पहले से बनारस को बना रहा जापान
विश्व के सबसे पुराने शहरों में शुमार बनारस को जापान के सहयोग से वहां के हेरिटेज सिटी क्योटो की तर्ज पर डवलप करने का प्लैन भले नया हो लेकिन सच ये भी है कि जापान बनारस को पहले से बना रहा है। पड़ गये न चक्कर में? जी हां, ये एक बड़ा सच है। कैसे जापान से जुड़ा हुआ है बनारस ये भी जानिये हमारी आज की रिपोर्ट में।
सारनाथ, गंगा, घाट की शान बढ़ा रहा जापान - सारनाथ में जापान कर चुका है बौद्ध मंदिर के साथ शांति स्तूप का निर्माण - अब गंगा एक्शन प्लैन के तरह अरबन डवलपमेंट के प्रोजेक्ट्स में कर रहा हेल्प - जापानी एजेंसी जायका ने घाटों के ब्यूटीफिकेशन के लिये किये हैं तमाम जतनVARANASI : अपने देश पीएम और बनारस एमपी नरेन्द्र मोदी ने बनारस को जापानी हेरिटेज सिटी क्योटो के तर्ज पर डवलप करने के लिये जापान से समझौता किया है। इस ताजा खबर ने बनारस के डवलपमेंट की एक नई आस जगा दी है। जापान का हेरिटेज सिटी क्योटो आज वहां के स्मार्ट सिटीज में एक है। एडवांस होने के बावजूद क्योटो अपनी तमाम धरोहरों को संजोये है और इसमें से कुछ वर्ल्ड हेरिटेज में भी शामिल हैं। कुछ ऐसा ही जापान गवर्नमेंट की हेल्प से बनारस में होगा। ये पहला मौका नहीं जब जापान बनारस के डेवलपमेंट के लिए आगे आया है। यहां तो काफी पहले से ही जापान विकास की बयार बहाये हुए है।
चल रहे हैं कई प्रोजेक्ट जापान की संस्था जापान इंटरनेशनल कोआपरेशन एजेंसी (जायका) गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने की पहले से हेल्प कर रही है। गंगा एक्शन प्लान के तहत नेशनल गंगा बेसिन एथॉरिटी की रूपरेखा के अनुसार ब्97 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट है। प्रोजेक्ट को दो हिस्सों में बांटा गया है। गंगा में गिरने वाले सीवेज को रोकने का काम जल निगम करा रहा है। वहीं नान सीवेज वर्क्स को नगर निगम पूरा कर रहा है। इस प्रोजेक्ट में जायका की ओर से ब्97 करोड़ रुपये की फंडिंग की गयी है। जायका से सहयोग से सीवरेज के कामों सबसे महत्वपूर्ण सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण है। इसके साथ फ्ब् किलोमीटर नयी सीवर लाइन बिछाने और पुरानी सीवर लाइन को दुरुस्त करने का काम है। नान सीवरेज वर्क के तहत ख्म् घाटों का रिनोवेशन होना है। घाटों के आसपास ब्0 कम्यूनिटी टायलेट काम्प्लेक्स बनना है। सात धोबी घाट के साथ पब्लिक को अवेयर करने का काम भी जायका नगर निगम के सहयोग से कर रहा है।एक दशक पहले तय हुई रूपरेखा
बनारस को बदले की रूपरेखा एक दशक से पहले बनी थी। वर्ष ख्00क् में तत्कालीन प्रधानमंत्री के जापान दौरे के वक्त गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने की योजना को अमली जामा पहनाया जा सका। इसके बाद जापान के विशेषज्ञों की टीम ने शहर में आकर गंगा की स्टडी की। प्रोजेक्ट तैयार किया। ख्00फ् में तय प्रोजेक्ट के तहत काम शुरू हो गया। एक ओर जल निगम तो दूसरी ओर नगर निगम जायका के सहयोग से काम करते रहे। इस दौरान जापान के विशेषज्ञों की टीम लगातार गाइड करती रही। समय-समय पर जरूरत होने पर प्रोजेक्ट में कुछ जोड़ा गया तो कुछ घटाया गया। सारनाथ को दिया मंदिरजापानियों के लिये सारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। काफी समय पहले से ही यहां जापानी बौद्ध फालोअर्स आते-जाते रहे हैं। इसे ध्यान में रखते हुए जापान के धर्मचक्र इंडो जापान बुद्धिस्ट कल्चरल सोसाइटी ने सारनाथ में एक बुद्ध मंदिर की आधारशिला ख्फ् साल पहले रखी। यह मंदिर फ्0 सितंबर क्98म् में बनना स्टार्ट हुआ। दो साल में ही जापानी स्थापत्य कला पर आधारित इस मंदिर ने आकार ले लिया। साज सज्जा के बाद जापानी मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया। तब से लेकर अब तक इस मंदिर में जापान से आने वाला हर बौद्ध फालोअर शीश नवाने जरूर पहुंचता है।
