श्री कृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है। उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाएं जाते हैं और उनका अभिषेक किया जाता है।

जन्माष्टमी के दिन प्रातःकाल में स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।

देवकीजी के लिए करें गृह का निर्माण


अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए गृह का निर्माण करें। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति या प्रतिमा में बालकृष्ण के साथ देवकी जी अथवा लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों या ऐसी कृष्ण के जीवन के किसी भी अहम वृतांत का भाव हो।

श्रीकृष्ण को ऐसे तैयार कराएं, माखन—मिश्री का भोग


उसके बाद श्री कृष्ण की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है। उसके बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाएं जाते हैं, और उनका अभिषेक किया जाता है। अभिषेक करने के बाद उन्हें सुगन्धित पुष्प, फल, मिष्ठान आदि अर्पित किये जाते हैं। फिर उन्हें माखन-मिश्री, जो की उनका प्रिय है उसका भोग लगाया जाता है। इसके अलावा आप जन्माष्टमी के प्रसाद में पंजीरी व् पंचामृत का भी भोग लगा सकते हैं।

इस समय तोड़ें व्रत

व्रत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ा जाना चाहिए। इसका ध्यान रखना चाहिए कि व्रत अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के पश्चात ही तोड़ा जाए। किन्तु यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त ना हो, तो किसी एक के समाप्त होने के पश्चात व्रत तोड़ें। किन्तु यदि यह सूर्यास्त तक भी संभव ना हो, तो दिन में व्रत ना तोड़ें और अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से किसी भी एक के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें या निशिता समय में व्रत तोड़ें। ऐसी स्थिति में दो दिन तक व्रत न कर पाने में असमर्थ व्यक्ति सूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत तोड़ सकते हैं।

-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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Posted By: Kartikeya Tiwari