पंद्रह अगस्त 2012 को लाल क़िले की प्राचीर से भारत की जनता को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने देश के मार्स ऑर्बिटर मिशन यानी मंगल अभियान की घोषणा की थी. 2008 में चंद्र अभियान की सफलता से ख़ासे उत्साहित भारतीय वैज्ञानिक अब गहरे अंतरिक्ष में अपनी पैठ बनाना चाहते हैं.


भारत का मानवरहित चंद्रयान दुनिया के सामने चाँद पर पानी की मौजूदगी के पुख़्ता सबूत लेकर आया था. इसरो की सबसे बड़ी परियोजना चंद्रयान थी. इसरो के वैज्ञानिक बुलंद हौसले के साथ मंगल मिशन की तैयारी में जुट गए. लेकिन मंगल की यात्रा के लिए रवानगी और चाँद की यात्रा में ज़मीन आसमान का अंतर है.चंद्रयान को अपने मिशन तक पहुंचने के लिए सिर्फ़ चार लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी जबकि मंगलयान को चालीस करोड़ किलोमीटर की दूरी तय करनी है.  मंगल मिशन के ज़रिए भारत वास्तविकता में गहरे अंतरिक्ष में क़दम बढ़ाने की शुरुआत कर रहा है.


इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन कहते हैं, "जब हम मंगल की बात करते हैं तो मंगल पर जीवन संभव है या नहीं इस बारे में खोज करना चाहते हैं, इसके साथ साथ हम यह भी जानना चाहेंगे कि मंगल पर मीथेन है या नहीं और अगर मीथेन है तो यह जैविक है या भूगर्भीय. हम मंगल पर कैसा वातावरण है, इसकी भी खोज करेंगे."रॉकेट भेजने की तकनीक का अभाव

"जब हम मंगल की बात करते हैं तो मंगल पर जीवन संभव है या नहीं इस बारे में खोज करना चाहते हैं, इसके साथ साथ हम यह भी जानना चाहेंगे कि मंगल पर मीथेन है या नहीं और अगर मीथेन है तो यह जैविक है या भूगर्भीय. हम मंगल पर कैसा वातावरण है, इसकी भी खोज करेंगे."-के. राधाकृष्णन, इसरो के अध्यक्षभारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस बात की है कि उसके पास गहरे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने की तकनीक नहीं है. यदि सामान्य रूप से मंगल पर पहुंचना हो तो इसके लिए हमें तीन चरणों वाले प्रक्षेपण रॉकेट चाहिए जैसा कि जीएसएलवी है. लेकिन अभी इसरो का जीएसएलवी पूरी तरह से तैयार नहीं है. इसलिए भारत का मंगल मिशन पीएसएलवी के जरिए ही लांच हो रहा है, जिसमें सिर्फ़ एक इंजन वाला रॉकेट होता है.इसमें रॉकेट का एक इंजन ब्लास्ट होकर उपग्रह को धरती की कक्षा में पहुंचाता है. लेकिन जैसे ही यह उपग्रह पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार ट्रांसफ़र ऑर्बिट में पहुंचता है, इसे गति देने के लिए एक और इंजन को ब्लास्ट करना होता है वर्ना उपग्रह वापस धरती की कक्षा में गुरुत्वाकर्षण की वजह से आ जाएगा.इसके बाद फिर यही प्रक्रिया ट्रांसफ़र ऑर्बिट से मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए होती है. लेकिन ट्रांसफ़र ऑर्बिट से मंगल की कक्षा में पहुंचने के लिए सिर्फ़ एक इंजन की ज़रूरत होती है. इसलिए भारत अपने पीएसएलवी से इस यान को प्रक्षेपित करेगा.

विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला कहते हैं, "हिंदुस्तान का जो  मंगलयान सेटेलाइट है, वह हिंदुस्तान अपने पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल से ही भेज रहा है. हिंदुस्तान का वह छोटा रॉकेट है. अगर बस चलता तो हिंदुस्तान अपने बड़े रॉकेट जीएसएलवी से ही भेजता. लेकिन 2010 में दो असफलताओं के कारण वह उपलब्ध नहीं है"वो बताते हैं कि "पहले हिंदुस्तान पीएसएलवी द्वारा इस यान को धरती की कक्षा में भेजेगा. फिर यह मंगलयान धरती की कक्षा में एक महीने तक रहेगा. इसमें एक-एक करके इसके अंदर का जो अपना रॉकेट है, उसका विस्फ़ोट करके इसकी तीव्रता या विलॉसिटी बढ़ाई जाएगी."भारत मंगल पर जाने के लिए बिल्कुल अलग तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है. आमतौर पर देश एक झटके में रॉकेट छोड़ते हैं और वो एक छलांग से सीधा मार्स की ओर चले जाते हैं. आसान खेल नहीं है, बहुत मुश्किल है, रास्ता जटिल है, हिंदुस्तान पहली बार जा रहा है, कितना कारगर होगा? क्या सोलर विंड इसको धक्का देकर अपने रास्ते से बाहर कर देंगी? रास्ते में क्या-क्या अड़चने आएंगी? उसकी तैयारी की है.पृथ्वी की कक्षा से निकलने का समय
पल्लव बागला बताते हैं कि "यह हिंदुस्तान की एक पुरानी क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा है अपने पड़ोसी देश चीन से. चीन का मंगल के लिए जो पहला मिशन था, 2011 में फेल हुआ था. वो रूस के साथ साझे में जा रहे था. यहाँ पर भारत को चीन से आगे निकलने का एक एक अवसर दिखा, अगर चीन से भारत मंगल जाने में आगे निकल जाता है तो भारत के राष्ट्रीय गौरव के लिए यह बहुत बड़ा क़दम होगा. अगर मंगल यान मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच जाता है तो भारत एशिया में मंगल तक पहुंचने वाला पहला देश होगा.""नौ महीने बाद जब मंगलयान मंगल ग्रह के पास पहुंचेगा तब सेटेलाइट में लगे छोटे रॉकेट को दुबारा फायर किया जाएगा और इस मंगलयान को धीमा किया जाएगा, नहीं तो मंगल यान मंगल ग्रह के साथ फ्लाई बाय मिशन बन जाएगा."-पल्लव बागला, विज्ञान की पत्रिका के संपादक
दुनिया में अमरीका, रूस और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के बाद चौथे नंबर पर आ जाएगा हिंदुस्तान. यह एक बड़ा क़दम है. एशियन स्पेस रेस की बात हो रही है, मुझे दिखती है कहीं न कहीं हिंदुस्तान और चीन के बीच में एक होड़ लगी है पहले से एक रेस है मार्स पर जाने के लिए. यह एक मैराथन है, आगे यह मैराथन कौन जीतता है? किसका देश कितनी आगे उन्नति कर पाता है वो तो अपने देश का भविष्य बताएगा.साल 1960 से अब तक 45 मंगल अभियान शुरु किए जा चुके हैं. इसमें से एक तिहाई असफल रहे हैं. अब तक कोई भी देश अपने पहले प्रयास में सफल नहीं हुआ है. हालांकि भारत का दावा है कि उसका मंगल अभियान पिछ्ली आधी सदी में ग्रहों से जुड़े सारे अभियानों में सबसे कम खर्चे वाला है. अगर भारत का मंगल मिशन कामयाब होता है तो भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह एक बड़ी उपलब्धि होगी.पल्लव बागला कहते हैं कि यह हिंदुस्तान ने पहले कभी नहीं किया है. लेकिन अगर आप कोशिश नहीं करेंगे तो कभी कामयाब ही नहीं होंगे.मंगल हमेशा से लोगों को अपनी ओर खींचता रहा है. नासा का क्युरियोसिटी रोवर अभी भी उसकी सतह की पड़ताल कर रहा है. वहाँ से लगातार नए नमूने और नए आँकड़े मिल रहे हैं. कुछ लोग यहीं नहीं रुकना चाहते. यहां तक कि मंगल पर बस्ती बनाने के बारे में सोचा जा रहा है. 2022 में मंगल ग्रह की एक परियोजना का उद्देश्य वहां कॉलोनी बसाना है.यह यात्रा केवल वहाँ जाने के लिए है. वापस आने के लिए नहीं. लेकिन मंगल पर सशरीर यात्रा पूरा करने का अभियान कब पूरा होगा, यह तो वक़्त ही बताएगा. जब तक मानव रहेगा, विज्ञान रहेगा, तब तक अंतरिक्ष को खोजने का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा, चलता रहेगा.

Posted By: Subhesh Sharma