स्तूप देता है शांति का संदेश सारनाथ स्थित जापानी मंदिर जहां दुनिया भर के श्रद्धालुओं में श्रद्धा का भाव जगा रहा है तो मंदिर से सटे बना स्तूप शांति का संदेश कोने कोने में फैला रहा है। बता दें कि मंदिर कैंपस से सटे ही जापानी सोसाइटी ने शांति का मैसेज देने के लिए एक स्तूप स्थापित किया है। जहां पहुंचे श्रद्धालु अपने साथ शांति का संदेश भी लेकर वापस लौटते हैं। मदद के बावजूद बदहाली (द फ्लिप साइड) जहां जायका बनारस के विकास में मदद के लिये हाथों हाथ तैयार है वहीं काफी कुछ होने के बाद बदहाली के निशान मिट नहीं रहे। देखिये एक नजर में -जायका की ओर से मिली बड़ी धनराशि से काम तो शुरू हो गया लेकिन रिजल्ट अच्छा नहीं है। -अभी तक लगभग तीन सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन काम को पूरी गति नहीं मिली है। - वरुणापार एरिया के सीपेज को गंगा में गिरने से रोकने के लिए सीवर लाइन बिछा दी गयी है।- ट्रीटमेंट प्लांट के लिए जमीन तय नहीं हो सकी। पहले संथवां में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनना था।
-जमीन नहीं मिल पाने की वजह से ट्रीटमेंट प्लांट टाइम लिमिट से काफी लेट हो चुका है। -पुरानी सीवर लाइन की मरम्मत का काम भी पूरा नहीं, तीन में से एक पम्पिंग स्टेशन ही बना है। - -कम्यूनिटी टायलेट काम्प्लेक्स भी अधर में, धोबी घाट नहीं बने और घाटों का रिनोवेशन भी शुरू नहीं। -मणिकर्णिका, हरिश्चंद्र, अस्सी घाट जिनका रिनोवेशन जायका टीम ने किया, उसे पब्लिक ने बर्बाद कर डाला है। समझौते से क्या होगा जब ये है हाल -जापान के साथ बनारस को डेवलप करने का नया करार कितना कारगर होगा यह तो वक्त बताएगा। - हर प्रोजेक्ट में केंद्र और राज्य सरकार के बीच सामंजस्य की कमी सबसे बड़ी अड़चन बनती है। - विभिन्न विभागों के बीच तालमेल न होने से भी टेक्निकल इश्यूज खड़े होते हैं और प्रोजेक्ट लेट होता है। - ज्यादातर सरकारी एजेंसियां ठेकेदारों से काम कराती हैं जिनका फोकस लूटने पर रहता है। - जापानी एक्सपर्ट्स की गाइडलाइंस को भी कई बार इग्नोर किया जाता है जिससे मुश्किल आती है। - लोकल लेवल पर पब्लिक को साथ न लेने से विरोध होता है, संथवा ट्रीटमेंट प्लांट इसका उदाहरण है। क्योटो से मेल खाती है अपनी काशी - दोनों ही हेरिटेज सिटीज में काफी कुछ हैं समानताएं, दोनों की ही गिनती होती है प्राचीन शहरों में क्ड्डह्मड्डठ्ठड्डह्यद्ब@द्बठ्ठद्गफ्ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ : पीएम मोदी की ओर से काशी को जापान के क्योटो की तरह डवलप करने के एग्रीमेंट के बाद हो सकता है कि आप सोचें कि क्योटो की तर्ज पर डवलपमेंट क्यों। टोक्यो या नागासाकी की तरह डवलपमेंट क्यों नहीं। दरअसल जिस तरह बनारस पुराने और जीवंत शहरों में शुमार है। उसी तरह क्योटो भी पुराना और जीवंत शहर है। इसके अलावा भी क्योटो और अपनी काशी में काफी कुछ सेम है। , - काशी दुनिया की सबसे पुरानी और जीवंत नगरी के रुप में फेमस है। - क्योटो भी जापान के इतिहास में सबसे पुराने और जीवंत शहरों में शामिल है। - जिस तरह बनारस देश के धर्म और संस्कृति की राजधानी है वैसे ही क्योटो जापान की धर्म और संस्कृति की राजधानी का बड़ा केन्द्र है। - बनारस जैसे गंगा, वरुणा और असि नदी से घिरा है वैसे ही क्योटो उजिगावा, कस्तूरगावा और कामोगावा नदियों के किनारे बसा है। - काशी में भगवान बुद्ध ने अपना उपदेश दिया जबकि क्योटो में भगवान बुद्ध के काफी अनुयायी हैं। - काशी विश्वनाथ मंदिर के तर्ज पर क्योटो का तोजी मंदिर जापानियों के लिये