Bareilly: बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा रही ’जॉली एलएलबी‘ में अरशद वारसी की कहानी में थोड़ा फिल्मी टच जरूर है लेकिन सच्चाई से ज्यादा दूर भी नहीं है. एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद हजारों वकीलों की भीड़ में अपनी पहचान बनाना न्यू कमर्स के लिए किसी बेहद पेचीदा केस को सुलझाने से अधिक टफ है. आज हम आपको सिटी के कुछ ऐसे ही न्यू कमर्स और उनके एक्सपीरियंस से रूबरू करवाएंगे.


Barrister बनना कोई बच्चों का खेल नहीं


केस की मुश्किलों को अपने तर्कों से चुटकियों में सुलझाना इनके बाएं हाथ का खेल है, उनके नॉलेज के आगे सब नत-मस्तक होते हैं, वह जोखिम के भंवर में फंसी जिंदगी को आसानी किनारे तक पहुंचा देते हैं। पर इनके प्रोफेशन में स्ट्रगल कम नहीं है। हाल ही में रिलीज फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ में न्यू कमर एडवोकेट के सामने आने वाले स्ट्रगल्स से रूबरू कराया गया है। संघर्ष की कुछ ऐसी ही कहानी सिटी के न्यूकमर एडवोकेट्स के सामने भी आ रही है। एलएलबी डिग्री हासिल करने के बाद स्टूडेंट्स को कॉलेज के अंदर दिखाई गई दुनिया और बाहर की हकीकत के अंतर से रूबरू होने का मौका मिलता है। क्या है सपने और हकीकत के बीच का अंतर, आई नेक्स्ट ने सिटी के न्यू कमर एडवोकेट्स से जानने की कोशिश की। सिटी में रजिस्टर्ड 5000 सीनियर्स के बीच कैसे ये अपने करियर को संवार रहे हें। सीनियर्स के सामने पहचान बनाना मुश्किल

न्यूकमर एडवोकेट सौरभ तिवारी बताते हैं कि एलएलबी करके आने वाले न्यू कमर्स को कचहरी में अलग-अलग तरह की मुसीबतों क ो फेस करना पड़ता है, इनमें सबसे बड़ा चैलेंज सिटी की कचहरी में पहले से वकालत करने वाले सीनियर्स होते हैं। कोई भी व्यक्ति कचहरी में तभी पहुंचता है, जब वह सबसे ज्यादा मुश्किल में होता है। मुश्किल वक्त में कोई भी व्यक्ति अपने लिए बेस्ट रिजल्ट्स की डिमांड करता है और इसके लिए वह सबसे नामी वकील के पास पहुंच जाता है। ऐसे में न्यू कमर्स के सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम मुवक्किल को अपने चैंंबर की ओर अट्रैक्ट करने की ही होती है।सीनियर्स की हेल्प होती है जरूरी न्यू कमर्स की मानें तो कचहरी में उन्हें कोई सिखाता नहीं है। सीनियर्स के साथ काम करने पर वे केवल उनसे फोटो कॉपी से लेकर तारीख लेने के ही काम करवाते हैं। उन्हें कोर्ट में खुद को साबित करने का कोई मौका नहीं मिलता है। यहां तक कि सीनियर्स उन्हें कोर्ट के काम के बारे में भी कम ही बताते हैं। बस इनकी मेहनत ही इनके मंजिल का रास्ता निकालती है। ईमानदारी सबसे इंपॉर्टेंट

