PATNA : पॉप-रॉक में फोक का तड़का अपने इसी स्टाइल से म्यूजिक वल्र्ड में कैलाश खेर अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. प्लेबैक सिंगिंग से लाइव कांसर्ट तक कैलाश अपनी आवाज अपने म्यूजिक और अपने लिरिक्स के बूते अंदर तक समा जाते हैं.

कैलाश 'अल्लाह के बंदे' जैसे सूफियाना सांग पर भी उतने ही सहज नजर आते हैं, जितने 'लव, सेक्स और धोखा' पर। नई जेनरेशन के यूथ भी कैलाश के उतने ही दीवाने हैं, जितने पुरानी जेनरेशन वाले। बेबाक कैलाश इससे पहले भी पटना आ चुके हैं। पर, बिहार शताब्दी दिवस समारोह में पार्टिसिपेट के लिए जब कैलाश पटना पहुंचे तो उन पर बिहारी रंग छाया रहा। उन्होंने बिहार की तारीफ के साथ अपनी लाइफ के कई पन्ने शेयर किए।

अर्से बाद बिहार आए, कैसा लगा?
मौका खास है तो बेहतरीन अहसास है। सौवें साल के सेलिब्रेशन में पार्टिसिपेशन सुखद है। कई चीजें बदली हैं, जो यहां पॉजिटिविटी ला रही हैं।

'रंगीले' पिछले एलबमों से कैसे डिफरेंट है?
रंगीले की हर बात अलग है। इसमें अमिताभ के साथ गाने हैं और इसे रिलीज भी उन्होंने ही किया है। ऐसी ओपनिंग किसी नॉन-फिल्मी एलबम को शायद ही मिली हो। इसके अलावा मेरे दो साल के बेटे कबीर खेर की आवाज को भी शामिल किया गया है।

म्यूजिक के लेवल पर क्या खास है?
मेरे गानों को कोई सूफी कहता है तो कोई पॉप। मैं गाता हूं तो ईश्वर के लिए, लेकिन इसकी ब्रांडिंग नहीं करता। सभी इसे अपने हिसाब से देखते हैं और पसंद भी करते हैं। यह एलबम भी कुछ ऐसा है, जो सबको पसंद आएगा और आ भी रहा है।

प्लेबैक या लाइव कांसर्ट, दोनों में से आप खुद को किसमें अधिक कनेक्ट कर पाते हैं?
वैसे तो बतौर सिंगर मुझे दोनों माध्यमों में कोई परेशानी नहीं। लेकिन लाइव कांसर्ट मुझे ज्यादा एक्साइट करता है। इससे ऑडिएंस के साथ सीधा इंटरैक्शन भी होता है। सो इसका मजा अलग है और चैलेंज भी अधिक है।

एक ओर 'अल्लाह के बंदे' तो दूसरी ओर 'लव सेक्स और धोखा', इतना कॉन्ट्रास्ट कैसे मैनेज करते हैं?
मैं जब एलबम करता हूं तो अपने हिसाब से करता हूं, लेकिन बात जब फिल्मों की आती है तो दूसरों की बातें सुननी होती है। वैसे भी सोसायटी में सिर्फ अच्छे लोग नहीं होते। वो फिल्म और वो गाना आइना था, बुरे लोगों को दिखाने का।

तो आगे क्या क्या सुनने को मिलेगा?
बहुत कुछ है, फिलहाल इतना बताता हूं कि आपके यहां के प्रकाश झा की फिल्म 'चक्रव्यूह' में ही आ रहा हूं।

Posted By: Inextlive