DEHRADUN : किसी भी प्रदेश के विकास की कहानी की शुरुआत उसके मुखिया के आसपास से शुरू होती है. विकास की कहानी में तमाम मोड़ भी आते हैं और प्राकृतिक आपदा भी इसमें अहम रोल अदा करती है. बावजूद इसके कर्मठता और कुछ कर गुजरने के संकल्प से इस कहानी को आगे बढ़ाया जाता है. उत्तराखंड को हरीश रावत के रूप में आठवां मुख्यमंत्री मिल चुका है. इसी के साथ शुरू हो चुकी है विकास की कहानी को एक बार फिर से नए तरीके से लिखने की कवायद. परिवर्तन प्रकृति का नियम है. 'मुखिया जीÓ अपनी विजन के अनुसार नई टीम बनाएंगे प्रशासनिक फेरबदल भी शुरू होंगे. हर तरफ परिवर्तन होगा. पर सबसे बड़ा मुद्दा पहाड़ के दर्द से जुड़ा होगा. यहीं से शुरू होगी विकास की नई कहानी. आज आई-नेक्स्ट प्रदेश के आठवें मुख्यमंत्री के सामने उन आठ चुनौतियों को सिलसिले वार बताने का प्रयास कर रहा है जिन चुनौतियों से पार पाकर ही पहाड़ के विकास का रास्ता साफ होगा. पहाड़ दर्द से कराह रहा है इसीलिए इस आठवें ताज को कांटों भरा ताज भी कहा जा रहा है.


चुनौती नंबर 1पहाड़ का पुनरुद्धारजून में आई प्राकृतिक आपदा ने पूरे पहाड़ को झकझोर कर रख दिया है। क्या गढ़वाल और क्या कुमाऊं। हर तरफ एक ही हाल है। कई गांव ऐसे हैं जहां आपदा के सात-आठ माह बाद भी राहत के नाम पर कुछ नहीं हुआ। केंद्र से राहत के नाम पर हजारों करोड़ रुपए का बजट जारी हो चुका है। खर्च कहां हुए किसी को नहीं दिख रहा है। पहाड़ का पुनरुद्दार करने के लिए आठवें मुख्यमंत्री का विजन क्या होगा? यह सबसे बड़ी चुनौती है।चुनौती नंबर 2रोकना होगा पलायन


लंबे समय से पहाड़ के युवाओं के पलायन ने प्रदेश के सामने नई चुनौती पेश की है। आपदा के बाद इसमें जबर्दस्त तरीके से इजाफा हुआ है। गांव के गांव तबाह हो चुके हैं। खेती बाड़ी नष्ट हो चुकी है। रोजगार के साधन नहीं हैं। कोई भी मल्टीनेशनल कंपनी पहाड़ों में अपने प्रोजेक्ट लगाने से कतरा रही है। ऐसे में पहाड़ के लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट है। पलायन कर वे मैदान की तरफ आ रहे हैं, जहां उनका न केवल शोषण हो रहा है, बल्कि वे निराश भी हैं। चुनौती नंबर 3भ्रष्टाचार मुक्त शासन

जिस तरह बहुगुणा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में भ्रष्टाचार की खबरें मीडिया की सुर्खियां बनीं, वह भी बड़ी चुनौती होगी नए मुखिया के सामने। प्रदेश के नौकरशाहों और राजनेताओं के बीच टकराव का कारण भी यही मुद्दा बना। राहत और पुननिर्माण के नाम पर अभी हजारों करोड़ रुपयों का बजट पड़ा हुआ है.  इसे बेहतर तरीके से खर्च करने में भी नए मुखिया को अपनी कार्यकुशलता दिखानी होगी।चुनौती नंबर 4स्वास्थ, शिक्षा और रोजगार13 सालों में उत्तराखंड को अगर किसी ने पीछे धकेला है तो वह है यहां का बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर। कई महत्वपूर्ण योजनाओं के बावजूद पहाड़ में हेल्थ फैसिलिटी सबसे निचले स्तर पर है। सबसे बड़ी चुनौती डॉक्टर्स को पहाड़ पर चढ़ाने को लेकर है। शिक्षा की बात करें तो औसत एजूकेशन दर भले ही बेहतर है, लेकिन उस शिक्षा के जरिए रोजगार मिलना मुश्किल है। ऐसे में नए मुखिया इन बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर को ठीक करने के लिए क्या संकल्प लेते हैं यह भी देखना जरूरी होगा।चुनौती नंबर 5सत्ता संतुलन

आठवें मुख्यमंत्री के सामने वैसे तो चुनौतियों का अंबार रहेगा, पर एक ऐसी चुनौती भी रहेगी जो अपनों द्वारा ही पेश की गई होगी। यह सभी को पता है कि मुख्यमंत्री का ताज कैसे मिला। सभी सहयोगी विधायकों की लांबिंग भी पूरे राज्य में स्पष्ट है। ऐसे में सत्ता संतुलन कैसे होगा इस पर भी लोगों का पूरा ध्यान होगा। उत्तराखंड के विधायकों की लांबिंग की एक झलक शनिवार को विधानमंडल के बैठक के दौरान देखने को मिल ही चुकी है।चुनौती नंबर 6चुनावी चुनौतीबहुगुणा सरकार के तख्ता पलट के पीछे जो सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है वह है आगामी चुनाव। पंचायत चुनाव हो या लोकसभा चुनाव। उत्तराखंड के लिए दोनों चुनाव में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी का संदेश पहले ही बच चुका है। ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ने जिस तैयारी के साथ नए मुख्यमंत्री का चुनाव किया है वह भी कई एक्सपेक्टेशन लेकर सामने है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश के लोगों में कांग्रेस का विश्वास पैदा करना होगा। इसके लिए विकास की गंगा को अविरल और स्वच्छ करना होगा।चुनौती नंबर 7विदेशी कंपनियों को न्योता
पहाड़ों में एक तरफ जहां रोजगार का संकट है वहीं कई ऐसी परिजनों को स्थापित किया जा सकता है जिससे इस संकट को दूर किया जा सके। इसमें सबसे बड़ी बाधा पर्यावरण के साथ संतुलन है। ऐसे में नए मुख्यमंत्री इस दिशा में क्या प्रयास करते हैं और विदेशी कंपनियों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं यह भी गौर करने वाली बात होगी। चुनौती नंबर 8आपने कहा थाइस चुनौती को अंतिम चुनौती तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सबसे अहम चुनौती जरूर कहा जा सकता है। जब हरीश रावत केंद्र में थे और देहरादून पहुंचते थे तो बहुगुणा सरकार पर निशाना लगाने से चूकते नहीं थे। चाहे आपदा के बाद केदारनाथ में पूजा पाठ का सवाल हो या कोई और मुद्दा। हरीश रावत खुल कर बोलते थे। ऐसे में उस वक्त उनके द्वारा कही गई बातें और योजनाओं पर उनके बेबाक बोल को भी उनके मुख्यमंत्री काल में तौला जरूर जाएगा।

Posted By: Inextlive