- यूपी चुनाव से पहले चुनाव आयोग छीन सकता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा

- आयोग में जवाब दाखिल करने की अवधि 15 दिन पहले खत्म, नहीं दिया जवाब

- लोकसभा चुनाव के बाद पांच राज्यों के चुनाव में भी नहीं जुटा सकी पर्याप्त वोट

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LUCKNOW: चंद महीनों के भीतर होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सूबे के प्रमुख विरोधी दल बहुजन समाज पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है। बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने का मामला निर्णायक मोड़ पर आ चुका है। सूत्रों के मुताबिक जल्द ही इस बारे में केंद्रीय चुनाव आयोग फैसला लेने वाला है। आयोग ने बसपा को विगत 28 जून तक इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा था। बदले हालात में यदि पार्टी का राष्ट्रीय दर्जा खत्म होने की नौबत आई तो पंजाब में उसे किसी दूसरे सिंबल से चुनाव लड़ना पड़ सकता है।

बार-बार मांगी मोहलत

पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में खाता भी नहीं खोल पाने के बाद बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म होने की नौबत आ गयी थी। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा समाप्त करने के लिए आयोग ने बीएसपी को नोटिस भी थमाया था। इसके बाद पार्टी ने पहले दिल्ली और फिर बिहार चुनाव तक के लिए मोहलत मांगी थी, लेकिन दोनों ही राज्यों में पार्टी की परफार्मेस अच्छी नहीं रही और वह इतने वोट नहीं जुटा सकी जिससे उनका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बच जाए। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय चुनाव आयोग इस बारे में जल्द ही सुनवाई करने वाला है। मालूम हो कि जल्द पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा को खासकर पंजाब और उत्तराखंड में खासी उम्मीदें है। इनमें से उत्तराखंड में ही वह अपने सिंबल पर चुनाव लड़ पाएगी जबकि पंजाब में उसे आयोग द्वारा दिए गये किसी अन्य सिंबल पर चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा।

ये हैं नियम

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए किसी भी पार्टी को चार प्रदेशों में कम से कम छह फीसद वोट या तीन चौथाई लोकसभा सीटों पर कम से कम दो फीसदी वोट मिलने चाहिए। इसके अलावा चार राज्यों में राज्य पार्टी के तौर पर उसकी मान्यता होनी चाहिए। बिहार चुनाव में बीएसपी को राष्ट्रीय पार्टी बने रहने के लिए आठ परसेंट वोटों की दरकार थी जबकि उसे सिर्फ 2.07 परसेंट वोट ही हासिल हुए।

1997 में टॉप पर, 2014 से पस्त

बसपा को 1997 में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया था। उस समय यूपी के अलावा उत्तराखंड, बिहार और दिल्ली में भी पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा था। 2014 से बीएसपी का पतन शुरू हुआ। वह लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी उसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में भी उसे अपेक्षित सीट नहीं मिली। दिल्ली चुनाव में भी आम आदमी पार्टी के आगे सभी पार्टियां धराशायी हो गयीं। वहीं बिहार चुनाव में भी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली।

तो छिन जाएगा हाथी निशान

राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त पार्टियों को ना सिर्फ पूरे देश में चुनाव लड़ने के लिए एक ही सिंबल मिलता है बल्कि आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त प्रसारण अवधि मिल जाती है। सिंबल्स आर्डर 1968 के तहत अगर बीएसपी का राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा छिनता है तो पूरे देश में एक ही सिंबल पर चुनाव लड़ने का अधिकार भी नहीं रहेगा। ऐसे में बीएसपी उन राज्यों में ही हाथी सिंबल पर चुनाव लड़ पायेगी जहां उसकी मान्यता राज्य की पार्टी के रूप में होगी।

केवल छह राष्ट्रीय पार्टियां

इस समय देश में छह राष्ट्रीय पार्टियां हैं। इसमें बीजेपी और कांग्रेस के अलावा बहुजन समाज पार्टी, एनसीपी, सीपीआई (एम) और सीपीआई। लोक सभा चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने बसपा, एनसीपी और सीपीआई को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। यह पार्टियां आयोग की शर्तो पर खरी नहीं उतर पा रहीं थीं।

यूपी में हाथी रहेगा बरकरार

बीएसपी का अगर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनता भी है तो यूपी में उसका चुनाव निशान हाथी बरकरार रहेगा। क्योंकि बीएसपी का यूपी में वोट परसंटेज अच्छा है। वहीं उत्तराखंड और बिहार में भी बीएसपी को राज्य पार्टी का भी दर्जा हासिल है। ऐसे में इन दोनों राज्यों में भी बीएसपी को हाथी का सिंबल हासिल रहेगा। बाकी राज्यों के लिए उसे मशक्कत करनी पड़ेगी।

बीएसपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा समाप्त करने के लिए पहले नोटिस दी गयी थी। केंद्रीय चुनाव आयोग में यह केस पेंडिंग हैं। यूपी में होने वाले चुनाव से पहले इस पर फैसला होने की पूरी उम्मीद है।

- अरुण सिंघल

मुख्य निर्वाचन अधिकारी, उत्तर प्रदेश।

Posted By: Inextlive