-बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन बनवाने का श्रेय उन्हीं को जाता है

JAMSHEDPUR : शहर की साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र तुलसी भवन को आज हम जिस रूप में देखते हैं उसका श्रेय जाता है स्वदेश कुमार प्रभाकर को। यह उनके प्रयासों और लगन का नतीजा ही है कि तुलसी भवन सिर्फ जमशेदपुर ही नहीं, बल्कि पूरे देश में साहित्यकारों के बीच एक अहम स्थान बना। एक राष्ट्रभक्त और सच्चे समाजसेवी स्वदेश कुमार प्रभाकर आजीवन समाज के विकास के लिए प्रयासरत रहे और एक निर्भिक योद्धा की तरह अन्याय के खिलाफ लड़ाई भी जारी रखी। एक अक्टूबर ख्00फ् को उनका निधन हुआ, लेकिन उनके किए कार्य सदियों तक लोगों को इनकी मौजूदगी का अहसास दिलाते रहेंगे।

साहित्यकारों को दिया मंच

बिष्टुपुर स्थित तुलसी भवन वर्षों से साहित्यकारों के एक मंच देता आया है। हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के विभिन्न विद्याओं से संबंधित गतिविधियां यहां साल भर चलती रहती हैं। पर आज हम तुलसी भवन का जो स्वरूप देखते हैं वो हमेशा से ऐसा नहीं था। क्9भ्ब् में टाटा स्टील द्वारा सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन को यह जमीन आवंटित की गई थी, लेकिन वर्षो तक यह भूखंड यूं ही पड़ा रहा। क्98म् में सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन की एक बैठक हुई और उसमें स्वदेश कुमार प्रभाकर ने यहां इमारत बनाए जाने का सुझाव दिया और उन्ही के प्रयासों की वजह से तुलसी भवन का निर्माण शुरू हुआ और क्988 में यह भवन बनकर तैयार हुआ।

हमेशा रहे संघर्षरत

एक समाजसेवी के रूप में वे हमेशा समाज के विकास के लिए कार्य करते रहे और जब कभी जरूरत पड़ी, तो एक निर्भिक योद्धा की तरह संघर्ष भी किया। विभिन्न सामाजिक मुद्दों को लेकर वे जेल भी गए और अनशन भी किया। एक बार जेल में उनका अनशन तुड़वाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने पत्र लिखा था। जमशेदपुर जेल में उन्होंने ब्8 दिनों का अनशन किया था जो पुरी के जगद्गुरु शंकराचार्य के हस्तक्षेप के बाद भंग हुआ। आचार्य विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए गो रक्षा आंदोलन के क्रम में उन्होंने ख्ब् दिनों तक उपवास किया था।

समाज के लिए किए कई कार्य

फ्क् अक्टूबर क्9फ्क् को श्रीनगर में पैदा हुए स्वदेश कुमार प्रभाकर क्9भ्भ् में जमशेदपुर आए। जमशेदपुर में पंजाबी समाज और लाजपत स्कूल के स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है। स्वदेश कुमार प्रभाकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला कार्यवाह, आर्य समाज जमशेदपुर के सचिव, सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के महासचिव और अध्यक्ष भी रहे। उनकी याद में हिंदी साहित्य के लिए स्वदेश स्मृति सम्मान की भी दिया जाता है।

(स्व। स्वदेश कुमार प्रभाकर के पुत्र उपेंद्र कुमार चतरथ के साथ बातचीत पर आधारित )

Posted By: Inextlive