Kanpu: सविता के सीने में छुपा वो दुख शायद ही कोई समझ सकता है जिसकी बेटी को दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार ही नहीं बनाया बल्कि उसकी जिंदगी भी ले ली. पूरी तरह से टूट चुकी उस मां को अब दुनिया की कोई चीज अच्छी नहीं लगती. उसके सारे अरमान टूट चूके हैं.


सविता के सीने में छुपा वो दुख शायद ही कोई समझ सकता है, जिसकी बेटी को दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार ही नहीं बनाया बल्कि उसकी जिंदगी भी ले ली। पूरी तरह से टूट चुकी उस मां को अब दुनिया की कोई चीज अच्छी नहीं लगती। उसके सारे अरमान टूट चूके हैं। बस अगर उसके पास बची है तो एक आस। वो है इंसाफ की। वो हर तारीख पर इस आस के साथ कचहरी आती है कि उसकी बेटी के गुनाहगारों को एक दिन सजा जरूर मिलेगी। क्योंकि उसको कानून पर भरोसा है। पर उसका ये भरोसा भी टूटने लगा है. 

पड़ताल में हुआ खुलासा

ऐसे में आई नेक्स्ट ने सिटी की कोर्ट में लंबित पड़े रेप केसेज की पड़ताल की तो मालूम चला कि एक दो नहीं ऐसी सैकड़ों मां हैं, जो इंसाफ के लिए कई सालों से कोर्ट के चक्कर लगा रही हैं। पर अब तक न्याय नहीं मिला। सवाल ये उठता है कि इन केसेज को सुलझाने के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट समेत कई विकल्प की बात तो हर बार करती है। पर असलियत काफी झकझोर देने वाली है।

300 से ज्यादा रेप के मामले

 कानपुर कोर्ट में 300 से ज्यादा रेप के मामलों की सुनवाई चल रही है। इन केसेज में पीडि़ता या उसके फैमिली मेंबर्स सालों से पैरवी कर रहे हैं। उनको हर तारीख पर आरोपियों का सामना करना पड़ता है। जिससे उनके वो जख्म ताजे हो जाते हैं। जो दरिंदों ने उनको दिये। हर तारीख पर उनको वो दर्द सहना पड़ता है। एक सीनियर एडवोकेट ने बताया कि कोर्ट में सुनवाई की लम्बी प्रक्रिया और कानूनी दांवपेंच की वजह से सुनवाई टल जाती है। जिससे मुकदमे में टाइम पर निर्णय नहीं हो पाता है। दिल्ली में दामिनी रेपकांड के बाद केंद्र सरकार भले ही बड़े-बड़े दावे करे पर वो यहां पर फेल हो जाते हैं। वो बताते हैं कि मुकदमों की पेंडेंसी प्रमाण है कि सालों सुनवाई होने के बाद किसी केस में कुछ नहीं होता है. 

लंबी प्रक्रिया का फायदा

एडवोकेट राजेश कौशिक बताते हैं कि कोर्ट की लम्बी प्रक्रिया का सीधा फायदा आरोपियों को मिलता है। वे बेल पर छूट जाते हैं और कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर मुकदमे में लम्बी तारीख लगवा लेते हैं। यही हाल रेप जैसे संगीन मामलों का भी है। इन मामलों में आरोपी कानूनी दांव पेंच जैसे हाजिरी मांफी, मेडिकल आदि का सहारा ले लेते हैं। तारीख पर आरोपियों का सामना पीडि़ता और उनके फैमिली मेंबर्स से होता है। पर वो बेबस हैं। हाल ये है कि कई मामलों में तो परेशान होकर पीडि़ता और उसके घरवाले टूट जाते हैं और खद ही आरोपी से समझौता कर लेते हैं. 

नंबर वन है कानपुर

मुकदमों की पेंडेंसी के मामले में देश में यूपी और यूपी में कानपुर सिटी नम्बर वन है। यहां पर कोर्ट की संख्या कम होने और गवाहों की लगातार गैरहाजिरी से मुकदमों का फैसला नहीं हो पा रहा है। जिससे पीडि़ता और उसके फैमिली मेंबर्स टूटते जा रहे हैं। पीडि़ता के फैमिली मेंबर्स का कहना है कि इस हालत में तो काननू पर से विश्वास उठने लगता है. 

एक लाख 98 हजार लाख मामले

कानपुर कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक यहां पर 1.98 लाख मुकदमे में लंबित हैं। इनमें वारण्ट के 5015, सम्मन के 49825, जुआं, वजन और एनवी एक्ट के 15275, सत्र न्यायालय के 10097 और सिविल कोर्ट जूनियर व सीनियर डिवीजन में 36371 केस लंबित हैं. 

देश में 3.50 करोड़ 

देश में 3.50 करोड़ मुकदमों की पेंडेंसी है। इसमें यूपी नम्बर वन है। यहां पर 54.35 लाख मुकदमे पेंडिंग है। इनमें से हाईकोर्ट में 95 हजार से ज्यादा मामले चल रहे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा पेंडेसी है। यहां की कोर्ट में 41.58 लाख मुकदमें लंबित हैं, जबकि हाईकोर्ट में 33 हजार मुकदमे लंबित हैं। सिक्किम में सबसे कम पेंडेंसी है। यहां पर लोवर कोर्ट में 1178 और हाईकोर्ट में 85 मुकदमे लंबित हैं. 

