एक समय अनलासुर नाम का एक राक्षस हुआ था। इसके कोप और अत्याचार से सभी जगह त्राही-त्राही मची हुई थीं। ऋषि—मुनि देवता इंसान पशु—पक्षी सभी इसके अत्याचार से दुखी हो चुके थे।

दूर्वा भगवान श्री गणेश को बहुत प्यारी है। गणेशजी को दूर्वा चढ़ाना बहुत ही शुभ और लाभकारी माना जाता है। एकमात्र गणेश जी एक ऐसे देव हैं, जिन्हें यह दूब पूजन में काम में ली जाती है। दूर्वा एक तरह की घास होती है जो प्राय बाग—बगीचों में मिल ही जाती है।

दूर्वा को जड़ सहित तोड़कर और पवित्र जल से साफ करके 21 दूर्वाओं को मिलाकर मोली से गांठ बांध दी जाती है और फिर इसे पूजन थाल में रख दिया जाता है।

अनलासुर के आतंक से त्रस्त था संसार


पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय अनलासुर नाम का एक राक्षस हुआ था। इसके कोप और अत्याचार से सभी जगह त्राही-त्राही मची हुई थीं। ऋषि—मुनि, देवता, इंसान, पशु—पक्षी सभी इसके अत्याचार से दुखी हो चुके थे। सभी इसके आतंक को रोकने के लिए शिवजी के पास जाकर विनती करते हैं कि हे भोलेनाथ, हमें इस निष्ठुर दैत्य से बचा लें। इसके आतंक का अंत जल्द से जल्द करें।

युद्ध में गणेश जी ने अनलासुर को निगल लिया

शिवजी उनकी करुणामई विनती सुनकर उन सबसे कहते है कि इसका निधान तो सिर्फ गणेश के पास है। सभी फिर श्री गणेश से अनलासुर का संहार करने की बात करते हैं तो गजानंद ऐसा करने का हामी भर लेते हैं। फिर श्री गणेश और अनलासुर में एक युद्ध होता है, जिसमें लम्बोदर उस दैत्य को निगल लेते हैं। दैत्य को निगलने के बाद गणेश के पेट में तेज जलन होती है। यह जलन असहनीय हो जाती है।

दूर्वा से शांत हुई गणपति के पेट की जलन 


देवी—देवता और ऋषि—मुनि सभी उनके उपचार में लग जाते हैं पर उन्हें आराम नहीं मिलता है। तब कश्यप ऋषि दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को देते हैं। इसे खाते ही उनके पेट की जलन एकदम से शांत हो जाती है। श्री गणेश कश्यप ऋषि और उनके द्वारा भेट में दी गयी उस दूर्वा से बहुत प्रसन्न होते हैं और कहते हैं कि जो भक्त इस तरह मुझे दूर्वा चढ़ाएगा वो मेरी विशेष कृपा का पात्र होगा।

-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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Posted By: Kartikeya Tiwari