हम पाकिस्‍तान से अपने हिस्‍से का कश्‍मीर नहीं बांटना चाहते और ना ही देश का और कोई हिस्‍सा उन्‍हें देना चाहते हैं। इसके बावजूद एक गांव ऐसा है जिसे अपना बनाने के लिए हिंदुस्‍तान ने अपने 12 गांव पाकिस्‍तान के हवाले कर दिए। क्‍या आप जानते हैं कि वो गांव कौन सा है। उस गांव का नाम है हुसैनीवाला जहां शहीद भगत सिंह सुख देव और बटुकेश्‍वर दत्‍त का अंतिम संस्‍कार किया गया था।


पाकिस्तान बार्डर पर सतलज किनारे है हुसैनीवाला   हुसैनीवाला पाकिस्तान की सीमा के निकट सतलज नदी के किनारे स्थित है। इस गांव में वैसे तो पूरे साल चहल-पहल रहती है लेकिन स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और शहीद दिवस के मौके पर यहां का नजारा होता है जिसे देख कर पाकिस्तान बार्डर के सिपाही भी हैरान रह जाते हैं। यहां की फिजाओं में राष्ट्र भक्ति और देश प्रेम के रंग देख कर केवल एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित पड़ोसी देश पाकिस्तान बेहद बेचैन हो जाता है।देश के युवाओं के लिए प्रेणना है हुसैनीवाला


हुसैनीवाला गांव वही जगह है जहां 23 मार्च 1931 को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का अन्तिम संस्कार किया गया था। यहीं पर उनके एक और साथी बटुकेश्वर दत्त का भी 1965 में अन्तिम संस्कार किया गया था जिन्होंने अंग्रेजी शासन के समय भगत सिंह के साथ मिलकर केन्द्रीय असेंबली में बम फेंका था। बटुकेश्वर दत्त की चाहत थी कि उनका अंतिम संस्कार वहां पर ही हो जहां भगत सिंह और उनके अन्य साथियों का अंतिम संस्कार हुआ है। इसीलिए ये गांव हमेशा से भारतीय युवाओं के लिए प्रेणना का केंद्र बना हुआ है और इसीलिए अब यहां पर प्रेणना स्थल का निर्माण किया गया है।

विभाजन के समय पाकिस्तान को मिला था हुसैनीवाला

जब देश को आजादी मिली उसके बाद विभाजन के समय हुसैनीवाला गांव पाकिस्तान के हिस्से चला गया था। लेकिन भारत में इस बात से फैली बेचैनी और देश के वीर सपूतों के लिए लोगों का प्यार देखते हुए भारत सरकार ने इसे वापस लाने का निर्णय किया। जिसके बाद पाकिस्तान को 12 गांव देकर 1960 मे हुसैनीवाला को भारत में वापस मिलाया गया था।1972 के युद्ध के बाद हुआ पुर्नर्निमाण हुसैनीवाला में शहीदों के अंतिम संस्कार स्थल को राष्ट्रीय शहीद स्मारक के रूप में 1968 में विकसित किया गया था। जिसे 1972 की लड़ाई में पाकिस्तानी सैनिकों इसे नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश की थी लेकिन देश के पूर्व राष्ट्रपति और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह ने 1973 में इस स्मारक को फिर से विकसित करवाया था। तब से पाकिस्तान से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हुसैनीवाला गांव में लोग बाघा बॉडर की तरह रीट्रीट सेरेमनी का लुत्फ उठाते हैं। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हुसैनीवाला पहुंचे थे।

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Posted By: Molly Seth