- प्राइवेट डॉक्टरों से बीच में ही इलाज छोड़ने वालों की पहचान के लिए प्रोजक्ट होगा शुरू

- यहां इलाज करा रहे टीबी रोगियों का डाटा कलेक्ट करेगी टीम

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3-सीवी नॉट मशीनें लगी हैं डिस्ट्रिक्ट में

2-सीबी नॉट मशीनें डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में

1 सीबी नॉट मशीन मीरगंज सीएचसी पर लगी

7-हजार करीब मरीज हैं डिस्ट्रिक्ट में रजिस्टर्ड

2.5 हजार मरीज निजी क्षेत्र के आए हैं अक्टूबर तक सामने

14-हजार करीब मरीजों की संख्या दिसम्बर तक पहुंचने की संभावना जता रहे डॉक्टर

46-जांच केन्द्र हैं डिस्ट्रिक्ट में टीबी के

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बरेली : टीबी के खात्मे के लिए सबसे बड़ी चुनौती निजी प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टरों और फार्मासिस्ट से मिल रही है। तमाम कोशिशों के बाद भी इनसे इलाज करा रहे टीबी मरीजों की पहचान नहीं हो पा रही है। इस चुनौती से पार पाने के लिए शासन ने अब 'जीत' यानि ज्वाइंट एफर्ट फॉर एलिमिनेटिंग ऑफ टीबी प्रोजेक्ट लॉन्च किया है। इसके तहत जिला टीबी विभाग और सेंटर फॉर हेल्थ रिसर्च एंड इनोवेशन पाथ मिलकर टीबी से जंग लड़ेंगे।

प्राइवेट प्रैक्टिस करने वालें डॉक्टरों से इलाज कराने वाले टीबी मरीजों को दवाइयों पर हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। ज्यादा खर्चे के कारण वे कई बार बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं और उनके बारे में सरकारी महकमे को कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। ये ही मरीज टीबी की रोकथाम में रोड़ा बने हुए हैं। साथ ही प्राइवेट डॉक्टर भी इनसे जुड़े रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं कराते थे।

ऐसे करेंगे काम

ऐसे में जीत प्रोजेक्ट के तहत शहर के प्राइवेट डॉक्टर्स को सेक्टरों में बांटा जाएगा। प्रत्येक सेक्टर में एक सेंटर बनेगा, जहां पर एक-एक को-ऑर्डिनेटर तैनात होगा। इसके लिए सर्वे भी शुरू कर दिया गया है। प्रत्येक सेक्टर की टीम अपने-अपने सेक्टर में प्राइवेट डॉक्टर्स से संपर्क कर उनके यहां इलाज करा रहे टीबी रोगियों का डाटा कलेक्ट करेगी। साथ ही डॉक्टरों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाएगा कि वे टीबी रोगियों को फ्री इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में भेजें। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्राइवेट डॉक्टर्स को प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी।

जानकारी छिपाने पर होगा मुकदमा

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ। एसके गर्ग ने बताया कि यदि कोई प्राइवेट डॉक्टर टीबी मरीजों की जानकारी छिपाता है और जांच में यह बात साबित हो जाती है तो उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया जा सकता है।

डेली लेना होगा फीडबैक

समय से दवा लेने की आदत डालने के लिए टीबी हॉस्पिटल के लोग और सभी सेक्टर की टीम टीबी रोगियों से डेली फीड बैक लेंगे। इसके लिए एक टीम मेंबर को कम से कम चार मरीजों का फीडबैक लेगा। इसमें यह बताना होगा कि मरीज ने दवा खाई या नहीं, दवा लेने के लिए अस्पताल कब आना है और अन्य जानकारी। इसका मकसद मरीज को नियमित रूप से दवा लेने की आदत डालना है।

मरीज लाने वाले को प्रोत्साहन राशि

टीबी मरीजों को चिह्नित करने में कोई मदद करता है तो उसे भी प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। कोई भी व्यक्ति टीबी मरीज को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल पहुंचा सकता है। अगर जांच में टीबी की पुष्टि होती है तो उसे मरीज लाने के बदले 500 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। लेकिन, मरीजों की जानकारी देने या मरीजों को लाने वाले व्यक्ति को पहले टीबी हॉस्पिटल में अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। ताकि उसे प्रोत्साहन राशि मिल सके।

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टीबी से जंग अब जीत प्रोजेक्ट के साथ लड़ी जाएगी। टीबी मरीजों को अपना इलाज कराना चाहिए, कोई टीबी मरीज आसपास हो तो उसकी सूचना जरूर दें। टीबी का पूरा इलाज फ्री है। यदि किसी मरीज को कोई प्रॉब्लम आती है तो वह खुद आकर मुझसे मिल सकता है।

डॉ। एसके गर्ग, जिला क्षय रोग अधिकारी

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बॉक्स : सरकारी अस्पतालों में इलाज फ्री

टीबी मरीज को स्पूटम की सीवी नॉट जांच के लिए प्राइवेट अस्पताल में तीन हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। जबकि डिस्ट्रिक्ट को-कॉर्डिनेटर यह जांच सरकारी हॉस्पिटल में अब फ्री कराएंगे। इसका बड़ा फायदा निजी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टरों से इलाज करा रहे मरीजों को होगा।

Posted By: Inextlive