- 15 दिन में सैकड़ों किलोमीटर साइकिल चलाकर हिमालय की ऊंची वादियों तक पहुंचा शहर का युवक

- गौशाला और मंदिर में सोकर गुजारी रातें, कहा- जिंदगी भर याद रहेगी 'सेल्फ डिस्कवरी' जर्नी

abhishek.mishra@inext.co.in

KANPUR : कहीं बर्फ से ढकी ऊंची-ऊंची पर्वत श्रंखलाएं, कहीं जमीन छूते बादलों का बसेरा कहीं दूर तक फैला बर्फीला रेगिस्तान तो कहीं आसमान छूती चोटियां वादियों की ऐसी खूबसूरत तस्वीरें और जानकारियां आपने इंटरनेट, बुक्स में खूब पढ़ी और देखी होगी, लेकिन कोई शख्स कुदरत की इस बेइंतहा खूबसूरती को देखने एक साइकिल पर निकल पड़े तो उसे क्या कहिएगा साइक्लिंग के प्रति जोश और जुनून से लबरेज इस युवा का नाम है, अविनाश नरोना। जिसने यह हैरतअंगेज कारनामा महज क्भ् दिनों में कर दिखाया।

सफर में मिली प्रेरणा

हेल्दी रहने के लिए साइक्लिंग तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन हिमालय जाने का ख्याल और प्रेरणा कैसे मिली? इसके जवाब में अविनाश ने कहा कि यह कहानी भी बेहद एडवेंचरस है। एक बार फैमिली के साथ बिनसर जाना हुआ। वहां पेशे से आर्किटेक्ट आरिफ नाम का युवक साइक्लिंग करता मिला, जो दिल्ली से वहां साइक्लिंग करने आया था। अविनाश ने बताया कि तब मेरी उम्र करीब क्ब् साल रही होगी और घर में फोर-व्हीलर होने के बावजूद मैं साइकिल से ही स्कूल आने-जाने लगा। बड़ा होने पर भी साइकिल का चस्का नहीं छूटा। उन्होंने बताया कि घर में लग्जरी गाडि़यों की कमी नहीं। पर दिन में जब तक साइकिल न चला लूं, एक खालीपन सा महसूस होता है।

क्म् गियर वाली साइकिल

पढ़ाई के बाद दिल्ली में नौकरी भी लग गई, लेकिन साइकिल से पहाड़ों पर चढ़ने की बात अविनाश को हर पल याद रही। उसी शौक को पूरा करने के लिए करीब ख् साल पहले अविनाश ने क्म् गियर वाली साइकिल खरीदी। दोस्तों से बातचीत में स्पीति वैली के बारे में पता चला। कुछ रिसर्च नेट पर की। फिर एक दिन साइकिल पर जरूरी सामान लेकर निकल पड़े अपनी मंजिल की ओर। हालांकि, कानपुर से हिमालय तक सैकड़ों किमी तक का सफर, वो भी साइकिल पर आसान नहीं था। खासकर तब जब कई किमी तक फैले बर्फीले रेगिस्तान में दूर-दूर तक आपको कोई इंसान न दिखाई पड़े।

मदद को सीटी और टार्च

स्पीति वैली का सफर बेहद दुर्गम था। सबसे ज्यादा कठिनाई पूह से नाको रूट पर आई। अविनाश ने बताया कि यह पथरीला रास्ता उन्होंने गले में सीटी और टार्च बांधकर पार किया। जिससे कहीं कोई दिक्कत या विपदा आ जाए तो सीटी बजाकर या अंधेरे में टार्च की रोशनी से इमरजेंसी सिग्नल दिया जा सके। ठंड इतनी भयंकर कि पानी भी गर्म करके पीना पड़ता था। नींद लगती तो गौशाला, मंदिर जहां भी जगह मिली सो जाते। एक-एक दिन और रात गुजरती गई। कुंजुम, धनकर, काजा, पूह, नाको की-लॉन्ग, कंज्योर से होते हुये स्पीति वैली पहुंच ही गए।

अपनी और साइकिल दोनों की खुराक

स्पीति वैली के आखिरी प्वाइंट पर चन्द्रताल झील पड़ती है। जो कि समुद्रतल से करीब क्भ्00 फीट की ऊंचाई पर बनी है। अविनाश ने बताया कि यहां पहुंचकर आक्सीजन का लेवल भी कम हो जाता है। मगर, इस पूरे सफर में खुद और साइकिल दोनों की खुराक का भी ध्यान रखना पड़ा। इसकी तैयारी घर से निकलने से पहले ही कर ली थी। चूंकि साइकिल में ज्यादा सामान लेकर चल नहीं सकते। इसलिए एक किट तैयार की। इसमें बेडिंग के अलावा फूड सप्लीमेंट्स और साइकिल की पंचर किट रखी। मोबाइल में सिग्नल भी सिर्फ बीएसएनएल का ही काम करता है। अविनाश ने बताया ताउम्र यह सफर याद रहेगा। यह मेरी लाइफ की 'सेल्फ डिस्कवरी' जर्नी है.

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मणियों की घाटी

इस घाटी का नाम स्पीति कैसे पड़ा। इसकी रोचक कहानी भी अविनाश ने शेयर की। उन्होंने बताया कि साइक्लिंग के दौरान वहां के कुछ लोगों से मुलाकात हुई। पता चला वहां लोग स्पीति को 'मणियों की घाटी' भी बोलते हैं। 'सी' को मणि और 'पीति' का मतलब स्थान होता है। यहां के लोगों की धारणा है कि सैकड़ों सालों तक बर्फ की मोटी पर्ते जमकर मणियों में बदल जाती हैं।

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बौद्ध मंत्रों की गूंज

नेचुरल ब्यूटी के साथ-साथ स्पीति वैली पर बने मंदिर और गोम्पा में बौद्ध मंत्रों की गूंज सबको अपनी ओर खींचती है। अविनाश ने बताया कि वहां वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियां एक आलौकिक अनुभूति से भर देते हैं। वहीं जड़ी बूटियों की सोंधी-सोंधी महक के साथ ही बर्फ-बादलों की खूबसूरती भी गजब की है।

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Posted By: Inextlive