करवा चौथ में निर्जला व्रत रखने का विधान है अर्थात् इस व्रत में पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करते। व्रती कठोर उपासना व्रत से भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं जिससे शिव-पार्वती से अपने जोड़े को दीर्घकाल तक साथ रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

करवा चौथ का व्रत इस बार 27 अक्टूबर दिन शनिवार को है। इस दिन महिलाएं अपने पति के सौभाग्य और दीर्घायु होने के लिए व्रत करती हैं। व्रत करने वाली महिलाओं को करवा चौथ से जुड़ी कुछ बातों को जानना जरूरी होता है। इनका व्रत में बड़ा महत्व होता है, इनके बिना ये व्रत पूरा भी नहीं होता है।

1. सरगी का उपहार

यह सास की ओर से दिया गया आशीर्वाद है। मां का स्थान सर्वोपरि है। अत: मां अपनी बहू को सूर्योदय से पूर्व ही कुछ मीठा खिला देती है, जिससे पूरे दिन मन में प्रेम और उत्साह रहे तथा भूख-प्यास का एहसास न हो।

2. प्रात:काल शिव-पार्वती की पूजा का विधान

प्रात:काल से ही श्रीगणेश भगवान, शिवजी एवं मां पार्वती की पूजा की जाती है, जिससे अखंड सौभाग्य, यश एवं कीर्ति प्राप्त हो। शिवजी के मंत्रों तथा मां गौरी के मंत्रों का जाप-पाठ आदि करके उन्हें प्रसन्न करते हैं, जिससे पति को दीर्घायु होने का वर मिले।

3. निर्जला व्रत का विधान


करवा चौथ में निर्जला व्रत रखने का विधान है अर्थात् इस व्रत में पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करते। व्रती कठोर उपासना व्रत से भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं, जिससे शिव-पार्वती से अपने जोड़े को दीर्घकाल तक साथ रहने का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। रोगी, गर्भवती, स्तनपान कराने वाली महिलाएं दिन में दूध, चाय आदि ग्रहण कर सकती हैं।

4. पीली मिट्टी से गौरा-शिव की मूर्ति बनाने का महत्व

दिन में पीली शुद्ध मिट्टी से गौरा-शिव एवं गणेशजी की मूर्ति बनाई जाती है। जिस प्रकार गणेश चतुर्थी एवं नवरात्र में गणेशजी एवं दुर्गाजी की मूर्ति प्रत्येक वर्ष नई बनाते हैं, उसी प्रकार नई मूर्ति बनाकर उन्हें पटरे पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करते हैं तथा कच्ची मूर्तियों को सजाते हैं। पूजा के दूसरे दिन उन्हें घी-बूरे का भोग लगाकर विसर्जित करते हैं। मां गौरा को सिंदूर, बिंदी, चुन्नी तथा शिव को चंदन, पुष्प, वस्त्र पहनाते हैं। श्रीगणेशजी उनकी गोद में बैठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दीवार पर एक गेरू से फलक बनाकर चावल, हल्दी के आटे को मिलाकर करवा चौथ का चित्र अंकित करते हैं।

5. शाम को कथा सुनने का महत्व


दिनभर की पूजा के बाद शाम को घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं या पंडितजी सभी को ‘करवा चौथ’ की कहानी सुनाते हैं। सभी महिलाएं पूर्ण श्रृंगार करके गोल घेरा बनाकर बैठती हैं तथा बड़े मनोयोग तथा प्रेम से कथा सुनती हैं। महिलाएं ही परिवार में एकता बनाती हैं। जब सभी साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं तो प्रेम, स्नेह, त्याग, करुणा, दया गुण भी प्रभावी हो जाते हैं।

करवा चौथ कथा का सार यह है- ' शाकप्रस्थपुर के वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करकचतुर्थी का व्रत किया था। नियम यह था कि चन्द्रोदय के बाद भोजन करे, परन्तु उससे भूख सही नहीं गयी और व्याकुल हो गयी। तब उसके भाई ने पीपल की आड़ में महताब (आतिशबाजी) आदि का सुन्दर प्रकाश फैला कर चन्द्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करवा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अलक्षित हो गया और वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया तब पुन: प्राप्त हुआ।

6. परस्पर थाली फेरना

कथा सुनने के उपरांत सभी सात बार परस्पर थालियां फेरते हैं तथा थाली में वही सामान एवं पूजा सामग्री रखते हैं, जो बयाने में सास को दिया जाएगा। पूजा के उपरांत सास के चरण छूकर उन्हें बयना भेंट स्वरूप दिया जाता है अर्थात् सास, पिता श्वसुर का स्थान बहू के लिए सर्वोपरि होना चाहिए। ईश्वर के आशीर्वाद के साथ सास एवं श्वसुर के चरण स्पर्श करें, जिससे जीवन में सदैव प्रेम, स्नेह एवं यश प्राप्त हो।

7. करवे और लोटे को सात बार फेरना

करवे और लोटे को भी सात बार फेरने का विधान है। इससे तात्पर्य है कि घर की स्त्रियों में परस्पर प्रेम और स्नेह का बंधन है। साथ मिलकर पूजा करें और कहानी सुनने के बाद दो-दो महिलाएं अपने करवे सात बार फेरती हैं, जिससे घर में सभी प्रेम के बंधन में मजबूती से जुड़े रहें।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari