- आईएसबीटी का रखरखाव कर रही रैमकी कंपनी की भारी लापरवाही

कंपनी न एमडीडीए का बकाया दे रही, न बस अड्डे का रखरखाव कर रही,

राहत की मांग अलग से कर रही कंपनी

प्रमुख बातें

-वर्ष 2004 से 2007 तक एमडीडीए को नहीं दी रकम।

-वर्ष 2007 से 2011 तक एमडीडीए को चुकता की रकम।

-कुछ माह पहले रैमकी कंपनी ने एमडीडीए को चुकता किए 1.94 करोड़।

-रैमकी कंपनी का 3 करोड़ रुपए उत्तराखंड ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन (यूटीसी) पर है बकाया।

-बैठक में हुआ तय, यूटीसी ये रैमकी की बकाया राशि को सीधे एमडीडीए के खाते में करेगा जमा।

-इस 3 करोड़ की राशि के बाद कंपनी को देनी होगी करीब सवा 4 करोड़ की राशि।

-इसके लिए कंपनी सरकार से मांग रही है रियायत।

-कंपनी दे रही है लगातार घाटा होने का तर्क।

-कंपनी के मुताबिक आईएसबीटी में करीब 650-700 बसों का लगा रहता है आना-जाना।

-जबकि शुरुआती अनुमान के मुताबिक करीब 1200 बसों का था अनुमान।

-आईएसबीटी में राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल, यूपी व उत्तराखंड की बसें पहुंचा करती हैं।

-जबकि कुछ लोकल रूट की बसों को भी आईएसबीटी से संचालित होने की दी गई थी परमिशन।

-आईएसबीटी के संचालन के लिए कंपनी के साथ करार 2023 में हो रहा है खत्म।

देहरादून,

करीब डेढ़ दशक पहले अस्तित्व में आया दून स्थित आईएसबीटी (इंटर स्टेट बस टर्मिनलल) अव्यवस्थाओं के लिए लगातार चर्चाओं में रहा है। खासकर, बरसात के सीजन में आईएसबीटी सबसे ज्यादा निशाने पर आ जाता है। फिलहाल, कंपनी कह रही है कि 96 लाख का इस्टीमेट तैयार कर टेंडर जारी कर दिए गए हैं। जल्द ही आईएसबीटी की सूरत बदल जाएगी। लेकिन, हकीकत यह है कि करीब सवा 9 करोड़ की देनदारी के करार के ऐवज में कंपनी ने सवा सात करोड़ रुपए एमडीडीए को देने हैं। ऐसे में कंपनी आईएसबीटी की सूरत बदलने का कंपनी का दावा हवाबाजी माना जा रहा है।

कई नोटिस के बाद मिले 1.94 करोड़

पूर्व सीएम एनडी तिवारी के शासनकाल में आईएसबीटी की शुरुआत की गई थी। उस वक्त रैमकी कंपनी को एमडीडीए की ओर से जमीन उपलब्ध कराई गई थी। शुरुआत में तय हुआ था कि प्रति छह माह तक कंपनी एमडीडीए को 43 लाख रुपए देगी। हालांकि बाद में यह रकम बढ़कर 69 लाख रुपए प्रति छह माह कर दी गई, जो अब तक यथावत है। नियमानुसार शुरुआत के तीन सालों तक कंपनी की ओर से एमडीडीए को रकम देने पर छूट दी गई, लेकिन कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि वर्ष 2007 से 2011 तक करार के अनुसार नियत धनराशि नियमित तौर पर प्राधिकरण को दी गई। कंपनी का कहना है कि घाटा होने की वजह से 2011 के बाद प्राधिकरण को दी जाने वाली राशि में लेट-लतीफी हुई। उधर, एमडीडीए के अधिकारियों का कहना है कि कई नोटिस जारी होने के बाद कुछ माह पहले 1.94 करोड़ रुपए प्राधिकरण को मिल पाए हैं।

कंपनी बना रही घाटे का बहना

वर्ष 2016 में तय हुआ था कि उत्तराखंड परिवहन निगम अपनी बसे खड़ी करने के किराये की राशि कंपनी को न देकर सीधे एमडीडीए के खाते में शिफ्ट करेगा। लेकिन कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि अनुमान के मुताबिक आईएसबीटी से कमाई न हो पाने के कारण लगातार लॉस बढ़ता गया। ऐसे में उत्तराखंड परिवहन निगम की तीन करोड़ की देनदारी को छोड़ दिया जाए तो कंपनी की एमडीडीए को करीब सवा चार करोड़ की देनदारी है। इसके लिए सरकार से बढ़ते लॉस को देखते हुए कंपनी की ओर से रियायत मांगी गई है। बताया गया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान रैमकी कंपनी को हुए नुकसान का सर्वे भी हुआ था। रैमकी के रीजनल इंचार्ज मेजर बीरेंद्र सिंह नेगी का कहना है कि कंपनी ने 96 लाख रुपए की स्वीकृति दे दी है। मेंटेनेंस के लिए ठेकेदार भी नामित कर दिया गया है। जल्द रोड सहित व्यवस्थाएं सुदृढ़ कर दी जाएंगी। जबकि एमडीडीए के अधिकारियों का कहना है कि कंपनी को अभी भी करीब सवा करोड़ रुपए की रकम देनी बाकी है।

Posted By: Inextlive