आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा सूबा है उत्‍तर प्रदेश। कहते हैं देश की राजनीति का रुख यहां बहने वाली हवा से तय होता है। inextlive.com की स्‍पेशल सीरीज में जानिए उनकी कहानी जिन्‍हें मिली इस सूबे के 'मुख्‍यमंत्री' की कुर्सी। आज हम बात करेंगे 20वीं सदी में पैदा होने वाले यूपी के पहले मुख्‍यमंत्री चंद्रभानु गुप्‍ता की जो तीन बार सूबे के मुखिया बने।

Story by : abhishek.tiwari@inext.co.in
@abhishek_awaaz
राजनीतिक उठापटक :

चंद्रभानु गुप्ता एक अलग ही नेचर के राजनेता माने जाते थे। उनका कहना था कि जो भी काम करो, वो हट कर करो। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में चंद्रभानु का नाम बार-बार सामने आता है। 17 बरस की उम्र में स्वतंत्रता आंदोलन में उतर आए चंद्रभानु ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिये, साइमन कमीशन का विरोध किया। देश की आज़ादी के लिये वे लगभग 10 बार जेल भी गये। चंद्रभानु एक अच्छे वकील भी थे। काकोरी काण्ड के क्रांतिकारियों के बचाव दल के प्रमुख वकीलो मे वे भी थे। काकोरी कांड के मुख्य हीरो जिसमे रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फ़ाक़उल्लाखान, तथा चंद्रशेखर आज़ाद, व उनके साथियों को बचाने के लिए चंद्रभानु ने अंत समय तक प्रयास किया। गुप्ता जी के राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1926 से हुई, जब उन्हें उत्तर प्रदेश काँग्रेस और अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी का सदस्य बनाया गया।  

काम :
मुख्यमंत्री काल के दौरान चंद्रभानु ने सरकारी कार्यालयों मे हिन्दी मे काम करने की प्रथा की शुरुआत की। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश में कई मुख्य संस्थाओं की स्थापना करवाई जिनमें – मोतीलाल मेमोरियल सोसाइटी , आचार्य नरेंद्र देव स्मृति भवन, बाल विद्या मंदिर, बाल संग्रहालय और रविंद्रालय प्रमुख हैं। चंद्रभानु गुप्ता जी ने हमेशा मैत्री का ही भाव रखा और आवश्यकतानुसार सभी की सहायता करते रहे, चाहे वो विरोधी ही क्यों न हों।
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व्यक्ितगत जीवन :
प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री चंद्रभानु गुप्ता का जन्म 14 जुलाई 1902 ईस्वी को अलीगढ़ के बिजौली नामक स्थान मे हुआ था। उनके पिता हीरालाल की अपने समाज मे बहुत प्रतिष्टा थी। चंद्रभानु गुप्ता के चरित्र निर्माण मे आर्यसमाज का बहुत प्रभाव था और भावी जीवन मे आर्यसमाज के सिद्धांत उनके मार्गदर्शक रहे। उनकी शिक्षा लखीमपुर खीरी मे हुई और उच्च शिक्षा के लिए वे लखनऊ चले आए। यहाँ के विश्वविद्यालय से की परीक्षा पास की और फिर लखनऊ ही उनका कार्य क्षेत्र बन गया। गुप्ता जी ने लखनऊ मे वकालत आरम्भ की। और एक जाने-माने वकील में पहचान बना ली थी। चंद्रभानु आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन करते रहे, उन्होंने कभी शादी नहीं की। 11 मार्च 1980 को वह दुनिया को अलविदा कह गए।
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Posted By: Abhishek Kumar Tiwari