आस्था का बड़ा केंद्र है। - वर्ल्ड हेरिटेज रिलीजियस प्लेसेज में शामिल तोजी टेम्पल साल भर में कुछ ही दिनों के लिए खुलता है। - काशी विश्वनाथ मंदिर भी है द्वादश ज्योर्तिलिंगों में शामिल। - क्योंकि क्योटो एकलौता ऐसा शहर जो जापान में सेकेंड वर्ड वार के बाद भी अपनी स्थिति में खड़ा रहा इस वजह से इस धार्मिक शहर के प्रति आस्था और मजबूत हुई। - जैसे बनारस में हजारों की संख्या में शिवालय हैं वैसे ही क्योटो में ख्000 से ज्यादा धर्मस्थल हैं। इसलिये भी स्पेशल है क्योटो - ख्000 से ज्यादा धर्म स्थल हैं क्योटो में। - क्म्00 बौद्ध मंदिर और ब्00 शिंतों धर्मशालाएं हैं यहां। - ख्0 परसेंट धरोहरें, क्ब् सांस्कृति संपत्तियां हैं मौजूद। - क्7 स्थान यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक धरोहरों में हैं शामिल। - हाईस्पीड ट्रेनों समेत बेस्ट परिवहन सेवा है क्योटो में। - पयर्टकों का आकर्षित करने के लिए इस सांस्कृतिक नगरी को किया गया है वैसे ही डेवलप। - हर साल तीन करोड़ पर्यटक पहुंचते हैं क्योटो, इससे जापान की इकोनॉमी को होता है फायदा। - इसी तर्ज पर बनारस को धार्मिक और सांस्कृति नगरी के तौर पर डेवलप कर पर्यटकों को लाने की है प्लैनिंग। क्योंकि जापान समेत हर देश के लिए हैं खास - बनारस और शहरों की तुलना में अलग है इसलिए यहां हर साल दुनिया भर से लाखों पर्यटक यहां आते हैं। - शहर की आबादी है लगभग क्8 लाख से ज्यादा। - पर्यटन विभाग के मुताबिक हर साल बनारस आने वाले पर्यटकों की संख्या होती है लगभग चार से पांच लाख। - इनमे जापान के टूरिस्ट्स की संख्या भी होती है एक से डेढ़ लाख। - जापान से आने वाले अधिकतर सैलानी सारनाथ बौद्ध दर्शन के लिए आते हैं। - इसके अलावा थाईलैंड, श्रीलंका समेत कई दूसरे बौद्ध देशों से भी भारी संख्या में पर्यटक यहां आते हें ----------- बहुत अच्छा होगा अगर ये होगा - मोदी और जापान सरकार की ओर से काशी और क्योटो के समझौते को लेकर खुश हैं काशी में रहने वाले जापान के लोग क्ड्डह्मड्डठ्ठड्डह्यद्ब@द्बठ्ठद्गफ्ह्ल.ष्श्र.द्बठ्ठ ङ्कन्क्त्रन्हृन्स्ढ्ढ : काशी हर किसी को अपनाती है। यही वजह है कि यहां हर साल इस शहर की संस्कृति से प्रभावित होकर दर्जनों विदेशी यहीं के होकर रह जाते हैं। ऐसे ही कुछ जापानी नागरिक भी हैं जो आये तो थे काशी घूमने लेकिन फिर यही पर बस गए। इनमें से कुछ से हमने बात की और जानी उनकी राय जापान और भारत के इस समझौते पर। आई ओर बस गई ऐसी ही एक हैं सारनाथ में रह रही मिहो ईवाई जैन। मिहो बताती हैं कि ख्00ख् से पहले वह परिवार के साथ सारनाथ घूमने आई थी और यहां उनकी मुलाकात सारनाथ के अजय जैन से हुई। तब अजय स्टूडेंट थे। इन दोनों में बातचीत शुरू हुई और देखते ही देखते दोस्ती प्यार में बदल गई और मिहो ने अजय को अपना जीवन साथी बनाने के बाद जापान छोड़कर सारनाथ में ही रहना ठीक समझा और अब मिहो अजय के साथ यही पर पिछले क्ख् सालों से रह रही हैं। जापान के हिमेजी की रहने वाली मिहो बताती हैं कि ये समझौता निश्चित ही काशी की तकदीर बदलने का काम करेगा और काशी को वह सब मिलेगा, जिसकी वह हकदार है। वहीं पाण्डेयघाट पर ब्0 साल पहले आकर यही के शांति रंजन गंगोपाध्याय से शादी रचाकर यही के हो जाने वाली कोनिको का कहना है कि सरकार का ये कदम वेलकम करने वाला है क्योंकि यहां हर साल काफी जापानी टूरिस्ट आते हैं लेकिन उनको ये शहर अपना नहीं लगता। अब इस शहर की सूरत बदलेगी। इसके अलावा विश्वनाथ गली में जापान के कोबे से आकर बसी मेगूमी हिसादा का कहना है कि ख्00फ् में वह काशी और यहां के संजय से शादी करके बस गई। मेगूमी का कहना है कि काशी के असल रुप को बनाये रखते हुए क्योटो की तर्ज पर इसका विकास होना चाहिए।