निस्तारित करने में सबसे आगे

सिर्फ प्रदेश में मुकदमों की पेंडेंसी में ही कानपुर कोर्ट नम्बर वन नहीं है बल्कि मुकदमों को निस्तारित करने में भी सबसे आगे है। कानपुर कोर्ट के आंकड़ों को मानें तो जिला कोर्ट में 1.98 लाख मुकदमे लंबित थे। इसके बाद फरवरी 2013 तक 43922 नए मुकदमे दर्ज हुए। जिसके मुकाबले 56 हजार से अधिक मुकदमे निस्तारित किए गए। जिसमें लोक अदालत में 23 हजार, प्रीलिटिगेशन के 650 और मीडिएशन से 85 मुकदमे निस्तारित हुए, जो पिछले साल की तुलना में बहुत ज्यादा है।   

 

मुकदमों की पेंडेंसी खत्म करने के लिए कोर्ट की संख्या बढ़ानी होगी। साथ ही रेप जैसे संगीन मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट चालू कराना होगा। जिससे मुकदमों की तेजी से सुनवाई हो। इससे मुकदमे में जल्द फैसला होने के साथ पेंडेंसी भी खत्म होगी।

कौशल किशोर शर्मा, सीनियर एडवोकेट

गवाहों की लगातार गैरहाजिरी से सुनवाई टल जाती है। जिससे समय पर मुकदमे का फैसला नहीं हो पाता है। जिससे मुकदमों की पेंडेंसी बढ़ रही है। रेप के मामलों की सुनवाई महिला जज करती हैं। कानपुर में महिला जज कम हैं। इसलिए महिला जज की संख्या को बढ़ाना होगा। तभी मुकदमों में जल्द फैसला हो सकेगा। इससे पेंडेंसी भी कम होगी. 

विनय अवस्थी, संयुक्त मंत्री, कानपुर बार एसोसिएशन

केस-1

मूल रूप से बिहार में रहने वाली सविता की साढ़े ग्यारह साल की बेटी के साथ 15 फरवरी 2008 को सेंट्रल स्टेशन पर दरिंदों ने गैैंगरेप करने के बाद हत्या कर दी थी। इस मामले में पुलिस ने आरपीएफ के सिपाही विनय, ठेकेदार अमर सिंह, लम्बू, पप्पू और तीन अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी। इस केस की विवेचना में पुलिस ने लल्लू, संतोष और शादाब का नाम दिखाया था। यह मुकदमा एडीजे-1 की कोर्ट में चल रहा है। जिसमें सभी आरोपी जमानत पर छूट गए हैं। उनको सजा दिलाने के लिए हर तारीख पर बच्ची की मां कचहरी आती है। यहां पर आरोपियों को देखते ही उसकी आंखों के सामने बच्ची का चेहरा आ जाता है। पर वो कानून के आगे बेबस है।

केस-2

सिटी के चर्चित दिव्याकांड के मुकदमे में भी अभी फैसला नहीं हो सका है। रावतपुर स्थित ज्ञान स्थली स्कूल में 27 सितंबर 2010 को दिव्या के साथ स्कूल प्रबंधक चंद्रपाल वर्मा के बेटे पीयूष ने रेप किया था। स्कूल के कर्मचारी गंभीर हालत में छात्रा को उसके घर के बाहर छोडक़र भाग गए थे। उस दिन डॉक्टरों की हड़ताल होने की वजह से उसका समय से इलाज नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई। इस मामले मेंं स्कूल प्रबंधक चंंद्रपाल, उसके बेटे मुकेश और पीयूष और कर्मचारी संतोष को पुलिस ने नामजद कर जेल भेजा था। जिसमें स्कूल प्रबंधक और उसका बड़ा बेटा बेल पर छूट गया। इसमें चार्ज फ्रेम होने के बाद गवाही शुरू हो गई थी। लेकिन आरोपियों के हाईकोर्ट चले जाने से सुनवाई टल गई। दिव्या की मां हर तारीख पर इस उम्मीद के साथ कचहरी पहुंचती है कि उसे इस बार न्याय मिलेगा। पर फिर हर बार की तरह तारीख मिल जाती है।

केस-3

रावतपुर में सन् 2010 में हुए नीलम कांड के आरोपी भी जमानत पर छूट गए हैं। इस मुकदमे में भी आरोपियों ने कानूनी दांवपेंच का खूब फायदा उठाया। हर बार तारीख लगवा लेते हैं। जिससे सुनवाई टल जाती है. 

केस-4

बेगमपुरवा में रहने वाली किशोरी को 2009 में पड़ोसी मो। आफताब उसकी मां के एक्सीडेंट होने का झांसा देकर दोस्त के घर ले गया। वहां पर उन लोगों ने किशोरी के साथ गैैंगरेप करने के बाद फेंक दिया। किसी तरह से उसने घर पहुंचकर फैमिली मेंबर्स को पूरी बात बताई, तो उन लोगों ने बाबूपुरवा थाने में एफआईआर दर्ज कराई। इस मामले के दोनों आरोपी जमानत पर छूट गए हैं। वो भी कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर अक्सर गैरहाजिर हो जाते हैं। जिससे मुकदमे में तारीख लग जाती है।


Posted By: Inextlive