न्यूकमर एडवोकेट बृजेश कुमार कहते हैं काम में ईमानदारी हो तो आगे बढऩा मुश्किल नहीं है। मेहनत और ईमानदारी से काम करते हुए कभी भी आगे बढ़ा जा सकता है। जो भी सीनियर्स लिखते हैं, जो भी जिरह में बोलते हैं, उन सभी बातों को सुनकर और ऑब्जर्व करके ही सीखा जा सकता है। खास बात यह भी है कि जो कॉलेज में बताया जाता है, वह प्रैक्टिकल से काफी अलग होता है।मुश्किल से मिलता है पहला केसबड़े वकालत खाने के चैंबर नं 10 में तमाम सीनियर्स के बीच एक चेहरा जो यूं ही अट्रैक्ट करता है। ये पंकज सिंह हैं। पंकज को कचहरी में एक साल अभी पूरा नहीं हुआ है। पर वह कचहरी में न्यूकमर्स की सक्सेस को लंबा स्ट्रगल मानते हैं। पंकज कहते हैं कि शुरू में तो समझ में ही नहीं आता है कि करना क्या है। नए चेहरे की तरफ तो कोई मुवक्किल देखता तक नहीं है। कई बार तो गाड़ी में पेट्रोल डलवाने के लिए भी पैसा नहीं होता है। पहले केस के लिए तो काफी समय लग जाता है। न्यू कमर्स के मुताबिक कचहरी में आने के बाद पहले एक साल तक तो कई बार वक्त काटना भी मुश्किल हो जाता है। My first case experience
मेरा पहला मुवक्किल कचहरी में बैठने के 6 महीने के बाद मुझे मिला। यह केस उपभोक्ता फ ोरम के लिए था। मेरे क्लाइंट का नाम नीरज था। नीरज का प्रिंटर गारंटी पीरियड में खराब हुआ था, और कंपनी उसे ठीक करके नहीं दे रही थी। जब वह मेरे पास आया तो मैंने उसे पहले तो भरोसा दिलाया कि उसका काम हो जाएगा। मैंने केस फाइल किया और दो महीने में ही नया प्रिंटर मिल गया। इसी केस के लिए मुझे पहली बार मेहनताना भी मिला। पर इस केस के लिए फस्र्ट मीटिंग में क्लाइंट को सैटिसफाई करना थोड़ा मुश्किल था।  Ist day in courtमैं पहली बार सीनियर के केस के लिए ही सीजेएम के क ोर्ट में गया था। उस दिन केस में रिपोर्ट आनी थी। मुझे देखकर पहले तो सीजेएम ने पूछा कि आप कौन कितना समय हुआ.  मैंने कॉन्फिडेंटली आंसर किया, उसके बाद ही उन्होंने केस की हियरिंग शुरू की। -पंकज सिंह, सीनियर्स ने दिया साथ मेरा पहला केस रजिस्ट्रेशन के कुछ ही दिन बाद मेरे पास आ गया था। यह रंजिशन मारपीट का केस था। क्लाइंट की जमानत करवानी थी। मैंने उन्हें बताया कि यह काम हो जाएगा और इसके लिए दो गारंटर्स की जरूरत पड़ेगी। पर क्लाइंट ने इसके लिए मुझसे कई बार काम की गारंटी के बारे में पूछा। तब मेरे सीनियर्स ने भी मेरा साथ देते हुए उन्हें सैटिसफाई किया। और वह केस मैंने हैंडल किया और काम पूरा भी हो गया। बस कोर्ट में देखता रहा
'कोर्ट में जाने में पहले-पहल तो लोग पहचानते भी नहीं हैं। कई बार तो सीनियर्स का रिफ्रेंस भी देना होता है। जब पहली बार क ोर्ट गया तो फै मिलियर ना होने से उसे देखता ही रहा। मेरे लिए यह पूरा माहौल ही अलग सा था। जो किताबों में पढ़ा उससे बिल्कुल अलग था.'-शमी नसीम 'जो स्टूडेंट्स मेहनत से पढ़ाई करते हैं और प्रेक्टिकल नॉलेज गेन करने के लिए इंट्रेस्टेड रहते हैं। उनका कॉन्फिडेंस लेवल हाई रहता है। ऐसे में उन्हें सीनियर्स के बीच कचहरी में स्टेबिलिश होने में ज्यादा स्ट्रगल नहीं करना होता है.'-प्रो। रीना, डीन, फैकल्टी ऑफ लॉ, आरयू 'न्यू कमर्स के लिए इस पेशे में पांव जमाना आसान नहीं होता है। शुरुआत में तो कमाई न के बराबर होती है.  ऐसे में कुछ लोग तो पेशा ही छोड़ देते हैं। पर जो लोग कड़ी मेहनत से मैदान में डटे रहते हैं, वह शिखर तक पहुंच जाते हैं.'-हरिंदर कौर चड्ढा, सीनियर एडवोकेट 'मैंने तीस साल पहले वकालत शुरू की थी। तब वकील मेहनत करते थे। मुकदमों के फैसले तर्कों के आधार पर होते थे। न्यू कमर्स एक ही रात में सक्सेसफुल होना चाहते हैं। ऐसा बहुत मुश्किल है। इसलिए वह डिप्रेस हो जाते हैं। जो कड़ी मेहनत करते हैं, उनकी पहचान जरूर बनती है.'-गुरमीत सिंह, सीनियर एडवोकेटReport by: nidhi.gupta@inext.co.in

Posted By: Inextlive