हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्‍थित नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाली दोनो नवरात्रि चैत्र मास और अश्‍िवन मास के नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी की कृपा प्राप्त करते है। ये देवी के 51 सिद्धि पीठों में से एक है। आइये जाने नैना देवी की कथा।

देवी दुर्गा का ही रूप हैं नैना देवी
नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। ये माता दुर्गा का ही एक स्वरूप हैं इसीलिए नवरात्रों में इनके पूजन का खासा महत्व माना जाता है। मां नैना या नयना देवी का ये स्थान शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियो पर स्थित एक भव्य मंदिर रूप में निर्मित है। यह देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान नैशनल हाईवे न. 21 से जुड़ा हुआ है। समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर की मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे।
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इस स्थान की प्रचलित कथा
जैसा की सभी को ज्ञात है कि नैना देवी मंदिर पूरे भारतवर्ष मे स्थित कुल 51 शक्ति पीठ मंदिरों मे से एक है। । जिन सभी की उत्पत्ति कथा एक ही है। यह सभी मंदिर शिव और शक्ति से जुड़े हुऐ है। इन सभी स्थलो पर देवी के अंग गिरे थे। जो शिव के ससुर राजा दक्ष ने यज्ञ में देवी सती बिना बुलाए पहुंचने और शिव का अपमान सहन न कर सकने के चलते हवन कुण्ड में कूदने जुड़ी है। जब भगवान शंकर को सती के आत्मदाह की बात पता चली तो वह आये और सती के शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागो में बांट दिया जो अंग जहां पर गिरा वह शक्ति पीठ बन गया। मान्यता है कि नैना देवी मे माता सती नयन गिरे थे।
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ऐसा है नैना देवी का मंदिर
नैना देवी के मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भ ग्रह में तीन मुख्य मूर्तियां हैं। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। वहीं मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित पवित्र जल का तालाब है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।
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माता से जुड़ी कथायें
नैना देवी की उत्पत्ति और चमत्कारों से जुड़ी कई कथायें प्रचलित हैं। सबसे ज्यादा स्वीकृत कथा है कि प्राचीन काल में महिषासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे ब्रह्मा द्वारा एक तरह से अमरता का वरदान प्राप्त था, क्योंकि उसे एक अविवाहित महिला द्वारा ही मार सकती थी। जब महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया, तो सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया। इस देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई। महिषासुर इस तेजोमय देवी की असीम सुंदरता पर मुग्ध हो गया और उनसे शादी का प्रस्ताव रखा। देवी ने कहा कि अगर वह उन्हें हरा देगा तो वह इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगी। युद्ध में महिषासुर परास्त हुआ और देवी ने उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं। इसीलिए नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है ।

दूसरी कथा एक गुज्जर युवक नैना राम की है। जिसने मवेशियों को चराते हुए एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसाते देखा। लगातार कई दिनों तक वो इस घटना को देखता रहा, फिर जब एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी मां को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है। इसके बाद नैना राम ने सपने के बारे में वहां के राजा बीर चंद को बताया। राजा ने स्वंय इस घटना को देखा तो उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया।

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Posted By: Molly Seth