Jamshedpur : सुसाइड पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है. देखा जाए तो सिटी में सुसाइड रेट कंट्री और स्टेट लेवल से कहीं ज्यादा है. सुसाइड प्रिवेंशन के लिए काम कर रहे लोगों के लिए यह आंकड़ा बेहद परेशान करने वाला है. इस साल वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे के मौके पर इस प्रॉब्लम को एड्रेस करने के लिए कई पहल किए जा रहे हैं.

परेशान करते हैं ये आंकड़
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2012 में सिटी में 133 सुसाइड हुए। हालांकि सुसाइड प्रिवेंशन के लिए काम करने वाली सिटी स्थित जीवन संस्था के प्रेसिडेंट डॉ महावीर राम सुसाइड की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा बता रहे हैं.  जीवन द्वारा कलेक्ट किए गए डाटा के अनुसार 2012 में सिटी में 208 सुसाइड हुए। इससे पहले के सालों में भी सुसाइड के आंकड़े कमोबेश यही हैं। जीवन द्वारा प्रोवाइड किए गए आंकड़ों के अकॉर्डिंग 2007 से लेकर 2012 के दौरान सिटी (आदित्यपुर भी शामिल) में 1090 सुसाइड हुए। यह किसी को भी परेशान करने वाला आंकड़ा है।

ज्यादा है suicide rate
जीवन की ओर से सिटी के 13.5 लाख और आदित्यपुर के दो लाख पॉपुलेशन के आधार पर किए गए कैलकुलेशन के मुताबिक 2012 में सिटी का सुसाइड रेट 13.5 था। वहीं इसी वर्ष स्टेट लेवल पर सुसाइड रेट इससे काफी कम सिर्फ 4.1 है। कंट्री लेवल पर इस दौरान सुसाइड रेट 11.2 था। इतना ही नहीं एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार सिटी में सुसाइड रेट धनबाद (7.2), रांची (7.5), दिल्ली (सिटी) (8.6), कोलकाता (2.6), पटना (2.5) सहित देश के कई शहरों से ज्यादा था।

Parenting में बदलाव है जरूरी
आखिर क्या है बढ़ते सुसाइड की वजह? डॉ राम सुसाइड के लिए समाज में लगातार हो रहे बदलावों के साथ सामंजस्य न बैठा पाना और गलत पैरेंटिंग को बड़ा रीजन बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज जमाना काफी आगे बढ़ चुका है। बच्चों के सोचने के तरीके  में काफी चेंजेज आ चुके हैं, पर मैक्सिमम पैरेंट्स आज भी पैरेंटिंग के सालों से चले आ रहे तरीके को ही फॉलो कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बदलती सोसाइटी और सोच के साथ पैरेंटिंग को भी अपग्र्रेड करने की जरूरत है ताकि पैरेंट्स बच्चों की फिलिंग्स और जरूरतों को समझ सकें।

Lifestyle disease बन रहा suicide
डॉ राम सुसाइड को एक लाइफस्टाइल डिजीज की संज्ञा दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि गैजेट्स का इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहा हैं। इसके एक्सेसिव यूज से कई बार लोग रियल लाइफ से दूर भी होने लगते हैं। जो आगे चलकर डिप्रेशन की वजह बनती है। और यही डिप्रेशन आगे चलकर सुसाइड जैसी समस्याओं को जन्म देती है। साइकोलॉजिस्ट डॉ निधि श्रीवास्तव भी इंटरनेट और मोबाइल के जरिए बनने वाले इमेजनरी वल्र्ड को सुसाइड का एक कारण बता रही है। उन्होंने कहा कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स और कम्यूनिकेशन के अन्य साधनों के बढ़ते इस्तेमाल के चलते लोगों का एक दूसरे के बीच बनने वाला बॉडेज खत्म होता जा रहा है। वर्चुअल फ्रेंड्स रियल फ्रेंड्स की जगह लेने लगे हैं पर बात जब इमोशनल सपोर्ट की आती है तो उस वक्त लोग खुद को अकेला पाते हैं।

