पड़ाव केंद्रवर्ष 2009 में नगर निगम की तत्कालीन मेयर मेयर अंजू चौधरी ने दीवानबाजार में 10 डिस्मिल जमीन पार्क के लिए आवंटित की थी। कागजों में यह जमीन आज भी पार्क के नाम से दर्ज है, लेकिन आई नेक्स्ट टीम जब इस पार्क पर पहुंची तो वहां मिला कूड़ा पड़ाव केंद्र। टीम ने आस पड़ोस के नागरिकों से पार्क की जानकारी मांगी तो एक चौंकाने वाला मामला और सामने आया। जब यह पार्क डेवलप किया जा रहा था तो यहां के नागरिकों ने चंदा कर 5 हजार रुपए भी पार्क के डेवलपमेंट के लिए दिए थे। कहां जा रहा है करोड़ों रुपए

कागजों में तो पार्क की हरियाली बहुत रमणीक दिखाई दे देती है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आई नेक्स्ट टीम ने इस हकीकत के जब दूसरे चेहरे को देखने की कोशिश की तो सामने आए एक करोड़ पांच लाख रुपए। हर साल पार्क के नाम पर जीएमसी 55 लाख रुपए तथा जीडीए 50 लाख रुपए कागजों में खर्च करता है। जीएमसी इन पैसों को पार्क की मरम्मत के नाम पर खर्च करता है तो जीडीए मरम्मत, देखरेख के साथ कई पार्कों के बिजली बिल भी इसी पैसे से जमा करता है। अब सवाल उठता है कि इतने बजट के बावजूद पार्क अंतिम सांसें क्यों ले रहे हैं? हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट पासआई नेक्स्ट की पार्क पड़ताल में केवल हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट (उद्यान विभाग) पास हुआ, क्योंकि सिटी में इस डिपार्टमेंट का मात्र एक पार्क विन्ध्यवासिनी पार्क है, जो कुछ सही हालत में है। इस पार्क के रखरखाव पर उद्यान विभाग हर साल 1 लाख रुपए खर्च करता है।अगर आप भी इस मुहिम से जुडऩा चाहते हैं तो फोन उठाए और हमारे रिपोर्टर को मोबाइल नंबर 7897645694 पर संपर्क करें और बताएं अपने यहां के पार्क की जमीनी हकीकत। पार्क और जमीन की पैमाईश के लिए रिटायर्ड नायब तहसीलदार नियुक्त किया गया है। उनके पास अगर कब्जे की शिकायत आ रही है तो उसे हटाने की कार्रवाई की जाएगी। मरम्मत और निर्माण के लिए निर्माण विभाग को निर्देश दे दिए गए हैं। राजेश कुमार त्यागी, म्यूनिसपल कमिश्नर जीएमसी

report by : saurabh.upadhyay@inext.co.in

Posted By: Inextlive