- वर्ष 2008 से 2011 तक हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक किया सफर

- केंद्र सरकार ने नहीं माना स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आखिर में टेके घुटने

BAREILLY:

अंग्रेजों के जुल्म सहते हुए क्रांतिकारियों का साथ निभाने वाले ओमकार नाथ शास्त्री को करीब 4 वर्षो तक अपने हक की लड़ाई लड़नी पड़ी। तत्कालीन केंद्र सरकार को अंग्रेजों की तरह मानते हुए उन्होंने यह जंग लड़ी और करीब 4 वर्ष बाद 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पदवी से नवाजा। हम बात कर रहे हैं बरेली के बड़ा बाजार के मिर्धान निवासी 95 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ओमकार नाथ शास्त्री की। जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में एक अहम भूमिका के बाद आजाद भारत में सरकारी तंत्र से लड़कर अपना हक हासिल किया है।

पिता के नक्शे कदम पर चले।

बड़ा बाजार में शास्त्री भवन गली आजादी के रहनुमाओं के नाम से मशहूर है। क्योंकि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ओमकार नाथ शास्त्री के पिता आंवला विधानसभा के पूर्व विधायक बृजमोहन शास्त्री महान क्रांतिकारी थे। पिता से विरासत में मिला क्रांतिकारी का दर्जा उन्होंने खुद पर से हटने नहीं दिया। 1932 में जन्मे ओमकार शास्त्री जब 12 वर्ष के थे तभी से वह पिता के साथ देश को आजाद करने के लिए कदम बढ़ा दिया था। पिता को जेल होने के बाद भी वह बरेली पहुंचने वाले क्रांतिकारियों की मदद करते थे। इसके अलावा जेल में बंद क्रांतिकारियों को भी वह खाना पहुंचाते थे। लगातार 6 वर्षो तक यह क्रम जारी रहा। वर्ष 1947 में देश आजाद होने के बाद ही यह सिलसिला थमा।

सरकार ने नहीं माना सेनानी

बेटे अनिल कुमार शास्त्री ने बताया कि देश की आजादी के बाद दादा का देहांत होने तक पिता बरेली में रहे, फिर उत्तराखंड चले गए। जहां उन्होंने अपना नया जीवन शुरू किया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को मिलने वाली सारी सुविधाएं वहां मिलीं। लेकिन केंद्र सरकार ने सेनानी मानने से इनकार कर दिया। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 2008 में हाईकोर्ट में केस फाइल किया। जिसमें उन्हें वर्ष 2009 में जीत मिल गई, लेकिन केंद्र ने हाईकोर्ट के डिसीजन को नहीं मानते हुए सुप्रीम कोर्ट से मुहर लगाकर लाने को कहा। जिसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 में ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी। फैसला 14 सितंबर 2011 में उनके हक में आया। आखिर में केंद्र सरकार को घुटने टेकने पड़े।

नेताओं में देशभक्ति है दिखावा

कहा कि वर्तमान समय में कोई भी पार्टी का नेता हो उसमें देशभक्ति नहीं रही, सिर्फ दिखावा है। जो कि वोट बटोरने के लिए दिखाई जाती है। कोई नेता विकास का बिगुल नहीं बजाना चाहता वह सिर्फ अपनी जेबें भरने के लिए बड़ी योजनाओं का नारा देकर उसकी ओट में लूट मचाता है। बताया कि देश के आजादी के दौरान भी बरेली के मोती पार्क में मुस्लिम लीग के नेता लियाकत अली खां देश के बंटवारे की बात करते थे। कहते थे बरेली की सड़कों को पाकिस्तान रोड के नाम से जाना जाएगा। हिन्दू मुस्लिमों को उस समय भी लड़ाया गया और आज भी लड़ाया जा रहा है। कहा कि दोनों कौम को यह समझना होगा कि हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई हैं, राजनीति के मोहरे नहीं।

Posted By: Inextlive