सुहागन महिलाओं के लिए करवा चौथ महत्वपूर्ण है। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है जो इस वर्ष 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। इस व्रत में चंद्रमा का काफी महत्व होता है।

करवा चौथ व्रत कार्तिक कृष्ण की चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यह व्रत तृतीया के साथ चतुर्थी उदय हो, उस दिन करना शुभ है। तृतीया तिथि ‘जया तिथि’ है। इससे पति को अपने कार्यों में सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। जो इस वर्ष 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। सुहागन महिलाओं के लिए चौथ महत्वपूर्ण है।

गौरी माता का एक रूप चौथ माता

ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र के अनुसार, गौरी माता का एक रूप चौथ माता का है। मंदिरों में चौथ माता के साथ श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है। करवा चौथ माता सुहागन स्त्रियों के सुहाग की रक्षा करती हैं। उनके दाम्पत्य जीवन में प्रेम और विश्वास की स्थापना करती हैं। सुहागिनों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।

व्रत एवं पूजा विधि


इस व्रत में शिव-शिवा, स्वामिकार्तिक और चन्द्रमा का पूजन करना चाहिए और नैवेद्य में (काली मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी ढालकर बनाये हुए) करवे या घी में सेंके हुए और खांड मिले हुए आटे के लड्डू अर्पण करने चाहिये। इस व्रत को विशेषकर सौभाग्यवती स्त्रियां अथवा उसी वर्ष में विवाही हुई लड़कियां करती हैं और नैवेद्य के 13 करवे या लड्डू और 1 लोटा, 1 वस्त्र और 1 विशेष करवा पति के माता-पिता को देती हैं।

व्रती को चाहिये कि उस दिन प्रातः स्नानादि नित्यकर्म करके 'मम सुखसैभाग्यपुत्रपौत्रादिसुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये'। यह संकल्प करके बालू (सफेद मिट्टी) की वेदी पर पीपल का वृक्ष लिखें और उसके नीचे शिव-शिवा और षण्मुख की मूर्ति अथवा चित्र स्थापन करके

' नम: शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्।

प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।।'

से शिवा (पार्वती) का षोडशोपचार पूजन करें और 'नम: शिवाय' से शिव तथा 'षण्मुखाय नम:' से स्वामिकार्तिक का पूजन करके नैवेद्य का पक्वान्न(करवे) और दक्षिणा ब्राह्मण को देकर चन्द्रमा को अर्घ्य दें और फिर भोजन करें।

करवा चौथ में चंद्रमा का महत्व


श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। चन्द्रमा अपनी हिम किरणों से समस्त वनस्पतियों में दिव्य गुणों का प्रवाह करता है। समस्त वनस्पति अपने तत्वों के आधार पर औषधीय गुणों से युक्त हो जाती हैं, जिससे रोग-कष्ट दूर हो जाते हैं और जिससे अर्घ्य देते समय पति-पत्नी को भी चन्द्रमा की शुभ किरणों का औषधीय गुण प्राप्त होता है। दोनों के मध्य प्रेम एवं समर्पण बना रहता है।

चन्द्रोदय रात्रि- 7:38

चन्द्रमा को अर्घ्य दान- रात्रि 7:58 के बाद

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र, शोध छात्र, ज्योतिष विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

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Posted By: Kartikeya Tiwari