RANCHI : डिप्रेशन की वजह चाहे कॅरियर बिल्डिंग की रेस में पिछडऩा रही हो या ब्वॉयफ्रेंड से हुई अनबन मगर इसी डिप्रेशन ने बॉलीवुड एक्ट्रेस जिया खान को सुसाइड करने पर मजबूर कर दिया. सिटी के अपोलो हॉस्पिटल में न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉ पवन कुमार बर्णवाल के पास भी ऐसे कई केसेज आए हैं जिनमें डिप्रेशन के शिकार लोग यह कहते हैं कि अब उन्हें जीने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं है और वो सुसाइड करना चाहते हैं. आमतौर पर उनके डिप्रेशन की वजह कॅरियर में एक्सपेक्टेशंस का पूरा न होना और रिलेशनशिप्स में दरार आना होती है. आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ केसेज पर एक नजर.


मैं मर जाता, तो अच्छा होता

अपोलो में न्यूरोसाइकियाटिस्ट डॉ पवन कुमार बर्णवाल बताते हैं कि सिटी के हाई प्रोफाइल पोस्ट पर बैठे एक ऑफिसर की मैरेड लाइफ इतनी खराब हो चुकी है कि वह डिप्रेशन में जी रहे हैं। उनकी प्रॉब्लम यह है कि शादी के बाद उनके और उनकी बीवी में कभी नहीं बनी। दोनों के बीच हमेशा तनातनी रही। उनका कहना है- हमेशा मुझे लगता है कि मर जाता, तो अच्छा रहता। पर, जब बेटी का ख्याल आता है, तो चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाता हूं। अभी वह डॉ पवन से काउंसलिंग करा रहे हैं।

दो बार की suicide की कोशिश
डॉ पवन ने बताया कि प्रोफेशनल लाइफ में परफॉर्मेंस की प्रॉब्लम से जूझ रहे समस्तीपुर के एक फिजिक्स डेमोंस्ट्रेटर ने उनसे कंसल्ट किया है। इस शख्स ने दो बार सुसाइड की कोशिश की, पर वह बच गए। उनकी प्रॉब्लम यह है कि वह कभी अपने ऑफिस में बेहतरीन परफॉर्मेंस नहीं दे पाए और इसकी वजह से उन्हें अपने सीनियर से डांट सुननी पड़ती है। लगातार यही सिचुएशन बना रहना उन्हें डिप्रेशन की ओर ले गया और अपनी टेंशन को कम करने का आखिरी रास्ता उन्हें सुसाइड सूझा, हालांकि काउंसलिंग के बाद उनकी हालत में सुधार है।

फांसी लगाई, पर बच गई
उम्मीदें पूरी न होने से हुई टेंशन की वजह से सुसाइड की कोशिश का एक मामला अपोलो हॉस्पिटल में एडमिट एक लड़की का है। इस लड़की ने हैंगिंग कर ली थी, पर इसे बचा लिया गया। लड़की का कहना था कि फादर से हुई अनबन की वजह से उसने सुसाइड का फैसला किया था। डॉ पवन बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति सुसाइड तब करता है, जब उसे लगता है कि उसके लिए सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं और सुसाइड ही उसके लिए आखिरी रास्ता है। ऐसे पेशेंट्स की अगर सही समय पर पहचान कर ली जाए और उन्हें काउंसलिंग मिले, तो उन्हें बचाया जा सकता है।

उदासी में suicide
बोकारो की 36 साल की प्रीति (बदला हुआ नाम) हाउस वाइफ हैं। वह डिप्रेशन की शिकार हैं। उनका मन बेहद उदास रहता है। किसी काम में मन नहीं लगता। न किसी से बातचीत करने का मन होता है, न ही भूख लगती है। जी चाहता है कि सुसाइड कर लें। अब ट्रीटमेंट के बाद इनकी हालत में सुधार हुआ है।

‘Development leads to depression’
न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉ पवन कुमार बर्णवाल बताते हैं कि डिप्रेशन डेवलपमेंट की देन है। जिस भी सोसाइटी, स्टेट या कंट्री में जितना ज्यादा डेवलपमेंट होगा और जहां ब्रेन का यूज ज्यादा होगा, वहां डिप्रेशन के पेशेंट्स बढ़ेंगे। आज लोगों के पास न तो मॉर्निंग वॉक करने का टाइम है, न ही वे बैलेंस्ड डायट ही लेते हैं। वर्कलोड बढऩे के कारण उनमें मोनोटोनस लाइफ जीने की टेंडेंसी बढ़ी है। ऐसे में डिप्रेशन बढऩा नैचुरल है।

महिलाएं ज्यादा होती हैं शिकार
सीसीएल नयासराय हॉस्पिटल के न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट डॉ दीपक सिंह बताते हैं कि साल 2006 में सीआईपी में मूड डिजॉर्डर और सीजनल इफेक्ट पर एक थीसिस प्रेजेंट की गई थी। उसमें ये फाइंडिंग्स आई थीं कि 35 से 50 साल के एज ग्रुप में और खासकर महिलाओं में डिप्रेशन होने के चांसेज 6 से 7 परसेंट तक बढ़ जाते हैं।

इसलिए होता है depression
न्यूरोसाइकियाट्रिस्ट्स बताते हैं कि ह्यïूमन ब्रेन में किसी वजह से सिरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर में इंबैंलेंस होने से लोगों को डिप्रेशन होता है। काउंसलिंग और एंटी डिप्रेसेंट ड्रग्स के इस्तेमाल से इसी इंबैलेंस को दूर करके डिप्रेशन का ट्रीटमेंट किया जाता है। डिप्रेशन के पेशेंट को हाई रिस्क मैनेजमेंट की जरूरत पड़ती है। ऐसे पेशेंट की पहले तो काउंसलिंग करनी होती है, फिर उन्हें अकेले न छोडऩे की सलाह डॉक्टर पेशेंट के परिजनों को देते हैं। इसके अलावा इनके पास कोई भी घातक सामान नहीं रहने देना चाहिए, क्योंकि ऐसे पेशेंट्स को सुसाइडल थॉट्स बहुत आते हैं।

Posted By: Inextlive