- बच्चा किराए पर मिलेगा 50 रुपए में - जिस्म भी बेचते हैैं भीख मांगने वाले - नशे की एक खुराक दिन भर भीख- वो पांच साल का है अब जेबकतरा है- भीख के बहाने बैग में लगती है सेंध- कौन वसूलता है कमाई का हिस्सा

 इन चेहरों को देखकर आपका दिल पिघल जाता है। किसी की गोद में दुधमुहां बच्चा आपको पर्स से पैसे निकालने के लिए मजबूर कर देता है। किसी नन्हे मासूम का फैला हुआ हाथ बरबस आपके हाथ से सिक्का टपका देता है। बस स्टैंड, स्टेशन, चौराहों, गलियों में फैली पांच हजार से च्यादा भिखारियों की दुनिया का सच बहुत स्याह है। इतना काला कि इनकी गुरबत पर जुर्म की धुंध छाई है। इमोशनल ब्लैकमेलिंग पर टिकी इस दुनिया में  सेक्स है, ड्रग्स हैं, माफिया है, सिस्टम का एक्सप्लोएटेशन है, ह्यूमन ट्रेफिकिंग है। आई नेक्स्ट ने आपरेशन कटोरा में इस धंधे के तमाम छिपे राज सामने आ गए। इस काली दुनिया से रूबरू होंगे, तो सही में हिल जाएंगे आप

ये मासूम चेहरे नहीं हैं
MEERUT : ये सनसनीखेज खुलासा है। ये उस दुनिया के अंदर झांकने की कोशिश है, जहां हम अक्सर एक सिक्का सरका कर आगे बढ़ जाते हैं। इस पूरे आपरेशन में आप देखेंगे कैसे माफिया के बूट के नीचे बचपन दफन हो रहा है। कैसे बच्चों को नशे की लत लगाकर भीख मांगने की मशीन बना दिया गया है। एक ऐसी दुनिया, जहां आपकी भावनाओं को हवा देने के लिए किराये पर बच्चे मिलते हैैं, मां मिलती है। इस दुनिया में आप समझ नहीं पाएंगे कि बात बैगिंग से प्रॉस्टीट्यूशन तक कब और कैसे पहुंच गई।
खास ऑपरेशन
इस पूरे अभियान की योजना असल में इस बाबत पुख्ता सूचनाओं पर तैयार की गई कि शहर में भीख मंगवाने वाला रैकेट काम कर रहा है। आई नेक्स्ट टीम की एक पखवाड़े तक चली इस खुफिया पड़ताल में हमारी टीम शहर के चौराहों, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन से होती हुई भिखारियों के घर तक पहुंची। इस तफ्तीश में हम मुकाबिल हुए उस माफिया से, जो नशे की डोज के एवज में बच्चों को भिखारी बनाता है। हम मिले ऐसी लड़कियों से, जो सरे चौराहे जिस्म का धंधा कर रही हैैं। मजबूर मां नजर आने वाली शातिर औरतों से, जो हाथ फैलाते-फैलाते आपके बैग, ज्वैलरी पर हाथ साफ कर देती हैैं। बच्चे किराये पर देने वाले परिवारों से। भीख के इस धंधे की लेडी डॉन से।
कड़ी ट्रेनिंग के बाद तैयार होता है भिखारी
MEERUT : शहर के चौराहों, सिनेमाहॉल, बस स्टॉप, ऑटो स्टैंड जैसी तमाम भीड़ भरी जगहों पर पैसे मांगने के लिए लोगों के पीछे दौड़ते ये भिखारी मजबूरी के मारे नहीं हैं। ये भीड़ असल में संगठित है। अपने काम के लिए ट्रेंड। इस हद तक प्रोफेशनल कि एक नजर में भांप जाते हैैं कि पैसे कौन देगा।

नजर डालिए ट्रेनिंग पर
भीख मांगना उतना सीधा नहीं, जितना नजर आता है। ये राज खोला शाहीन ने। अब भला ये शाहीन कौन। ये आठ साल का मासूम है। हमने दो दिन बस स्टैैंड पर इस गूंगे बच्चे को भीख मांगते देखा। इसकी निगरानी के दौरान हम उस समय चौंक गए, जब इसने बस स्टैैंड के बाहर दुकानदार से कहा, गुटका दे दो। शाहीन गूंगा नहीं था। शाहीन को जरा सा डराया गया, तो उसने राज उगलने शुरू किए। शाहीन को गूंगा बने रहने की दो महीने तक प्रेक्टिस कराई गई।

कौन है सिखाने वाला
थाना लिसाड़ी गेट इलाके में एक बस्ती है। यहां खासतौर पर ऐसे बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है। बच्चे ट्रेनिंग देने वाले को चचा के नाम से जानते हैं। चचा इस धंधे का उस्ताद है। वो बच्चों को सिखाता है कि किस किस्म का आदमी जेब से पैसे आसानी से निकालता है।

