Bareilly : अस्सी के दशक में आई फिल्म 'शानÓ में मेगा स्टार अमिताभ बच्चन के होने के बाद भी एक कैरेक्टर ऐसा था जिसने सबके दिलो-दिमाग पर एक छाप छोड़ी. जी हां हम बात कर रहे हैं इंडियन सिनेमा के फेमस विलेन 'शाकालÓ की. इस कैरेक्टर को निभाने वाले कुलभूषण खरबंदा ने पिछले चार दशकों से इंडियन फिल्म इंडस्ट्री को कई यादगार परफॉर्मेंस दी हैं. थिएटर फेस्ट में शामिल होने सिटी आए कुलभूषण खरबंदा ने आई नेक्स्ट से अपने एक्सपीरियंस शेयर किए.


आर्ट मूवीज, कॉमर्शियल सिनेमा और थिएटर में सबसे ज्यादा क्या पसंद है?हर फील्ड की अपनी अलग इंपॉर्टेंस है। सिनेमा कहीं ज्यादा बड़ा माध्यम है। अगर सिनेमा में मजा है तो थिएटर में 'नशाÓ। मैंने हर क्षेत्र में काम किया और मुझे सभी अट्रैक्टिव और मजेदार लगते हैं।आप थिएटर और सिनेमा में क्या अंतर पाते हैं?सिनेमा का कैनवास बहुत बड़ा होता है। इसकी पहुंच दूर तक है। मास कनेक्ट कहीं बड़ा और व्यापक है जबकि थिएटर कला का क्लोज माध्यम है। यहां ऑडियंस का फीडबैक कहीं जल्दी मिलता है।आपका ड्रीम रोल क्या है? देखिए, अभी तक जो काम किया, अच्छा लगा। मैं अपने किसी रोल को फेवरेट नहीं कहता। वास्तव में इस बात को तय करने का हक दर्शकों पर ही छोड़ देना चाहिए। दर्शक की प्रतिक्रिया ही महत्वपूर्ण है।


क्या आपको ये नहीं लगता है कि बॉलीवुड आप जैसे बेहतरीन कैरेक्टर्स को टाइप्ड कर देता है?
देखो भाई, बॉलीवुड में काम बंटा होता है, सबको अपना काम करना है। मुझे ऐसे ही कैरेक्टर्स करने को मिले तो मैंने ऐसे ही किया। इंडस्ट्री के काम करने का यही तरीका होता है, जो काम दिया जाता है, उसे बेहतर तरीके से करने की कोशिश की जाती है

किन डायरेक्टर्स के साथ काम करने में मजा आता है?पसंदीदा, कहना बहुत अजीब बात होगी, कई बार ऐसे डायरेक्टर्स के साथ काम किया जो एकदम जमीन से जुड़े थे, ठेले की चाय भी चाव से पी सकते हैं। वहीं कई डायरेक्टर्स अपनी पर्टिकुलर पर्सनैलिटी से बाहर नहीं निकल पाते हैं। डायरेक्टर्स की झलक उसके काम और एक्टर्स पर भी झलकती है।कुलभूषण खरबंदा का नाम आते ही 'शाकालÓ की सूरत क्यों उभर आती है?देखिए, हमें जो रोल दिए जाते हैं, हम उसी के अकॉर्डिंग खुद को ढालते हैं। जब वह दर्शकों को पसंद आ जाता है, तो वे मशहूर हो जाते हैं। यह फिल्म हॉलीवुड की एक फिल्म की नकल थी। शाकाल के कैरेक्टर्स को पŽिलक ने खूब पसंद किया और शाकाल एक विलेन के रूप में एक माइलस्टोन बन गया।आज का बॉलीवुड आपको कैसा नजर आता है?मैं इन बातों में एकदम विश्वास नहीं करता हूं कि मेरे जमाने में ऐसा था। यकीन जानिए आज बहुत अच्छा काम हो रहा है। गानों को लीजिए या फिर फिल्म क्राफ्ट को बहुत अच्छे और यंग लोग आ रहे हैं। वे बेहतरीन काम कर रहे हैं। इन यंगस्टर्स का कॉफिडेंस बहुत बैलेंस्ड है लेकिन कॉम्पिटीशन बढ़ गया है। पहले ऐसा कतई नहीं था।

बरेली का थिएटर कैसा लगा?
मुझे तो आश्यर्च है कि बरेली जैसे शहर में भी ऐसा थिएटर हो रहा है। इसके लिए जिम्मेदार लोग बधाई के पात्र हैं। अब छोटे शहरों में भी अच्छा थिएटर देखने को मिल रहा है।थिएटर के सामने चैलेंज क्या हैं ?अरे यार, पूरे वल्र्ड में थिएटर का हाल एक जैसा है। सिनेमा में पैसा तो बहुत है लेकिन थिएटर का अपना मुकाम है। आप थिएटर किसी को जबरदस्ती नहीं दिखा सकते हैं। मैं तो कहता हूं कि आप थिएटर को देखने मत जाइए, जब तक आप का दिल ना करे। थिएटर तो सिनेमा की जननी है। थिएटर एक्टर्स को रिचार्ज कर देता है।

Posted By: Inextlive