दें अस्सी नब्बे पर ध्यान
दें अस्सी नब्बे पर ध्यान, हमें बचाना उनकी जान, सिटी के लोगों को ये नारा दिया है जीवन ने। डॉ महावीर राम बताते हैं कि सुसाइड के करीब 80 परसेंट मामलों में ये डिसीजन अचानक से नहीं लिया जाता। सुसाइडल टेंडेंसी धीरे-धीरे पनपती है। उन्होंने कहा कि इस दौरान व्यक्ति में इस टेंडेंसी के कई लक्षण भी सामने आने लगते हैं। वही सुसाइड के करीब 90 परसेंट मामलों में सुसाइड की पहली कोशिश नाकाम हो जाती है और ऐसा व्यक्ति दूसरी बार फिर से कोशिश कर सकता है। इस 80 और 90 परसेंट लोगों पर ध्यान देकर, उनकी समस्याओं को समझ कर सुसाइड पर लगाम लगाई जा सकती है।

10 से 6 बजे तक होगी counselling
वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे के मौके पर जीवन ने बिष्टुपुर स्थित अपने सेंटर में काउंसलिंग का समय चार घंटे बढ़ाकर 10 से 6 बजे तक कर दिया है। पहले ये सेंटर 2 बजे से लेकर 6 बजे तक ओपन रहता था। नए शिफ्ट का इनॉगरेशन टाटा जेमिपोल के एमडी आदर्श अग्र्रवाल ने किया। इस दौरान डॉ राम, गोविंद माधव शरण सहित कई लोग मौजूद थे। इनॉगरेशन केबाद डॉ राम ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर वल्र्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे के मौके पर ट्यूजडे को होने वाले प्रोग्र्राम्स की सुचना दी। इस दौरान रोटरी क्लब के प्रेसिडेंट डॉ एनसी सिंघल भी प्रजेंट थे।

डरे नही आगे बढ़ें
वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इस साल का थीम ‘स्टिग्मा-ए मेजर बैरियर टू सुसाइड प्रिवेंशन’ रखा है। डॉ राम बताते हैं कि कई बार सुसाइडल टेंडेंसी होने पर भी लोग स्टिग्मा की वजह से सुसाइड प्रिवेंशन सेंटर, साइकियाट्रिस्ट के पास नहीं जाते। टीएमएच हॉस्पिटल के साइकियाट्रिस्ट डॉ संजय अग्रवाल भी स्टिग्मा को सुसाइड प्रिवेंशन में बड़ी रुकावट बता रहे हैं। उन्होंने कहा की कई बार लोग बीमार होते हैं, लेकिन सोशल स्टिग्मा की वजह से साइकिएट्रिस्ट के पास नहीं जाते। उन्होंने इस सोच को गलत बताते हुए कहा कि हमारे आस-पास कई लोग होते हैं, जो ट्रीटमेंट करवा कर एक अच्छी लाइफ जीते हैं। ऐसे में सभी को आगे बढऩा चाहिए और जरूरत के वक्त एक्सपट्र्स से हेल्प लेनी चाहिए।

सुसाइड एक लाइफ स्टाइल डिजीज बनता जा रहा है। इससे निपटने के लिए पैरेंटिंग के तरीकों में बदलाव की जरूरत है। हर स्कूल में इमोशनल काउंसलर होना चाहिए। लोगों में सुसाइडल टेंडेंसी की पहचान कर उनकी काउंसलिंग बेहद जरूरी है।
-डॉ महावीर राम, प्रेसिडेंट, जीवन


आजकल लोगों में टोलरेंस लेवल काफी कम हो गया है। छोटी सी बात बड़ा मुद्दा बन जाती है और मामला सुसाइड तक पहुंच जाता है। मोरल वैल्यूज की शिक्षा बेहद जरूरी है।
-डॉ निधि श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट
परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती, किसी भी सिचुएशन से परेशान होकर सुसाइड जैसा रास्ता अपनाना गलत है। इस तरह की किसी परेशानी में हमें खुलकर बात करनी चाहिए और जरूरत पड़े तो बिना झिझक ट्रीटमेंट करवाना चाहिए।
-डॉ संजय अग्रवाल, साइकियाट्रिस्ट

Report by : abhijit.pandey@inext.co.in

Posted By: Inextlive