अपनी मस्ती जोश और रंगीले मिजाज़ के लिए मशहूर पंजाब ने चुनावों की रेलमपेल के बीच भी अपना रंगरेज़ अंदाज़ खोया नहीं है.


अलग-अलग पार्टियाँ अपने अनूठे अंदाज़ में चुनाव प्रचार में जुटी हैं.तमिल कोलावरी डी तो आपने यकीनन सुना होगा जब स्वाद चखिए चुनावी कोलावरी डी का.पंजाब में तीसरे मोर्चे के तौर पर उभरे नए दल पीपल्स पार्टी ऑफ़ पंजाब लोगों को चुनावों में इसी गाने के ज़रिए लुभा रहे हैं.जब नज़र युवा वोट पर तो कोलावरी डी जैसे हिट गाने की मदद लेना लाज़मी है. पंजाब के मशहूर स्थानीय गायक भगवंत मान ने चुनावी कोलावरी डी को अपने ही अंदाज़ में गाया है. इंटरनेट पर ये काफ़ी हिट भी बटोर रहा है.पंजाब की बाकी पार्टियों का चुनावी अंदाज़ भी कुछ कम रंगीन नहीं है. एक दूसरे पर भाषणों और रैलियों में शब्दों के बाण कसने के साथ-साथ कांग्रेस और अकाली दल ने कार्टूनों का सहारा लिया है.


ये काल्पनिक कार्टून चरित्र एफ़एम रेडियो और फ़ेसबुक जैसे साधनों पर एक दूसरे की पार्टियों की पोल खोलते नज़र आ रहे हैं. शुरुआत कांग्रेस ने अपने कार्टून चरित्र निकाल कर की जिनके नाम हैं जीता और जग्गी . जीता और जग्गी अपने निराले अंदाज़ में अकाली दल पर तंज और कटाक्ष की बाणबर्षा करते हैं.कार्टूनों की जंग

ज़ाहिर है अकाली दल को बात चुभ गई. कांग्रेस के जीता और जग्गी का जवाब उसने झूठा और ठग्गी नाम के काल्पनिक चरित्रों से दिया है. कार्टूनों की इस जंग ने पंजाब चुनाव प्रचार में लोगों के बीच हँसी का तड़का लगाया हुआ है.वहीं पंजाब के हास्य कलाकर जसपाल भट्टी चुनावों में अपने कटाक्ष भरे सुझावों से अपना ही रंग भर रहे हैं.ज़रा सुनिए इन जनाब का क्या कहना है, "मैंने पंजाब चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि प्रचार के दौरान उम्मीदवारों को ये इजाज़त दी जानी चाहिए कि वो एक दूसरे पर कीचड़ उछाल सकें या कुछ हद तक एक दूसरे का चरित्र हनन कर सकें. इसके कई फ़ायदे हैं."वे अपने ही अंदाज़ में कहते हैं, "पहला फ़ायदा तो ये है कि मतदाता को अपना मन बनाने में आसानी हो जाती है कि वोट किसको डालना है. क्योंकि एक कई सारे उम्मीदवार एक ही जैसे लुटेरे होते हैं. लेकिन उम्मीदवारों के आरोप-प्रत्यारोप सुनकर मतदाता अपना मन बना सकता है कि कम लुटेरा कौन सा है. जब ये एक दूसरे के घोटाले बाहर लेकर आते हैं तो चुनाव में मनोरंजक का स्तर बढ़ जाता है. ज़्यादा से ज़्यादा लोग चुनावी प्रक्रिया में रुचि से हिस्सा लेते हैं."बातों-बातों में ये क्या कहना चाहते हैं आप समझ ही गए होंगे.पिता-पुत्र की पार्टी

चुनाव प्रचार में जहाँ बड़े नेताओं ने आलीशान महंगी गाड़ियों में प्रचार किया तो वहीं साइकिल, ऑटो और यहाँ तक घोड़ाघाड़ी में प्रचार पर निकले कुछ उम्मीदवार भी आकर्षण का केंद्र बने रहे.पंजाब के मतदाता भी इस खेल में पीछे नहीं हैं. लतीफ़ों-लतीफ़ों में ये अपनी बात चटकदार अंदाज़ में कह जाते हैं. कटाक्ष का पसंदीदा विषय है पंजाब की राजनीति में परिवारवाद का दबदबा.जब लोगों से पूछो कि कौन सी पार्टी जीतेगी तो चुटकुले के अंदाज़ में कहते हैं पिता और बेटे की पार्टी. क्योंकि यहाँ अकाली दल, कांग्रेस और पीपीपी तीनों बड़ी पार्टियों में पिता और पुत्र की जोड़ियाँ चुनावी मैदान में है.तो चलिए आप इस रंगीले अंदाज़ का लुत्फ़ उठाइए, हम चुनाव के कुछ और रंग चुराने के लिए चुनावी सफ़र में आगे बढ़ते है.

Posted By: Garima Shukla