रीवा स्थित महामृत्युंजय मंदिर में विराजमान शिवलिंग की बनावट संसार के बाकी अन्य शिवलिंगों से सर्वथा भिन्न है। ये एक ऐसा शिवलिंग है जो आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा।

आपको 1001 छिद्रों वाला शिवलिंग विश्व के किसी भी अन्य मंदिर में देखने को नहीं मिलेगा। रीवा स्थित महामृत्युंजय मंदिर में विराजमान शिवलिंग की बनावट संसार के बाकी अन्य शिवलिंगों से सर्वथा भिन्न है। ये एक ऐसा शिवलिंग है, जो आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। यहां भगवान शिव की मृत्युंजय के रूप में उपस्थित है। यहाँ आने वाले भक्तों की हर मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं। इस मंदिर में दर्शन करने से सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। यह शिवलिंग सफेद रंग का है, जिस पर किसी भी मौसम का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है।

मौसम के साथ बदलता है शिवलिंग का रंग

शिवलिंग का रंग आमतौर पर श्वेत रहता है, पर मौसम के साथ इनका रंग कुछ बदल जाता है। शिव पुराण के अनुसार, देवाधिदेव महादेव ने महा संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी। यहां भगवान महामृत्युंजय मंत्र के जाप से सभी मनोकामना पूरी होती है। इसी वजह से श्रद्धालु भारत के कोने-कोने से महामृत्युंजय भगवान के दर्शन के लिए यहां आते हैं।

यहां महामृत्युंजय मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु के भय से मिलती है मुक्ति


शिव पुराण के अनुसार, देवाधिदेव महादेव ने महा संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की थी। शिव ने इस मंत्र का गुप्त रहस्य माता पार्वती और दैत्यों के गुरू और महान शिव भक्त शुक्राचार्य को बताया था। महामृत्युंजय मंत्र के जप का उल्लेख शिव महापुराण के अलाव अन्य हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है। आपको ये भी पता होगा कि महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव का ही एक स्वरूप है, जो अकाल मृत्यु व असाध्य रोग नाशक है। परन्तु संसार में भगवान आशुतोष के महामृत्युंजय स्वरूप के प्रतीकात्मक शिवालय दुर्लभ हैं।

मान्यता है कि यहां शिव आराधना करने से आयु लंबी होती है और आने वाले संकट दूर होते हैं। इस शिवालय का महात्म्य द्वादश ज्योतिर्लिंगों के समतुल्य माना जाता है। 1001 छिद्रों वाले अदभुत श्वेत शिवलिंग विराजमान हैं। माना जाता है कि भगवान महामृत्युंजय के समक्ष महामृत्युंजय मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु को भी टाला जा सकता है और अल्पायु दीर्घायु मे बदल जाती है। अज्ञात भय, बाधा और असाध्य रोगों को दूर करने और मनोकामना पूरी करने के लिए यहां मंदिर में नारियल बांधा जाता है और बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं।

शिवलिंग के उत्पत्ति की कहानी


बघेल राजवंश के 21वें महाराजा विक्रमादित्य देव ने इस इलाके के पास शिकार के दौरान एक भागते हुए चीतल के पीछे शेर को देखा। राजा यह देखकर हैरत में पड़ गए, जब शेर मंदिर वाले स्थान के पास चीतल के पास आ पहुंचा, तो उसका शिकार किए लौट गया। आश्चर्यचकित राजा ने उस स्थान पर खुदाई कराई, जिससे गर्भ में महामृत्युंजय भगवान का सफेद शिवलिंग निकला। ज्ञातव्य हो इस सफ़ेद शिवलिंग की चर्चा शिवपुराण में महामृत्युंजय के रूप में की गई है। इसलिए यहां भव्य मंदिर का निर्माण करा शिवलिंग को स्थापित कर दिया गया।

महामृत्युंजय के आशीर्वाद से रीवा रहा आजाद

दैवयोग से मंदिर परिसर के बगल में एक अधूरा किला पड़ा हुआ था, जिसे शेरशाह सूरी के पुत्र सलीम शाह के काल का माना जाता है। महाराज विक्रमादित्य ने इसी अधूरे किले की नींव पर भव्य किले का निर्माण कराया और रीवा को विंध्य की राजधानी के रूप में विकसित कर दिया गया। पिछले 400 से अधिक वर्षों से आज भी यह किला महामृत्युंजय मंदिर के बगल के मौजूद है। कहा जाता है कि महामृत्युंजय भगवान् के आशीर्वाद से रीवा कभी किसी का गुलाम नहीं रहा। न मुगलों के समय में और न ही अंग्रेजों के समय में।

— ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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Posted By: Kartikeya Tiwari