देश में ही बना भारत का पहला विमान वाहक पोत विक्रांत लॉन्च हो गया है. वैसे तो विक्रांत की तकनीक को पूरी तरह स्वदेशी बताया जा रहा है मगर हम इसे फिफ्टी-फिफ्टी कह सकते हैं.


इस कार्यक्रम के तीन हिस्से हैं. पहला मूव, जो आधारभूत संरचना है, दूसरा फ्लोट. फ्लोट पोत के भीतर की मशीनरी को कहा जाता है और तीसरा फाइट, यानी हथियार.इन तीनों का 50 फीसदी हिस्सा स्वदेशी है. और बाकी 50 फीसदी हिस्सा जिसमें एयरक्राफ्ट, मिसाइल और सेंसर शामिल है, आयात किया हुआ है.इस  परियोजना पर भारी भरकम रकम खर्च की गई है. करीब पांच अरब डॉलर."इस कार्यक्रम की वजह से एशिया में पहले से चली आ रही हथियारों की होड़ को और बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा, मुझे तो यह भी लगता है कि ये जो अरबों रूपए खर्च किए जा रहे हैं, अगर ये पैसे लोगों की सहूलियत पर खर्च होते तो बेहतर होता. मगर हमारी सरकार की पॉलिसी ही कुछ और है."इतना खर्च जरूरी थामगर स्थानीय क्षमता के अनुसार  विक्रांत के स्वदेशीकरण में इतना खर्च होना जरूरी था. पहली चीज हमेशा महंगी होती है.


इसके बाद आने वाला विमान वाहक पोत-2 और विमान वाहक पोत-3 सस्ता होगा. क्योंकि उनमें स्थानीय तत्व ज्यादा होंगे.देखा जाए तो भारत का हथियार तंत्र सोवियत संघ के दौर का तंत्र है. इन्हीं हथियारों में सुधार लाया जा रहा है.

हिंदुस्तान ने अपनी नीति पिछले छह-आठ सालों में बदली है. अब हथियारों की स्थानीय प्रणाली को वरीयता दी जा रही है. आयात अंतिम विकल्प है.विमानवाहक पोत की तकनीक के लिए स्थानीय क्षमता विकसित करने में काफी वक्त लग सकता है. विक्रांत अपनी योजना से 5 साल पीछे चल रहा है. इसके अलावा इस योजना पर अनुमान से ज्यादा खर्च हुआ है.समय और खर्चे के हिसाब से अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत को ऐसी परियोजनाओं के लिए स्थानीय क्षमता विकसित करने में 15-20 साल लग जाएंगे.विक्रांत के लॉन्च के साथ ही भारत ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और अमरीका जैसे देशों में शामिल हो गया है. खबरों के अनुसार अभी यह क्षमता चीन के पास भी नहीं है.एशिया के सुरक्षा परिदृश्य पर इसका काफी असर हो सकता है. इस आकार और क्षमता वाले पोत का डिज़ाइन बनाने और निर्माण करने के क्षेत्र में भारत का यह काफी महत्वपूर्ण कदम है.स्थानीय क्षमता विकसित करने में वक्त लगेगाराहुल बेदी के अनुसार इस कार्यक्रम को पूरा होने में तीन साल और लगेंगे.पिछले 30-40 साल में भारत के समुद्री इलाके में हिंदुस्तान की नौसेना अकेली है जो विमानवाहक पोत का इस्तेमाल कर रही है. पहले आईएनएस-विक्रांत था जिसे भारत ने ब्रिटेन से 1960 के दशक में लिया था.

दूसरा आईएनएस-विराट था. वह भी ब्रिटेन से लिया गया था. तीसरा आईएनएस-विक्रमादित्य है, जो रूस से आ रहा है. इसे विकसित करने में विमानवाहक पोत के 30-40 साल के अनुभव का अच्छा-खासा लाभ मिलेगा.विक्रांत की तकनीक को जांचने में भी अभी चार साल का समय और लगेगा.ऑन बोर्ड सिस्टम, कनेक्टिविटी, केबल, एयरकंडीशनिंग प्लांट, वाटर फिल्टरेशन प्लांट है, इस तरह बहुत सी चीजें हैं जो अब फिट की जाएंगी. इसमें लगभग तीन-चार साल और लग जाएंगे.भारतीय नौसेना का कहना है कि 2016-17 के शुरू में समुद्री परिक्षण शुरू होंगे. 2018 में इसको शुरू किया जाएगा. विमान वाहक पोत के स्वदेशीकरण और स्थानीय रूप से साधन मुहैया करवाने में नौसेना ने पहल की है.लेकिन रूपए के अवमूल्यन, राजनीतिक व्यवस्था, निर्णय आदि का इस पर काफी असर होगा."हिंदु्स्तान विमानवाहक पोत विकसित कर रहा है. इस क्षेत्र में यह भारत का काफी बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है. पिछले 30-40 साल के दौरान हिंदुस्तान की नौसेना अकेली ऐसी सेना है जो भारत के समुद्री इलाके में विमानवाहक पोत का इस्तेमाल कर रही है. "हथियारों की होड़ को बढावाभारत द्वारा पहला स्वदेशी विमान वाहक पोत विक्रांत के लॉन्च करने के बाद एशिया में पहले से चल रही हथियारों की होड़ को बढावा मिलेगा.
भारत का मुकाबला कभी पाकिस्तान से तो कभी चीन से होता रहा है. ऐसे में पारंपरिक हथियारों के साथ ही साथ परमाणु हथियारों का भी इस्तेमाल ज्यादा होगा.दो दिन पहले ही भारत ने स्थानीय रूप से विकसित परमाणु पनडुब्बी के रियेक्टर को एक्टिवेट किया है. इससे भारत के समुद्री इलाके में हथियारों की होड़ को बढावा मिल सकता है.इस तरह की तकनीक पर अरबों रूपए खर्च किए जाने की जगह यदि यही पैसे लोगों की सहूलियत के लिए खर्च किए जाते तो बेहतर होता. लेकिन हमारी सरकार की नीति ही और है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh