बुकर पुरस्कार विजेता और सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने कहा है कि पुरस्कार वापसी को लेकर अगर उन पर कॉपीकैट - नक़ल करने का आरोप लगता है तो वो कॉपीकैट बनकर खुश हैं।


उन्होंने कहा कि संघ या बीजेपी की विचारधारा के विरोध करने का दूसरों के साथ उन्हें मौक़ा मिला और इसी कारण उन्होंने पुरस्कार लौटाया।बीबीसी हिंदी से बातचीत में अरुंधति ने कहा कि जब 2005 में कांग्रेस ने उन्हें पुरस्कार दिया था तो उन्होंने कहा था कि वो तो उनके ख़िलाफ़ लिखती हैं तो क्या चुप कराने के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है और पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था।रॉय ने कहा कि कांग्रेस दरअसल भाजपा के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि कांग्रेस जो रात में करती है, भाजपा दिन में करती है।पढें, इंटरव्यू के मुख्य अंश


लेखकों का काम बहुमत में रहना नहीं है। मैं अगर अकेली भी हूँ तब भी मैं जो सोचती हूं वो लिखूँगी, भले ही सब लोग मेरे ख़िलाफ़ हों। हम नेता नहीं हैं। मैं ये नहीं कह रही हूँ कि आप मुझे वोट दो, मेरे लिए तालियाँ बजाओ।जब उदय प्रकाश ने लगभग दो महीने अपना पुरस्कार लौटाया, तब लेखकों की अंतर्रात्मा क्यों नहीं नहीं जगी। जो पुरस्कार लौटा रहे हैं इनमें से ज़्यादातर पहले से ही आरएसएस और मोदी की राजनीति के ख़िलाफ़ रहे हैं। उनका रुख़ तो पहले से ही साफ़ था, इसमें नया क्या है?

मैं कॉपीकैट बनकर खुश हूँ. शायद इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। बीजेपी या आरएसएस के ख़िलाफ़ होना कोई ख़राब बात नहीं है। मैं नहीं मानती कि कांग्रेस वास्तव में बीजेपी के ख़िलाफ़ है। कांग्रेस जो रात में करती है, बीजेपी दिन में करती है।मान लो कोई संघ की विचारधारा के ख़िलाफ़ है और मुझे दूसरों के साथ एक मौक़ा मिला है, विरोध दिखाने का तो मैं तो दिखाऊँगी।मोदी या संघ के पक्षधरों का तर्क है कि ये पहली बार नहीं हो रहा है। दलितों को जलाया जाता है, 84 के दंगे हुए तब आप लोग कहाँ थे?मेरे ख़्याल से इसमें और तनाव आने वाला है. हालाँकि मैं इस मामले में एक्सपर्ट तो नहीं हूँ। लेकिन इतना तो तय है कि जिन्होंने उनको वोट दिया है और जो उद्योगपति उन्हें इस पद पर लाए हैं, उन दोनों में बहुत तनाव है।ऐसा क्यों है कि जब दलितों पर अत्याचार होता है तो सिर्फ़ दलित संगठन बयान देते हैं। जब मुसलमानों पर अत्याचार होता है तो तथाकथित सेक्युलर ब्रिगेड उठ खड़ी होती है। क्या आपको नहीं लगता है कि दलितों पर किया जाने वाला अत्याचार, कुछ कम अत्याचार, और मुसलमानों पर अत्याचार अधिक माना जाता है?

बिल्कुल सही बात है। मैं ये मानती हूँ। मैंने इस पर काफ़ी कुछ लिखा भी है। जब कोई ऊंची जाति का हिंदू मारा जाता है, कोई दलित मारा जाता है और मुसलमान मारा जाता है तो अलग-अलग बातें होती हैं। हाल में ही दलितों के ख़िलाफ़ बहुत कुछ हुआ है, लेकिन इतना हल्ला नहीं मचा।तब आपने पुरस्कार लौटाने का फैसला क्यों नहीं किया?नहीं...नहीं. पुरस्कार लौटाने से क्या होता है। मैंने दलितों के बारे में भी लिखा है। और मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर भी।कुछ दलित विद्वानों का मानना है कि 1947 में अगर हर मुसलमान पाकिस्तान चला जाता तो दलित ही निशाना बनाते। इस मान्यता में क्या कोई सच्चाई है?जब किसी को चोट लगती है तभी तो गालियां निकलती हैं, तभी मज़ाक उड़ाया जाता है। ये बहुत बड़ी बात हुई है। सबको मालूम है। इससे आगे क्या होगा पता नहीं। अवार्ड लेना-देना बहुत बड़ी बात नहीं है मेरे लिए।अवार्ड वापस करने से माहौल तो कम से कम सियासी बना है? आप क्या मानती हैं?
मुझे लगता है, आगे से कलाकारों, लेखकों को सोच-समझकर लिखना पड़ेगा, स्टैंड लेना पड़ेगा। अवार्ड लेना या मना करना बहुत बड़ी बात हो जाएगी।

Posted By: Satyendra Kumar Singh