आज के दौर में जहां बदलाव की बयार बहुत तेजी से बह रही है मैं खुद को एक ऐसे मुकाम पर पाती हूं जहां चीजों को देखने का नजरिया थोड़ा अलग हो जाता है। मुझे लगता है कि यह बदलाव सिर्फ एक ऊपरी दिखावा भर है, जिसमें चीजें पहले ही जैसी हैं बस उनका आवरण बदल दिया गया है या उसको रंग पेंट कर दिया गया है। हमारे समाज के ठीकेदार समाज के इसी रंगे पूते पहलू को लोगों के सामने पेश करते हैं। इस सजावट के पीछे यह बताने की उनकी कोशिश ही नहीं होती कि वे समाज का असली चेहरा लोगों के सामने रखे या यूं कहें कि ऐसा करने से उनके खुद के एक्सपोज हो जाने का खतरा होता है। मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि जो हो रहा है वह गलत हो रहा है, अच्छी चीजें भी हो रही हैं पर मेरा आशय सिर्फ इतना भर है कि गलत को भी सही तरीके से दिखाया और पेश किया जा रहा है। गलत को गलत कहने की ताकत और हिम्मत किसी में भी नहीं है।

चाहे जितना भी हम समाज के बदलने की दुहाई दे पर समाज की रीढ़ जिसे हम आम आदमी कहते हैं उसकी स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं है। ऑफिसेज से लेकर भगवान के दरबार तक उसे सिर्फ सहना ही लिखा है। आप आम हैं तो आपको सरकारी दफ्तरों में, रेलवे रिजर्वेशन काउंटर पर या फिर मंदिर में लाइन लगाना होगा। आपके सामने एक खास आता है और वह बिना लाइन के सरकारी दफ्तरों में अपना काम करवा के निकल जाता है। भगवान के मंदिर में भी उसके लिए स्पेशल अरेंजमेंट्स किये जाते हैं। अरे भाई, भगवान के सामने तो कोई खास और कोई आम नहीं है। कम से कम यहां तो भेदभाव मत करो। पर कौन सुनने वाला है। सिस्टम भी तो खास लोगों का ही है। आम आदमी की नियति तो सिर्फ इन लाइनों में खड़े होकर कुछ शब्दों के सहारे मन की कुंठा निकाल देने तक ही सीमित है। मैं यह बातें ऐसे ही नहीं कह रही हूं। अभी बनारस आयी तो सोचा कि बाबा विश्वनाथ के दर्शन कर लूं। मेरे साथ 80 साल की मेरी मां भी थीं। उनको थोड़ी चलने में दिक्कत है। मुझे और मेरी मां को गोदौलिया के आगे नहीं बढ़ने दिया गया। वहीं एक नीली बत्ती लगी इनोवा आयी वह सीधे घाट तक गयी। यह सब क्या है? समाज कहां बदला है। जिसे जरूरत है आप उसको कोई व्यवस्था नहीं दे रहे हैं और जो अपने पैरों पर चल सकता है उसके लिए कोई नियम नहीं। मैं यहां थोड़ा गुस्से के साथ कहूंगी कि अगर आप नियमों को पालन करते हैं तो आप आम आदमी है और जिसके लिए नियम और कानून का कोई मतलब नहीं है वह खास है। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा? आप कहेंगे कि ऐसा मेरे साथ हुआ इसलिए मैं इस तरह की बातें कर रही हूं। पर मेरे भाई मैं अपने साथ होने वाली बातों को लेकर गुस्से में नहीं हूं ऐसा किसी दूसरे के साथ न हो मेरी परेशानी इस बात की है। मैं स्पो‌र्ट्स फील्ड से हूं। देश विदेश घूमी हूं पर जो स्थिति मुझे अपने देश में मिलती है वैसी कहीं और नहीं मिलती। हमें अपने ग्रेट इंडियन कल्चर पर बहुत नाज है पर मेरी नजर में तो यह हमारी संस्कृति नहीं है। इसे बदलने की जरूरत है। आम और खास का यह भेदभाव स्पो‌र्ट्स में भी है पर मुझे यह कहने में खुशी हो रही है कि यहां और जगहों की अपेक्षा इस तरह की बातें थोड़ी कम हैं। यहां तो परफॉरमेंस मेन है जो बेहतर करेगा वह आगे जायेगा।

मेरी बातों से आप यह मतलब न निकालें कि मैं निराशावादी हूं या मेरी सोच में निगेटिविटी हावी है। हां, मेरे साथ इतना जरूर है कि गलत बातें मुझे परेशान करती हैं। मेरा ख्याल है हर वो आदमी जो अपने देश अपने समाज के लिए जरा भी बेहतर सोच रखता होगा मेरी तरह ही परेशान होता होगा। मेरी परेशानी सिर्फ आम और खास तक ही सीमित नहीं मेरी चिंता हमारे समाज में ग‌र्ल्स की स्थिति, राजनीति का बदलता स्वरूप, धर्म के आधार पर भेदभाव आदि तमाम बातों को लेकर है। इन सब चिंताओं और परेशानियों के साथ मैं आशान्वित भी हूं कि बदलाव की यह बयार हमारे समाज को एक बेहतर कल दे पाने में सक्षम होगी। क्यों गलत तो नहीं कह रही हूं न मैं।

इंदु पुरी

इंटरनेशनल टेबल टेनिस प्लेयर

(इनपुट बाई हिमांशु शर्मा)

Posted By: Inextlive