अस्थमा की दवाइयां और इंजेक्शन दे रहे दूसरी बीमारियां

बढ़ता प्रदूषण और धूल के कण से भी बढ़ रही सांस की बीमारी

>Meerut। अस्थमा के रोगियों को दिया जाने वाला कारटिकोस्टेरायड व इंजेक्शन विपरीत प्रभाव छोड़ते हैं। इन दवाओं से मरीजों में मून फेस, शुगर, वीक मसल्स, मोतियाबिंद, ऑस्टोपोरेसिस व शरीर में कमजोरी जैसी दिक्कतें आने लगती है। जबकि अस्थमा के लिए दिया जाने वाला इनहेलर की दवा सीधे फेफड़ों में जाकर अपना प्रभाव दिखाता है। डॉक्टर्स का मानना है कि अस्थमा का सही इलाज होना बहुत जरूरी है तभी इस बीमारी से निजात मिल सकती है।

यह है स्थिति

हवा में बढ़ता प्रदूषण और धूल के कण लोगों को अस्थमा जैसी बीमारियां दे रही हैं। छोटे-छोटे बच्चों में भी अब सांस की बीमारी की शिकायत आ रही हैं। शहर की बात करें तो हर साल सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में अस्थमा व सांस के रोगियों में 8 से 10 प्रतिशत का इजाफा हो रहा है। इन दिनों अस्पतालों में भी करीब 50 प्रतिशत मरीज सांस से संबंधित बीमारी व दमा के ही पहुंच रहे हैं।

यह है कारण

व्हीकल्स से निकलने वाला धुंआ

बढ़ता वायु प्रदूषण

मौसम परिवर्तन

गेंहू की फसल की कटाई के कारण भूस के कणों की धूल

यह है लक्षण

सांस में तकलीफ

छाती में जकड़न

तेजी से देर तक छींक आना, खांसी

छाती में सीटी की तरह या सांय-सांय की आवाज आना

यह भी जानें

हर साल मई के पहले मंगलवार को व‌र्ल्ड अस्थमा डे मनाया जाता हैं।

इस बार हर विश्व दमा दिवस का नारा नेवर टू अर्ली, नेवर टू लेट है। जिसका उद्देश्य मरीज को सही इलाज देना है, जिससे उसे प्रभावी नियंत्रण का पता लगे।

2013 से 2017 के बीच ब्लड आईजीई लेवल के सर्वे के तहत देश में धूल रेस्पिरेटरी एलर्जी का सबसे बड़ा कारण है। यह सर्वे 63000 से अधिक मरीजों पर हुआ था।

महिलाओं की तुलना में एलर्जी से पीडि़त पुरुषों की संख्या ज्यादा है।

बच्चों में अस्थमा के 90 फीसदी तथा बड़ों में 50 फीसदी मामलों का कारण एलर्जी रिएक्शन होता है।

धूल, गंदगी, घास, कीड़े, पैट एनिमल के रोंए आदि के कारण अस्थमा हो सकता है।

इंडियन स्टडी ऑन एपीडेमोलॉजी ऑफ अस्थमा, रेस्पिरेटरी सिंपटम्स एंड क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के अनुसार भारत में अस्थमा से पीडि़त 1.8 करोड़ लोगों में से 2.05 फीसदी लोगों की उम्र 15 वर्ष से कम है।

इनहेलर द्वारा ली जाने वाली दवाएं शरीर पर बैड इफैक्ट नहीं डालती हैं। मरीज मानते हैं कि इनहेलर अस्थमा के लिए आखिरी इलाज है। यह सिर्फ भ्रांति है।

डॉ। वीरोत्तम तोमर, छाती व दमा रोग विशेषज्ञ, मेरठ

Posted By: Inextlive