रहती है नजर
इन बच्चों को तीन-चार के गुट में छोड़ा जाता है। इन पर नजर रखने के लिए एक महिला भिखारी आस-पास रहती है। जांच के दौरान आई नेक्स्ट टीम ने देखा कि ऐन बेगमपुल पर बच्चों के पास एक शख्स बाइक पर पहुंचता है। वो बच्चों को एक पुडिय़ा देता है और बदले में पैसे ले लेता है।
किराए पर मां भी मिलती है, बच्चा भी
भीख मांगने के खेल में हर किसी की अहम भूमिका है। गैंग के कई मेम्बर हैं, जिनके पास बच्चे नहीं है वो दूसरे परिवारों से सुबह बच्चे किराए पर लेते हैं और शाम को बच्चा लौटाने के साथ ही सुबह तय किया गया मेहनताना उस बच्चे के मां-बाप को दे देते हैं। ये बच्चे 50 रुपये से 150 रुपये तक किराए पर लिये जाते हैं। वहीं कुछ परिवारों में कई छोटे बच्चे है, इन बच्चों के किराए पर मां भी मिल जाती है।
भीख मांगना तो साइड बिजनेस है
इन लोगों की जिंदगी का सच जानने में हमारे सामने इस बात का भी खुलासा हुआ कि ये लोग सिर्फ भीख नही मांगते। भीख मांगना तो इनका साइड बिजनेस है। जिसकी आड़ में ये जेब काटना, सामान चुराना और घरों की रेकी करना जैसे काम करते हैं। इन कामों के साथ ये आसपास भी पूरी नजर रखते हैं।
भीख मांगना तो बस दिखावा है
स्टिंग के दौरान हमने कुछ ऐसी लड़कियों को भी फॉलो किया जो सिर्फ दिखावे के लिए भीख मांगती है। शुरुआती दिनों में ये भीख मांगा करती थी, लेकिन अब ये वेश्यावृति के धंधे में उतर चुकी हैं। यहां भीख मांगने और वेश्यावृति में बहुत महीन रेखा है जो इन दोनों धंधों को अलग करती है। ये दोनों अपने तय समय पर बेगमपुल पर पहुंचती हैं। दोनों किसी ग्राहक की तलाश में हाथ में कटोरा लिए इधर-उधर भटकती हैं। कई बार इनकी बात नहीं बन पाती और रेट नहीं पटता, तो ऐसे लोगों को भी वह नहीं छोड़ती हैं, उनकी जेब से सौ-पचास रुपए ऐंठ ही लेती हैं।
भगवान के नाम पर मांगते हैं भीख
बेगमपुल पर शनिवार के दिन पैसे मांगने वाले एक बच्चे से जब हमने बात की तो उसने बताया और दिनों में धंधा मंदा ही रहता है, जहां रोज मुझे तीन सौ से चार सौ रुपये मिल जाते हैं वहीं शनिवार के दिन मैं पांच सौ रुपए से ज्यादा कमा लेता हूं। ऐसा ही हाल गुरुवार के दिन भी रहता है। साईं बाबा को मानने वाले उनके नाम पर गरीबों को दान और खाना देते हैं। शहर की सडक़ों पर हनुमान, मां काली, शिवजी, नारद का रूप बनाए बहरूपिए मिल जाते हैं।
यहां बच्चों की डिमांड है
भीख मांगने और जेब काटने के काम के लिए सबसे ज्यादा मुफीद छह-सात महीने की उम्र के बच्चे से लेकर आठ साल तक के बच्चे हैं। मां की गोद में छह-सात महीने का बच्चा देखकर हर मां का दिल पसीजता है। वो उस भूख से रोते हुए बच्चे को देखकर खुद को रोक नहीं पाती और दस रुपए निकाल कर दे देती है, ताकि उस रोते हुए बच्चे को दूध पिला दिया जाए, ताकि रोते हुए बच्चे को देखकर पैसे जरूर दे।
उम्र से तय होता है काम
एवरेज पांच सदस्यों का परिवार दिन में कम से कम हजार रुपए कमा लेता है.  करीब चार साल की उम्र का बच्चा हो तो उसे भीख मांगने के काम पर लगा दिया जाता है। आठ साल के लडक़े को जेब काटने के गुर सिखाए जाते हैं। वहीं इस उम्र की लड़कियों को भीख मांगने के काम पर ही लगाया जाता है। 12-14 साल की उम्र तक आते आते ये लोग अपनी बेटियों को वेश्यावृति में झोंक देते हैं।

STORY BY SHILPA CHITRANSH< PIC BY RAVI RAJA

Posted By: Inextlive