मंगल पर यान भेजने के भारतीय मिशन के साथ ही आने वाले दिनों में अंतरिक्ष में वर्चस्व कायम करने के लिए एशियाई देशों के बीच होड़ तेज़ होने का अनुमान है.


भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) लाल ग्रह पर उपग्रह भेजने के लिए अंतिम दौर की तैयारियों में जुटा है.इस अभियान का मुख्य मकसद भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का आकलन करना है कि क्या अंतरिक्ष में कदम बढ़ाता यह देश दूसरे ग्रहों पर अभियान के संचालन में सक्षम है.यह अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह के मौसम और सतह के बारे में वैज्ञानिक जानकारी भी जुटाएगा.मंगलयान का प्रक्षेपण 28 अक्टूबर को प्रस्तावित था, लेकिन प्रशांत महासागर में खराब मौसम के कारण अधिकारियों ने इस अभियान को एक सप्ताह के लिए टालने का फैसला किया.इस मानवरहित अभियान को 19 नवंबर तक लांच किया जा सकता है.बड़ी कामयाबी"अगर भारत मंगल पर पहुंचने के लिए चीन को मात दे देता है तो आप इससे जुड़े राष्ट्रीय गर्व की कल्पना कर सकते हैं."-पल्लव बागला, अंतरिक्ष मामलों के जानकार


अगर यह अभियान सफल होता है तो  इसरो अमरीका, यूरोप और रूस के बाद सफलतापूर्वक मंगल पर यान भेजने वाला दुनिया की चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन जाएगा.एनडीटीवी के साइंस एडिटर और भारतीय अंतरिक्ष अभियान के बारे में एक किताब लिख चुके  पल्लव बागला के मुताबिक चन्द्रमा पर पहुंचने के बाद अब भारत के लोग चीन को पीछे छोड़ते हुए लाल ग्रह तक पहुंचने की संभावना से काफ़ी उत्साहित हैं.

उन्होंने बीबीसी को बताया कि, ''अगर भारत मंगल पर पहुंचने के लिए चीन को मात दे देता है तो आप राष्ट्रीय गर्व की कल्पना कर सकते हैं."इस अभियान की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री  मनमोहन सिंह ने पिछले साल अगस्त में लाल किले की ऐतिहासिक प्राचीर से अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान की थी.बागला के अनुसार, "लाल किले की प्राचीर से कही गई हर बात राष्ट्रीय गर्व से ओतप्रोत होती है और इस अभियान के साथ राष्ट्रीय गर्व बेहद मुखर रूप से जुड़ा हुआ है."चीन से मुकाबलागरीबी उन्मूलन के लिए काम कर रही संस्था एक्शन एड के भारत में कार्यकारी निदेशक संदीप चाचड़ का मानना है कि अंतरिक्ष में खोज के लिए किए जा रहे निवेश से देश के गरीबों को फायदा मिल सकता है.उन्होंने बीबीसी न्यूज़ से कहा, "अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहित नई तकनीकों में निवेश भारत जैसी अर्थव्यवस्था की आकांक्षाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है. इस तरह की गरीबी वाले देश में ऐसी उत्कृष्ट तकनीक का विकास एक सरलीकृत विरोधाभास नहीं है."

उन्होंने कहा कि, "महत्वपूर्ण बात यह है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के फायदों का सबकी भलाई के लिए इस्तेमाल किया जाए. उन लाभों के जरिए गरीबी से उबरने और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उम्मीद कायम करने की कोशिश की जाए."चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत है. चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन (सीएनएसए) के पास अच्छी तरह से विकसित  अंतरिक्ष यात्रा का कार्यक्रम है.सीएनएसए इस साल दिसंबर में चंद्रमा पर चेंग-3 नाम से अंतरिक्ष यान भेजेगा, जिसके साथ एक रोवर जुड़ा होगा.अंतरिक्ष में बढ़ती होड़चीन ने चंद्रमा पर अधिक संख्या में रोबेटिक जांच अभियान भेजने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाई है.इसके साथ ही चीन मंगल पर भी उपग्रह भेजने की तैयारी कर रहा है.जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा भी इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत है. यह एशिया की सबसे अधिक अनुभवी अंतरिक्ष एजेंसी है और उसे कई मानवरहित अंतरग्रहीय अंतरिक्ष अभियानों का अनुभव हासिल है.कोट्स के मुताबिक, "भारत, चीन और जापान निश्चित रूप से एक दूसरे पर नज़र गड़ाए हुए हैं."इस प्रतिस्पर्धा के बढ़ने के साथ ही अंतरिक्ष खोज की दिशा में नए सिरे से उछाल आने की उम्मीद है. ऐसे में हो सकता है कि अंतरिक्ष में चहलकदमी की कोशिशों में लगे एशियाई देश मिलकर किसी अभियान की शुरुआत करें.
इसके बाद संभव है कि मंगल पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने के लिए वास्तविक वैश्विक अभियान की रूपरेखा तैयार हो सके.

Posted By: Subhesh Sharma