मैं एक आदमी के साथ एक लिव-इन रिश्ते में हूं। वो मुझ पर अपना अधिकार जताने की कोशिश करता है। जो भी वो कहता है वो मुझसे वही करने की उम्मीद करता है। जबकि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं और ऐसा करती भी नहीं हूं। क्या अपनी शर्तों पर जीवन जीना गलत है?

मैं बहुत सी धार्मिक और आध्यात्मिक किताबें पढ़ता हूं, और जो बातें उनमें कही गई हैं, वे मुझे पसंद हैं, लेकिन मैं अपने जीवन में उनका पालन नहीं कर पाता। मुझे क्या करना चाहिए?

इन किताबों का उद्देश्य सिर्फ प्रेरणा है, न कि रूपांतरण। चाहे वे राम हों, कृष्ण हों, या फिर जीसस हों- कोई मनुष्य जिसने अपनी सीमाओं को पार किया, और आम तौर पर इंसानी जीवन समझे जाने वाले तरीकों से परे का जीवन जीया- ऐसा मनुष्य आपको प्रेरणा दे  सकता है। लेकिन आप उनकी बुद्धि के द्वारा अपना जीवन नहीं संभाल सकते। आपको अपनी बुद्धि लगानी होगी। सबसे महा ग्रंथ आप खुद हैं, क्योंकि आप जीवन हैं। अगर आप इस जीवन को पढ़ना सीख लें, अगर आप अपने भीतर चलने वाली चीजों को बिल्कुल साफ-साफ देख पाएं, तो आप खुद को वैसा बना लेंगे, जैसा आप चाहते हैं। अगर आप दुनिया में चलने वाली चीजों को बिल्कुल साफ-साफ देख पाएं, तो आप खुद को सफल बना लेंगे। तो योग अभ्यास कोई शिक्षा, सिद्धांत, विचारधाराएं या किसी तरह की विश्वास प्रणालियां नहीं हैं। वे मूल रूप से आपके बोध को बढ़ाने के तरीके हैं।

सद्गुरु, क्या शादी के बाद किसी लड़की या औरत से संबंध बनाना गलत है? अगर वो कुछ सीमाओं में हो, क्या तब भी गलत है? अगर मेरी पत्नी इसके खिलाफ हो, तो मैं उसे कैसे समझाऊं कि इसमें कुछ गलत नहीं है?

जब रिश्तों की बात आती है, तो उसमें लेन-देन जुड़ा होता है। चाहे बात बाजार के लेन-देन की हो, या फिर शादी के लेन-देन की। ये लेन-देन तभी आगे बढ़ेगा, जब दोनों पार्टियों को फायदा पहुंचे। रिश्ते के कुछ बुनियादी नियम और शर्तें होती हैं। अगर आप इन नियम और शर्तों के अंदर रहेंगे, सिर्फ तभी रिश्ते को सफल तरीके से निभा पाएंगे। जब कोई कहता है 'मैं शादीशुदा हूं’ तो इसका मतलब है 'मैं एक समर्पित रिश्ते में हूं।‘ अगर आप हर समय, दूसरे व्यक्ति से आपको समझने और आपके अनुसार चलने की उम्मीद करेंगे, जबकि आप खुद उस व्यक्ति की सीमाएं, संभावनाएं, जरूरतें और काबिलियत नहीं समझेंगे, तो हर हाल में संघर्ष होगा। आपको याद रखना चाहिए, कि शादी कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसे आप एक बार करके भूल सकते हैं। ये एक सक्रिय रिश्ता है। इसमें दो अलग-अलग लोग, एक ही मकसद से एक दूसरे से जुड़ते हैं, साथ मिलकर अपना जीवन बनाते हैं, और आनंद से जीते हुए अपनी खुशहाली को बढ़ाते हैं।

मैं एक आदमी के साथ एक लिव-इन रिश्ते में हूं। वो मुझ पर अपना अधिकार जताने की कोशिश करता है। जो भी वो कहता है, वो मुझसे वही करने की उम्मीद करता है। जबकि मैं इस बात से सहमत नहीं हूं, और ऐसा करती भी नहीं हूं। क्या अपनी शर्तों पर जीवन जीना गलत है?

ये न तो सही है न ही गलत है। लेकिन अगर आप सिर्फ अपनी ही शर्तों पर जीवन जीना चाहती हैं, तो आपको रिश्ते की क्या जरूरत है? जब रिश्ता होता है, तो उम्मीदें भी होती हैं। अगर कोई उम्मीदें ही न हों, तो आप रिश्ता क्यों बनाएंगी? आप रिश्ते में सिर्फ इसलिए बंधना चाहती हैं, क्योंकि आप अपनी उम्मीदों को किसी रूप में साकार होता देखना चाहती हैं। ये उम्मीद शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक, सामाजिक या फिर इन सभी चीजों का एक जटिल संगम हो सकती है। ये समझना जरूरी है, कि आप ये रिश्ता इसलिए बना रहे हैं, क्योंकि आपकी कुछ जरूरतें और उम्मीदें हैं, जिनकी वजह से आप दूसरे व्यक्ति के पास जा रहे हैं। हो सकता है ये बात दूसरे व्यक्ति के लिए भी सही हो, लेकिन जहां तक आपका सवाल है, ये आपकी जरूरतें हैं जो आपको उनके पास ले जा रही हैं। अगर आप ये समझते हैं, तो आप उस व्यक्ति को पूरी तरह से मूल्यवान समझेंगे।

सद्गुरू।

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Posted By: Kartikeya Tiwari